- पटना के बीआईए हाॅल में मार्क्स की दूसरी शताब्दी वर्ष पर कम्युनिस्ट घोषणापत्र पर लिया क्लास.
- आइसा व इनौस ने किया था मार्क्सवादी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
पटना 30 अगस्त 2018, भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना के बीआईए हाॅल में राज्य भर के आइसा व इनौस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि सामाजिक बदलाव की दिशा में माक्र्स के विचार सबसे महत्वपूर्ण हथियार हैं. उनके विचारों के प्रति युवा वर्ग में आज भी गहरा आकर्षण है और कम्युनिस्ट घोषणापत्र दुनिया की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में शामिल है. इसी से इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. बीआईए हाॅल में आयोजित आज के माक्र्सवादी कार्यशाला में का. दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य राजाराम सिंह व प्रोफेसर अरविंद कुमार भी शामिल थे. कार्यशाला की अध्यक्षता इनौस के राज्य सचिव मनोज मंजिल, राज्य सचिव नवीन कुमार, आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार व राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन ने किया. कार्यशाला में पूरे बिहार से आइसा व इनौस के कार्यकर्ता जुटे थे. कार्यशाला में अपने संबोधन में काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज जब हम माक्र्स की दूसरी जन्मशती मना रहे हैं, तो भारत में हम सबसे धर्मान्ध और दकियानूसी शासकों की जमात का शासन झेल रहे हैं. ये लोग वैचारिक बहसों का जवाब घृणा-प्रचार, झूठ और हिंसा से देते हैं और वामपंथ की मौत का मर्सिया पढ़ते हैं. ये लोग माक्र्स और लेनिन को विदेशी कहते हैं. लेकिन संघी ताकतों ने हमेशा विदेशी प्रतीक-पुरूष तानाशाह और घोर मानवता विरोधी हिटलर को ही अपना आदर्श बनाया. ये लोग, जो माक्र्स और लेनिन का विरोध करते हैं, वे ही अम्बेडकर और पेरियार का भी विराध करते हैं. स्पष्ट है कि मामला देशी-विदेशी का मामला नहीं है. संघी माक्र्स-लेनिन से लेकर भगत सिंह-अंबेदकर व पेरियार के सामाजिक बदलाव के महान विचारों से घृणा करते हैं. इन विचारों से वे भयभीत रहते हैं. वे सभी लोग जो समानता, न्याय, स्वतंत्रता और भाईचारे के पक्षधर हैं और उसके लिये लड़ते हैं, उन्हें हमेशा माक्र्स से प्रेरणा मिलती रहेगी. जबकि समानता के दुश्मन हमेशा इस क्रांतिकारी महापुरुष से प्रचंड भयभीत रहेंगे और उन्हें बदनाम करने की कोशिश करेंगे. माक्र्स व एंगेल्स द्वारा लिखित कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र की चर्चा करते हुए कहा कि यह पुस्तक सामाजिक बदलाव की दिशा को साफ तौर पर स्पष्ट करती है. समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े मजदूर वर्ग के ही नेतृत्व में एक समाजवादी समाज की स्थापना हो सकती है.
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