अनूप जलोटा को लेकर तरह-तरह की टिप्पणियां सोशल-मीडिया पर आ रही हैं।कुछ तो उनके पक्ष में हैं और कुछ उनके विपक्ष में।सौ बात की एक बात है कि व्यक्ति जिस तरह से जीना चाहें,जियें।यह उसका अपना निर्णय है।मगर इस ‘जीने’ की नुमाइश क्यों? सार्वजनिक रूप में जब आप अपने ऐसे अव्यवहारिक/गैर पारंपरिक सम्बन्धों की नुमाइश करते हैं तो मन का खिन्न हो जाना स्वाभाविक है।खास तौर पर जब गुरु ही ऐसी हरकत करे! गुरु-शिष्य के पावन रिश्ते को ऐसे प्रकरण कलंकित ही करते हैं,मान-सम्मान नहीं बढाते और न ही चार चांद लगाते हैं।ऐसे सम्बन्धों का टीवी पर प्रचार कर हम समाज और युवापीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं? गौर करिये,अब अगर मेरा कोई शिष्य मुझसे इस प्रेम संबंध की वैधता/अवैधता के बारे पूछे, तो मैं क्या जवाब दूँ उसे? ध्यान रहे जब एक सेलिब्रिटी अपने सम्बन्धों की खुले-आम प्रदर्शनी लगाता है तो उंगली तो उठेगी ही।घर की चार दीवारी में आप कुछ भी करें,किसी को कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।बाहर खुले में एक बहुचर्चित चैनल पर यह तमाशा अवांछित ही नहीं गुरु शिष्य के पावन सम्बन्ध पर बट्टा भी है।जनता के प्रेम,स्नेह और आदरभाव ने जलोटा को सेलिब्रिटी बनाया है।अतः जनता का यह हक भी बनता है कि वह इस तमाशे/नुमाइश पर उंगली उठाए।घर के आगे कोई कूड़ा फेंके तो आवाज़ तो उठेगी ही।
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
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