जैन तीर्थ के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखा जाएगा: सुदर्शन भगत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 सितंबर 2018

जैन तीर्थ के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखा जाएगा: सुदर्शन भगत

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नई दिल्ली, 26 सितम्बर 2018, जैन समाज के प्रमुख एवं पावन तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी की पवित्रता, धार्मिकता एवं ऐतिहासिकता को खंडित करने के झारखंड सरकार के हाल ही में जारी किये गये आदेश को रोकने के लिए जैन समाज का एक प्रतिनिधि मंडल आज जैन समाज के प्रख्यात संत एवं आदिवासी जननायक गणि राजेन्द्र विजयजी एवं धर्मयोगी योगभूषणजी महाराज के नेतृत्व में केन्द्रीय जनजातीय मामलों के राज्यमंत्री श्री सुदर्शन भगत से उनके निवास स्थान पर मिला। इस प्रतिनिधि मंडल मंे चारों ही जैन समाज के प्रमुख प्रतिनिधि शामिल थे जिनमें मुख्यतः उड़ीसा भाजपा के महामंत्री श्री मुरली शर्मा, गुजरात के उद्यमी श्री विपुल पटेल, सुखी परिवार फाउंडेशन के संयोजक श्री ललित गर्ग, श्री मनोज बोरड, श्री जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ के श्री दीपक जैन, जयपुर की निगम पार्षद श्रीमती अनिता जैन, मयूर विहार भाजपा के कोषाध्यक्ष श्री सुबोध जैन, श्री सियाराम शरण जैन आदि हैं। प्रतिनिधि मंडल ने पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर पाश्र्वनाथ हिल पर मारंगबुरू मंदिर बनाये जाने एवं अन्य पर्यटन गतिविधियांे को शुरू करने के निर्णय पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया। 

केन्द्रीय मंत्री श्री सुदर्शन भगत ने झारखंड राज्य के गिरडीह जिले के श्री सम्मेदशिखरजी तीर्थ यानी पाश्र्वनाथ हिल को जैनों का प्रमुख तीर्थस्थल होने के कारण उसकी पवित्रता एवं ऐतिहासिकता को अक्षुण्ण रखने का आश्वासन देते हुए कहा कि  इस सिलसिले में वे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास से लिये गये निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करेंगे। उन्होंने कहा कि जैन समाज शांतिप्रिय समाज है और उसका राष्ट्र निर्माण में अमूल्य योगदान है। उनके आस्था से जुड़े इस पवित्र तीर्थ की गरिमा को अक्षुण्ण रखा जाएगा। गणि राजेन्द्र विजयजी ने झारखंड सरकार के निर्णय को लेकर संपूर्ण जैन समाज में व्याप्त असंतोष एवं आक्रोश की जानकारी देते हुए कहा कि श्री सम्मेदशिखरजी तीर्थ एवं पाश्र्वनाथ हिल जैनों का सर्वोच्च आस्था स्थल है जिसे जैनों के 24 तीर्थंकरों में से 20-20 तीर्थंकर भगवंतों की निर्वाण कल्याणक भूमि होने का गौरव प्राप्त है। आस्था के सर्वोच्च पाश्र्वनाथ हिल के कण-कण को सदियों से जैन समाज के लोग पवित्र मानते हैं और साथ ही साथ इसकी पूजा भी करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि पाश्र्वनाथ पर्वत के संपूर्ण वातावरण तथा आसपास के संपूर्ण परिवेश की शुद्धता एवं पवित्रता को बरकरार रखने के लिए यह अनिवार्य है कि इस पवित्र स्थल पर किसी भी प्रकार की अधार्मिक/भौतिक अथवा व्यावसायिक प्रवृत्तियां नहीं होनी चाहिए एवं जैन यात्री एवं साधकों को आत्मसाधना के लिए अपने शास्त्रीय परंपरा एवं धार्मिक आस्था के अनुसार बाधारहित वातावरण मिलता रहना चाहिए जो कि उनका मूलभूत अधिकार है। गणि राजेन्द्र विजयजी ने पाश्र्वनाथ हिल के संपूर्ण परिवेश में रहने वाले आदिवासी एवं अन्य जाति के लोगों के कल्याण के लिए झारखंड सरकार एवं जैन समाज के सामूहिक सौजन्य से स्कूल एवं अस्पताल बनाये जाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस पवित्र भूमि पर मारंगबुरू का मंदिर बनाने के लिए तैयारियां चल रही है। किसी धर्म विशेष की धार्मिक आस्थाओं को आहत करके किसी अन्य धार्मिक आस्था को बल देने के लिए मंदिर का निर्माण कराना उचित नहीं है। यह सरकार के अधिकारों का दुरुपयोग साबित होगा। धर्मयोगी योगभूषण महाराज ने इस अवसर पर कहा कि जैन समाज अल्पसंख्यक है और इसी वजह से उनकी धार्मिक आस्था एवं उनके पवित्र तीर्थों के अस्तित्व एवं अस्मिता को अक्षुण्ण रखना सरकार का प्रमुख दायित्व है। लेकिन जैन समाज की धार्मिक आस्था को किसी दूसरी धार्मिक आस्था से दबाने, कुचलने, आहत करने का प्रयत्न किसी भी दृष्टि से औचित्यपूर्ण नहीं है।  इस अवसर पर धर्मयोगी योगभूषण महाराज ने अपनी नवप्रकाशित पुस्तक ‘मंत्र शक्ति जागरण’ श्री सुदर्शन भगत को भेंट की।

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