न्यायालय का तरक्की में आरक्षण पर अपने फैसले को बड़ी पीठ को भेजने से इनकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 26 सितंबर 2018

न्यायालय का तरक्की में आरक्षण पर अपने फैसले को बड़ी पीठ को भेजने से इनकार

sc-refuse-reservation-in-pramotion
नयी दिल्ली, 26 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण के बारे में संविधान पीठ का नागराज मामले में 2006 का फैसला सात सदस्यों की संविधान पीठ को भेजने से बुधवार को इंकार कर दिया। नागराज प्रकरण में 2006 के फैसले अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं।  न्यायालय ने कहा कि 2006 के फैसले को सात सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही संविधान पीठ ने केंद्र सरकार का यह अनुरोध भी ठुकरा दिया कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए।  प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया।  पीठ ने यह भी कहा कि एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आंकड़ा इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल थे। पीठ ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो तरक्की में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे। न्यायालय ने यह फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया जिसमें नागराज प्रकरण में संविधान पीठ के 2006 के फैसले को फिर से विचार के लिये सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जाये। नागराज प्रकरण में संविधान पीठ ने एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण का लाभ दिए जाने के लिए शर्तें तय की थीं।

इस मामले में केंद्र सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।  नागराज मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2006 के फैसले कहा था कि एससी-एसटी समुदायों के लोगों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण दिए जाने से पहले राज्य सरकारें एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाले आंकड़े, सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य और समग्र प्रशासनिक दक्षता पर जानकारी मुहैया कराने के लिए बाध्य हैं।  केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विभिन्न आधारों पर इस फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। इसमें एक आधार यह था कि एससी-एसटी समुदायों के लोगों को पिछड़ा माना जाता है और जाति को लेकर उनकी स्थिति पर विचार करते हुए उन्हें नौकरियों में तरक्की में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने कहा था कि एम नागराज मामले में एससी-एसटी कर्मचारियों को तरक्की में आरक्षण का लाभ दिए जाने में गैर-जरूरी शर्तें लगाई गई थीं। इसलिए केंद्र ने इस पर फिर से विचार करने के लिए इसे बड़ी पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था। केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने एससी-एसटी कर्मचारियों को तरक्की में आरक्षण दिए जाने के पक्ष में दलीलें देते हुए कहा कि पिछड़ेपन की धारणा उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा था कि एससी-एसटी समुदाय लंबे समय से जातिगत भेदभाव का सामना कर रहा है और इस तथ्य के बाद भी जाति का कलंक उनसे जुड़ा हुआ है कि इस समुदाय के कुछ लोग अच्छी स्थिति में पहुंचे हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं: