दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा की नजरबंदी खत्म की - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा की नजरबंदी खत्म की

gautam-naulakha-release
नयी दिल्ली, एक अक्टूबर,  दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा को नजरबंदी से सोमवार को मुक्त कर दिया। महराष्ट्र में हुई कोरेगांव - भीमा हिंसा के सिलसिले में उन्हें चार अन्य कार्यकर्ताओं के साथ पांच हफ्ते पहले गिरफ्तार किया गया था। नवलखा को राहत देते हुए उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के ट्रांजिट रिमांड आदेश को भी रद्द कर दिया। उन्होंने मामले को शीर्ष न्यायालय में ले जाने से पहले इस आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार की यह दलील स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उनकी नजरबंदी दो दिन के लिए बढ़ाई जाए क्योंकि शीर्ष न्यायालय ने पिछले हफ्ते अपने फैसले में इसे चार हफ्तों के लिए बढ़ा दिया था। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय ने नजरबंदी चार हफ्ते के लिए बढ़ाई थी ताकि कार्यकर्ता उपयुक्त कानूनी उपाय का सहारा ले सकें और यह विस्तार सीमित उद्देश्य के लिए था तथा नवलखा ने इसका उपयोग किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि नवलखा को 24 घंटे से अधिक हिरासत में रखा गया, जिसे वैध नहीं ठहराया जा सकता। पीठ ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के 28 अगस्त के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत नवलखा की ट्रांजिट रिमांड पुणे पुलिस को दी गई थी। पीठ ने कहा कि ऐसा करते हुए संविधान के मूलभूत प्रावधानों और सीआरपीसी का अनुपालन नहीं किया गया, जो अनिवार्य प्रकृति के हैं। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने इस बात की अनदेखी की कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी का आधार बताना होता है। पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि निचली अदालत के आदेश में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि उसने जांच अधिकारी को केस डायरी दिखाने को कहा या केस डायरी देखी। पीठ ने कहा कि निचली अदालत के आदेश को वैध नहीं ठहराया जा सकता।  अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 56 और 57 के मद्देनजर तथा मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के रिमांड आदेश की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ता की हिरासत स्पष्ट रूप से 24 घंटे से अधिक हो गई है जिसे वैध नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए याचिकाकर्ता की नजरबंदी अब खत्म की जाती है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश महाराष्ट्र सरकार को आगे की कार्यवाही से नहीं रोकेगा।  उच्च न्यायालय ने नवलखा की गिरफ्तारी और निचली अदालत के ट्रांजिट रिमांड आदेश को चुनौती देते हुए उनकी ओर से दायर याचिका स्वीकार कर ली। गौरतलब है कि नवलखा को दिल्ली में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। अन्य चार कार्यकर्ताओं को देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया गया था।  शीर्ष न्यायालय ने 29 सितंबर को पांचों कार्यकर्ताओं को फौरन रिहा करने की एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि महज असहमति वाले विचारों या राजनीतिक विचारधारा में भिन्नता को लेकर गिरफ्तार किए जाने का यह मामला नहीं है। इन कार्यकर्ताओं को कोरेगांव - भीमा हिंसा मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।  शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि आरोपी और चार हफ्ते तक नजरबंद रहेंगे, जिस दौरान उन्हें उपयुक्त अदालत में कानूनी उपाय का सहारा लेने की आजादी है। उपयुक्त अदालत मामले के गुण दोष पर विचार कर सकती है।  महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एलगार परिषद सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। इस सम्मेलन के बाद राज्य के कोरेगांव - भीमा में हिंसा भड़की थी।  इन पांच लोगों में तेलुगू कवि वरवर राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरूण फरेरा और वेरनन गोंजाल्विस, मजदूर संघ कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नवलखा शामिल थे। 

कोई टिप्पणी नहीं: