विशेष : हिंसा के बहाने मोदी बदनाम करने की साजिश? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

विशेष : हिंसा के बहाने मोदी बदनाम करने की साजिश?

इन दिनों आर्थिक आधार पर मजबूत राज्य गुजरात से हजारों लोगों का पलायन हो रहा है। खासकर उत्तर भारतीय बिहार व मध्य प्रदेश के लोगों को मारा-पीटा जा रहा है। इसकी वजह यह है कि गुजरात के साबरकांठा जिले में रेप का आरोप बिहार के रहने वाले रविंद्र साहू नाम के एक मजदूर पर है। इसी बहाने हिंदी भाषी बिहार, यूपी और एमपी के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे में सवाल यही है एक दोषी के चक्कर में पूरे उत्तर भारतीयों को क्यों डराया-धमकाया जा रहा है? कहीं गुजरात के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को काशी या यूं कहें यूपी, एमपी व बिहार में बदनाम करने की साजिश तो नहीं? ऐसा इसलिए, क्योंकि मारने-पिटने व धमकाने वाले कोई और नहीं बल्कि मोदी के खाटी विरोधी ठाकोर से सेना के कर्ताधर्ता कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर ही है 

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फिरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में हिंदी भाषी लोगों पर हो रहे कथित हमलों और पलायन को लेकर जंग की सुगबुगाहट काशी में तेज हो गयी है। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) समेत अन्य विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ बीजेपी पर निशाना साध रही है। इन दलों के नेता खुलकर कहते फिर रहे है कि जब गुजरात के बेटे को काशी ही नहीं बल्कि पूरा उत्तर भारत अपना मानकर उन्हें पीएम बना दिया तो उसकी सजा काशी समेत पूरे उत्तर भारतीयों को गुजरात में क्यों दी जा रही है। साथ में चेताया भी जा रहा है कि अगर हम उत्तर भारतीयों को गुजरात से बेदखल किया गया तो मोदी को भी काशी या यूं कहें पूरे उत्तर भारत में घुसने नहीं दिया जायेगा। हालांकि विरोधी राजनीतिक दलों के इस एजेंडे का काशी के लोगों पर कोई  फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव 2019 सिर पर है तो हर हथकंडे अपनाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। हालांकि गुजरात में पीटकर आएं शशी गुप्ता का कहना है कि गुजरात के स्थानीय लोगों के हमलों के डर से फैक्ट्रियों ने काम देने से इनकार कर दिया है। आज हजारों लोग रोजगार छोड़, जान की सुरक्षा के लिए घर वापस लौट रहे हैं। लोगों को महाराष्ट्र और असम में हुए हमलों की याद आ रही है। ठाकोर सेना समेत अन्य स्थानीय संगठन के लोग गैर-गुजरातियों को निशाना बना रहे हैं। पलायन करने वाले बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लोगों में हमले का डर है। धमकी दी जा रही है कि ’’सुबह होने से पहले गुजरात छोड़ दो वर्ना मारा जाएगा।’’ इन सब के बीच सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों हमले हो रहे हैं और उन्हें क्यों गुजरात छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है? क्या मोदी को बदनाम करने के लिए गुजरात में हिंसा की आग भड़काई गयी? आखिर कौन लगा रहा है गुजरात माॅडल पर कलंक? गैर गुजरातियों के खिलाफ? राहुल के दुलारे अल्पेश ने क्यों लगाई गुजरात में आग? गुजरात की हिंसा व नफरत की आग पर राहुल मौन क्यों? इसका जवाब जनता जानना चाहती है। 

दरअसल, बिहार में रोजगार के संसाधन नहीं होने की वजह से हजारों लोग गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत कई राज्यों में जाते हैं। खासकर बाढ़ प्रभावित रहे कोसी क्षेत्र के अलावा मउ, आजमगढ़, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि जिलों से मजदूरों का पलायन बड़ी संख्या में होता है। ये लोग छोटे-मोटे धंधे, ठेले, माल ढोने, सिक्योरिटी गार्ड और फैक्ट्रियों में काम करके अपना घर चलाते हैं। हालांकि सरकारी महकमों के पास यह पुख्ता जानकारी नहीं है कि कितने लोग हर साल रोजगार के लिए यूपी, बिहार छोड़ते हैं। लेकिन इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बिहार व यूपी से दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब को रवाना होने वाली ट्रेनें फुल रहती है। आर्थिक विकास के नजरिये से कमजोर इन जिलों के मजदूर रोजी-रोटी की मजबूरी में कम पैसों पर भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं। फैक्ट्रियां भी आसानी से उन्हें रोजगार दे देती है। पंजाब और हरियाणा में फैक्ट्रियों में रोजगार के अलावा फसल की कटाई और बुआई के समय मजदूरों की भारी संख्या में जरूरत पड़ती है। इसके लिए यूपी बिहार से जाने वाले मजदूरों को आसानी से काम मिल जाते हैं। लेकिन समस्या उस समय खड़ी होती है जब स्थानीय लोगों में असुरक्षा का माहौल बनता है। उन्हें अपनी संस्कृति और संसाधन खोने का डर सताने लगता है। स्थानीय लोगों को मुकम्मल रोजगार न मिलने का डर रहता है। और इसे हवा देते हैं स्थानीय संगठन और नेता। सवाल उठता है कि जब संविधान देश के किसी भी कोने में, किसी भी शख्स को जाने, काम करने की इजाजत देता है तो फिर क्यों क्षेत्र के आधार पर उनपर हमले किये जाते हैं? उन्हें काम छोड़कर अपने राज्य की ओर लौटना पड़ता है? भद्दे कमेंट्स सुनने पड़ते हैं? इन सब का एक जवाब है क्षेत्रीय राजनीति। 

यह अलग बात है कि पुलिस दावा कर रही है बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश के लोगों पर हुए हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। ऐसा नहीं है कि पहली बार हिंदी भाषी प्रदेश के लोगों को निशाना बनाया गया है। इससे पहले असम और महाराष्ट्र में भी बिहार के लोगों पर हमले हुए। 28 नवंबर को गुजरात के साबरकांठा में नाबालिग लड़की से रेप के आरोप में बिहार के एक मजदूर को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के मुताबिक, रेप के आरोप में बिहार के रहने वाले रविंद्र साहू नाम के एक मजदूर को घटना वाले दिन गिरफ्तार किया गया। पीड़ित नाबालिग ठाकोर समुदाय की है। इसी गिरफ्तारी के बाद स्थानीय संगठनों ने बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश के लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। कई जगहों पर धमकियां दी गई और हमले किये गए। डर से हजारों लोग गुजरात छोड़ चुके हैं। जबकि इस मामले में उपद्रव करने वालों में पुलिस ने साढ़े तीन सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और उत्तर भारतीयों को सुरक्षा भी दी है।

इसके बावजूद बिहार-यूपी के लोगों पर हुए हमले को लेकर पूर्व-उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा, ’’यूपी, बिहार के लोगों को पीटने वालों गुजरात के लम्पट संघियों समझ लो, प्रधानमंत्री यूपी से चुनाव जीते हैं। मोदी जी, आप देश के प्रधानमंत्री हैं। इस मुद्दे पर आपकी चुप्पी ख़तरनाक है। आपके राज्य के लोग ग़ैर-गुजरातियो को पीटकर भगा रहे है। क्या यही है आपका सबका साथ, सबका विकास?’’ वो भी दिन लोगों को याद है जब 2008 को जब राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और अन्य संगठनों ने महाराष्ट्र खासकर मुंबई में बिहार और यूपी के लोगों को निशाना बनाना शुरू किया। 19 अक्बटूर 2008 को रेलवे की परीक्षा में शामिल होने आए उत्तर भारतीय छात्रों के साथ एमएनएस कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर मारपीट की और उनके एडमिट कार्ड तक फाड़ डाले थे। हमले में चार छात्रों की मौत हो गई थी। तब एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था, “बिहारियों ने मॉरीशस की पथरीली धरती से सोना निकाला और उसे अंग्रेजों के जुल्म से आजाद कराया और यही बिहारी महाराष्ट्र और गुजरात में समृद्धि लाए। 

और अब हालत यह है कि इन्हीं लोगों के साथ बेहरमी का सुलूक किया जा रहा है।“ 90 के दौर में बिहार के लोगों ने पूर्वोत्तर की ओर भी रुख किया। लेकिन वहां भी वे एंटी बिहारी मूवमेंट के शिकार बने। 1979 के बाद असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में बिहार के लोगों के अलावा बांग्लादेशी, बंगाली और मारवाड़ी को निशाना बनाया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़े स्तर पर हुई हिंसा में 2000 और 2003 में बिहार के 200 लोगों की मौत हुई। अग्रवादी संगठन उल्फा ने भी बिहार के लोगों को निशाना बनाया। स्थानीय लोगों में यह दहशत फैलाया गया कि बिहार के लोगों की बढ़ती संख्या की वजह से संस्कृति और भाषा खत्म हो जाएगी। हालिया समय की बात करें तो राजस्थान के कोटा में भी एंटी बिहारी मूवमेंट को हवा देने की कोशिश की गई। कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए काफी संख्या में बिहार के छात्र रहते हैं। छात्रों के खिलाफ स्थानीय नेताओं ने कहा था, ’’बिहार के छात्र शहर के माहौल खराब कर रहे हैं, उन्हें शहर से निकाला जाना चाहिए।’’ 

बहरहाल, गैर-गुजरातियों पर हमला करने का आरोप ’ठाकोर सेना’ पर है। बीजेपी नेताओं का दावा है कि कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ने स्थानीय लोगों को हमले के लिए उकसाया। सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सएप, फेसबुक का सहारा लेकर गैर-गुजरातियों के खिलाफ स्थानीय लोगों को भड़काया गया। इसका असर गांधीनगर, अहमदाबाद, साबरकांठा, पाटन और मेहसाणा में देखने को मिला। कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने पीएम नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करते हुए धमकी भरे अंदाज में कहा है कि उन्हें याद रखना चाहिए कि एक दिन उन्हें भी वाराणसी जाना है। ये याद रखना ...वाराणसी के लोगों ने उन्हें गले लगाया और पीएम बनाया था। उनके इस धमकी की गूंज अब बनारस में भी सुनाई देने लगी है। इस पूरे मामले पर अब राजनीति भी हो रही है। बीते एक हफ्ते से गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। लोगों में इस कदर डर है कि कामगार गुजरात छोड़कर घर लौटने लगे हैं। बिहार, यूपी और एमपी आने वाली ट्रेन और बसें भरी हुई हैं। हर जगह डर और खौफ का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी खुले तौर पर उत्तर भारतीयों को गुजरात छोड़ने की धमकी दी जा रही है। जौनपुर निवासी गंगाराम बताते हैं कि, “मैं अहमदाबाद में काम कर रहा हूं। रात को करीब 25 से 30 बाइक सवार लोग आए और मुझे पीटा, गालियां दी। वो नारे लगा रहे थे कि यूपी वालों को मार डालो। मैंने किसी तरह एक दुकान में छिपकर जान बचाई।“ कुबेरनगर में रह रहे रघुदास ने भी उसके साथियों पर हुए हमले का जिक्र करते हुए बताया कि, “पास की बस्तियों से रात के समय गाड़ियों पर कुछ लोग सड़कों पर निकलते हैं और गुजराती में पहचान पूछते हैं। यदि आपने उन्हें हिंदी में जवाब दिया तो पिटाई शुरु कर देते हैं। चांदलोडिया इलाके में भी इसी तरह की घटना कुछ दिन पहले सामने आई थी। यहां 23 वर्षीय ऑटोरिक्शा ड्राइवर केदारनाथ जो मूल रूप से यूपी के सुलतानपुर का रहने वाला है। उसने पुलिस को बताया कि करीब 25 लोगों ने चांदलोडिया पुल पर उस पर हमला कर दिया। उसने बताया कि नारे लगाते हुए भीड़ सब्जी के ठेले पलट रही थी और लोगों पर हमला कर रही थी। जब केदार ने भागने की कोशिश की तो उसे रोका गया, उसके रिक्शे की विंडशील्ड तोड़ दी गई और उसे पीटा गया। 




सुरेश गांधी 

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