धारा 377 : यौन रूझान को स्वतंत्र अभिव्यक्ति बताने के तर्क से असहमत : जेटली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 7 अक्तूबर 2018

धारा 377 : यौन रूझान को स्वतंत्र अभिव्यक्ति बताने के तर्क से असहमत : जेटली

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नई दिल्ली, छह अक्टूबर, वित्त मंत्री अरूण जेटली ने शनिवार को कहा कि सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने के उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के उस हिस्से से वह सहमत नहीं हैं जिसमें कहा गया है कि यौन रूझान स्वतंत्र अभिव्यक्ति का हिस्सा है। जेटली ने कहा कि उन्हें लगता है कि इससे स्कूल, छात्रावास, जेल या सेना के मोर्चे पर समलैंगिक या बाईसेक्सुअल गतिविधि के किसी भी स्वरूप को रोके जाने पर सवाल उठता है। उन्होंने व्यभिचार पर शीर्ष न्यायालय के फैसले के एक अंश पर भी असहमति जताते हुए कहा कि इससे देश की परिवार व्यवस्था पश्चिम की परिवार व्यवस्था में बदल जाएगी। सबरीमला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर उन्होंने कहा कि इस तरह की व्यवस्था चुनिंदा परंपरा पर नहीं हो सकती क्योंकि इसके कई तरह के सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। एचटी लीडरशिप समिट को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने का फैसला ठीक है लेकिन दिक्कत वहां है जब इन ऐतिहासिक फैसलों को लिखा जाता है। आप आगे बढ़कर इतिहास का हिस्सा बनना चाहते हैं और इसलिए आप एक कदम आगे जाते हैं। उन्होंने कहा कि फैसले में अदालत के तर्क से वह पूरी तरह सहमत हैं कि यौन संबंध की गतिविधि संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है जो कि जीवन का अधिकार और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होने चाहिए, इसकी गारंटी देता है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यौन संबंध की गतिविधि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का हिस्सा है, इससे वह बिल्कुल असहमत हैं। उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि मेरा मानना है कि यह हद से कुछ ज्यादा है और उसका परिणाम अपराध को दायरे से बाहर करने पर नहीं हो सकता। स्वतंत्र अभिव्यक्ति बिल्कुल अलग दायरा है, इसे संप्रभुता, सुरक्षा, सार्वजनिक आदेश की वजह से सीमित किया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात है कि हर दिन नये मौलिक अधिकार बनाने की प्रवृति है।’’ जेटली ने कहा, ‘‘इसलिए जब आप इसे मौलिक अधिकार में बदलते हैं और कहते हैं कि यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति है तब आप स्कूल छात्रावासों, जेल, सैन्य इकाई में समलैंगिक या बाईसेक्सुअल, यौन गतिविधि के किसी भी रूप को कैसे रोकते हैं। ’’  इस पर आगे और चर्चा की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि यह व्याख्या धारा 377 के मामले में फैसले के लिए जरूरी नहीं था ।

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