नयी दिल्ली, चार नवंबर, पाकिस्तानी लेखिका फातिमा भुट्टो के मुताबिक, उन्हें नहीं लगता कट्टरपंथियों को धर्म से ज्यादा कुछ लेना-देना है और वह मानती हैं कि हिंसा से उबरने के लिये उसे समझने और दर्द से निजात पाने के लिये उसके बारे में बात करने की जरूरत है। भुट्टो ने हाल ही में ‘द रनअवेज’ नाम की नई किताब लिखी है जो हिंसा में जलती दुनिया में आधुनिक मुस्लिम पहचान से जुड़े ज्वलंत सवालों के बारे में बात करती है। उनके लिये, यह एक ऐसी किताब है जो उनके दिल के करीब है और इसमें उन्होंने कुछ राज जाहिर किए हैं, कट्टरवाद के बारे में बात की है, पहचान, सोशल मीडिया और आज की इस जलती दुनिया में युवाओं के संघर्ष जैसे मुद्दे उठाए हैं। उन्होंने कहा कि समसामयिक कट्टरवाद के मायने और इसकी उत्पत्ति को लेकर उन्होंने एक अलग नजरिया पेश किया है। भुट्टो ने बताया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि कट्टरपंथ का धर्म से ज्यादा कुछ लेना-देना है। मुझे लगता है कि यह पीड़ा से आता है। इसकी जड़ें गहरी और जटिल हैं और मीडिया में हम इसका बेहद स्तरीय विवरण नहीं देते कि इसके मायने क्या हैं और यह कि कहां गल्प और कला महत्वपूर्ण हैं। हिंसा में जीवित रहने के लिये हमें उसे समझने की जरूरत है, दर्द से उबरने के लिये हमें इस बारे में बात करने की जरूरत है।’’ उन्होंने 2014 में ‘‘द रनअवेज’’ लिखना शुरू किया था और ‘‘मैंने इसे बहुत मन लगा कर लिखा, मैं इसमें पूरी तरह डूब गई थी।’’ पहला ड्राफ्ट बेहद तेजी से खत्म हो गया और इसके बाद उन्होंने अगले चार साल इसे फिर से लिखने में बिताए, चरित्रों की जिंदगी और सभी कहानियों में बेहद गहराई तक उतरीं। ‘‘मैं कट्टरपंथ के बारे में लिखना चाहती थी। यह बताना चाहती थी कि दुनिया के खिलाफ लड़ाई की चाह के लिये आपको कितने दर्द से गुजरना होगा। मैं हमेशा एकाकीपन के बारे में लिखना चाहती थी, यह भी कि क्या नहीं है... इंटरनेट... युवाओं पर इसके प्रभाव के बारे लिखना चाहती थी।’’ ‘‘द रनअवेज’’ कराची से लेकर लंदन की ‘नाइटलाइफ’ और मोसुल के रेगिस्तान तक का जिक्र अपने में समेटे हुए है। किताब की कहानी तीन किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है और भुट्टो के अनुसार, तीनों किरदारों की जिंदगी एक दूसरे से पूरी तरह अलग है।
रविवार, 4 नवंबर 2018
कट्टरपंथियों को धर्म से ज्यादा कुछ लेना देना नहीं : फातिमा भुट्टो
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