बिहार : स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते बच्चों से लेकर बूढ़ों तक ने अपनी जान गंवाई है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

बिहार : स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते बच्चों से लेकर बूढ़ों तक ने अपनी जान गंवाई है

गाँव फाग को एक स्वास्थ्य केंद्र मिल जाए, हालात नहीं बदले तो हजारों और लोग प्रभावित होंगे
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औरंगाबाद। बिहार के औरंगाबाद जिले में है गाँव फाग। यहां से निकली कहानियाँ आपकी आँखों को नम कर देंगी। कहानियाँ, जो अखबार के पन्नों में जगह नहीं बना पाती हैं। गाँव में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते बच्चों से लेकर बूढ़ों तक ने अपनी जान गंवाई है और हालात नहीं बदले तो हजारों और लोग प्रभावित होंगे। इस जिले के गांव और पंचायत फाग प्रखंड गोह है।यहां पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवशंकर साव रहते हैं। इस गाँव की समस्या के बारे में शिवशंकर साव कहते हैं कि समस्या कितनी गभीर है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य केंद्र के ना होने से नवजात बच्चों की मौत भी इस गाँव ने देखी है। डिलीवरी के लिए महिलाओं को खाट इत्यादि पर लिटाकर 9 किलोमीटर दूर, प्रखंड गोह में बने स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाना पड़ता है और एक नई जिंदगी को दुनिया में लाने के सफर में आधे रास्ते से एक मासूम की लाश के साथ लौटना पड़ता है। स्वास्थ्य केंद्र की कमी के चलते ग्रामीणों को इलाज के लिए या तो शहर जाना पड़ता है या 9 किलोमीटर दूर प्रखंड गोह में बने स्वास्थ्य केंद्र पर। वहाँ भी सुविधाओं का अभाव हीं होता है, एक अदद स्वास्थ्य केंद्र के ना होने से ग्रामीण या तो बीमारियों के साथ जीने के लिए विवश हैं या मौत का इंतजार करने के लिए। गाँव के लोगों खासकर महिलाओं और बच्चों पर स्वास्थ्य केंद्र की कमी का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। कुपोषण, प्रसव और मौसमी बीमारियों के लिए प्राइवेट डॉक्टर ही एकमात्र सहारा होते हैं। पर ये तो आप भी जानते होंगे की प्राइवेट अस्पताल का खर्च कितना ज्यादा होता है। गाँव के लोग, जिनमें ज्यादातर किसान और मजदूर भी शामिल हैं--अपनी कमाई का अच्छा खासा हिस्सा लुटा देते हैं। बहुत से ग्रामीणों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वो शहर तक का सफर कर सकें या प्राइवेट अस्पताल मे इलाज करवा सकें।  सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि मैं इस स्थिति को बदलना चाहता हूँ, अपने गाँव और गाँववासियों के लिए स्वास्थ्य केंद्र बनवाना चाहता हूँ और मुझे यकीन है कि सरकार हमारी बात को सुनेगी। मेरा साथ दें। आपको बताता चलूँ कि आजादी के बाद लगभग 1960 में, ग्रामीणों की पहल और सरकार के सहयोग से फाग गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का निर्माण हुआ था। आज ये स्वास्थ्य केंद्र एक जरजर इमारत है, जहाँ लोग अपनी गाय-भैंस बाँधते हैं। अगर स्वास्थ्य केंद्र की अच्छे से देखभाल होती तो ये नौबत नहीं आती। स्वास्थ्य केंद्र की माँग के लिए पूरा गाँव एकजुट है--ग्रामीणों ने प्रखंड अधिकारी, जिला लोकसूचना अधिकारी, स्वास्थ्य सचिव, बिहार सरकार तक को इस गंभीर समस्या के बारे में अवगत कराया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। मेरा मकसद बस यही है कि बिहार के इस दूर-दराज के गाँव में स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण हो जाए। शायद शहर में रहने वाले हमारे भाइ-बहनों को स्वास्थ्य केंद्र के बारे में पता नहीं होगा पर मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि स्वास्थ्य केंद्र गाँव के लोगों का सहारा होते हैं, गरीबों का सहारा होते हैं। हमारे गाँव को एक स्वास्थ्य केंद्र मिल जाए और किसी माँ को उसके नवजात की लाश ना देखनी पड़े।

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