2018-19 की दूसरी पूरक अनुदान माँगें लोकसभा में पारित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

2018-19 की दूसरी पूरक अनुदान माँगें लोकसभा में पारित

demand-for-second-supplementary-grant-of-2018-19-passed-in-lok-sabha
नयी दिल्ली 31 दिसंबर, अलग-अलग मुद्दों पर कांग्रेस तथा अन्नाद्रमुक के हँगामे के बीच वित्त वर्ष 2018-19 के लिए 85,948.86 करोड़ रुपये की दूसरी पूरक अनुदान माँगों तथा उनसे जुड़ा विनियोग विधेयक आज लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गये। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विधेयक पर करीब ढाई घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुये बताया कि इसमें करीब 70 हजार करोड़ रुपये तकनीक अनुदान माँगा गया है जबकि जबकि अतिरिक्त माँग मात्र 15 हजार करोड़ रुपये की है। उन्होंने कहा कि वित्तीय अनुशासन के मार्चे पर सरकार का प्रदर्शन काफी बेहतर है। वित्तीय घाटा, चालू खाता घाटा, विदेशी मुद्रा भंडार का उच्च स्तर, आर्थिक विकास दर, मुद्रास्फीति जैसे सभी आर्थिक पैमानों पर इस सरकार का प्रदर्शन आजादी के बाद की किसी भी सरकार से बेहतर रहा है।  पूर्ववर्ती सरकारों को निशाना बनाते हुये उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ नारे दिये जबकि मोदी सरकार ने उन्हें साधन दिये। मंत्री ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 2009 से 2014 के बीच औसत खुदरा महँगाई दर 10.4 प्रतिशत रही थी जो अभी 3.5 प्रतिशत पर है। वस्तु एवं सेवा कर लागू करने से पहले आयकर भरने वालों की संख्या 3.8 करोड़ थी जो साढ़े चार साल में बढ़कर 6.86 करोड़ हो गयी है। सरकार पाँच साल पूरा होते-होते इसके सात लाख से ऊपर पहुँच जाने की उम्मीद है। आज से पहले किसी सरकार के कार्यकाल में आयकर दाताओं की संख्या दुगुणी नहीं हुई है।  वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार को वित्तीय घाटा पाटने के लिए रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आरक्षित निधि की जरूरत नहीं है। लेकिन, जब कई देशों में केंंद्रीय बैंकों की आरक्षित निधि आठ प्रतिशत और रूढ़िवादी देशों में भी 14 फीसदी है तो क्या आरबीआई की आरक्षित निधि 27-28 प्रतिशत के उच्च स्तर पर होनी चाहिये? उन्होंने कहा कि यह अतिरिक्त राशि बैंकों के पुन:पूँजीकरण तथा अन्य विकास कार्यों में लगायी जा सकती है। 

कोई टिप्पणी नहीं: