धर्माधर्मपरिचर्चा इसके सम्बन्ध में मुम्बई से मुकेश सेठ बताते हैं कि किस तरह इस वट वृक्ष पर अन्याय हुआ फिरभी सीना ताने आज भी खड़ा है यह "वट वृक्ष" कहानी कुम्भ स्थली प्रयाग राज की है। मुगल शासक अक़बर, जहाँगीर समेत कई बादशाहों ने अक्षय वट वृक्ष को सनातन धर्म, संस्कृति,परम्परा व सभ्यता का प्रकाशपुंज मान नष्ट करने का करते रहे अथक प्रयास। [मुग़लों से लेकर अंग्रेजो तक ने सैकड़ो सालो तक सनातन धर्मी हिन्दुओ को अक्षय वट वृक्ष के दर्शनों पर लगाये रहे कठोरता पूर्वक बंदिशें] (10 जनवरी को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शासनादेश जारी कर आम जनता के दर्शनार्थ खुलवा कर दर्ज कराया इतिहास में अपना नाम) प्रयागराज(इलाहाबाद) कुम्भ स्थल में अक़बर के द्वारा निर्मित क़िले में अवस्थित अक्षय वट वृक्ष का मतस्य पुराण मे वर्णन है कि जब प्रलय आता है, युग का अंत होता है, पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, और सबकुछ डूब जाता है ! उस समय भी चार वटवृक्ष नही डुबते, उनमे सबसे महत्वपूर्ण वटवृक्ष जो प्रयागराज नगरी के तट पर अवस्थित है। मान्यता है कि इश्वर इस वृक्ष पर बालरुप में विराजमान हैं,और बारम्बार होनेवाले प्रलय के बाद नई सृष्टि की संरचना करते हैं।अपनी इसी विशिष्टता के कारण यह वटवृक्ष अक्षयवट के नाम से जाना जाता है,ऐसा वट जिसका कभी भी क्षय नही होता।
बीते 10 जनवरी 2019 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस वटवृक्ष को हिन्दु श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया है, इसके साथ ही सरस्वती कूप मे देवी सरस्वती की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी की गई,जैन मत में यह मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इसी वटवृक्ष के नीचे तपस्या की थी, बौद्घ मत मे भी इस वृक्ष को पवित्र माना गया है।
वाल्मिकी रामायण और कालिदास रचित रघुवंश मे भी इस वृक्ष की चर्चा है,आशा और जीवन का संदेश देता है यह वटवृक्ष भारतीय संस्कृति का एक प्रतिक है,किन्तु प्रश्न यह उठता है की इतने महत्वपूर्ण वटवृक्ष से हिन्दुओं को 425 वर्षो से दूर क्यों रखा गया था ? वास्तव मे यह वृक्ष जिस तरह सनातनता का विचार देता है, वह अत्यंत विपरीत समयकाल मे भी हिन्दुओं को भविष्य के लिए आशा का प्रतिक था। अकबर इसे एक चुनौती मानता था, इसलिए उसके आदेश पर वर्षो तक गर्म तेल इस वृक्ष के जड़ों मे डाला गया,लेकिन यह वृक्ष फिर भी नष्ट नही हुआ,अकबर के बेटे जहांगीर के शासनकाल मे पहले अक्षयवट वृक्ष को जलाया गया, फिर भी वृक्ष नष्ट नही हुआ, इसके बाद जहाँगीर के आदेश पर इस वृक्ष को काट दिया गया, लेकिन जड़ों से फिर से शाखाऐं निकल आई, जहांगीर के शासन काल के बाद भी मुगल शासन में अनेको बार वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास किया गया था। लेकिन यह वृक्ष हर बार पुनर्जीवित होता रहा। मुगलों के बाद यह किला अंग्रेजो के पास रहा, और उन्होंने भी मुगलो के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को जारी रखा,स्वतंत्रता के बाद यह किला भारतीय सेना के नियत्रंण मे है,यहाँ आम श्रद्धालुओं का आना संभव नही था, श्रद्धालुओं और संतो के लगातार मांग के बाद भी किसी सरकार ने इस वृक्ष के दर्शन के लिए सुलभ बनाने मे रुची नही दिखाई, किन्तु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासो से यह संभव हो सका है।जिसका दर्शन करने के लिए आमजनों के साथ साथ कई राजनीति दल और स्वयं माननीय प्रधानमंत्री सर मोदी जी भी दर्शन लाभ से आनन्दित हुए।

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