राफेल के झूठ को जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं एन राम : जेटली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 10 फ़रवरी 2019

राफेल के झूठ को जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं एन राम : जेटली

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नयी दिल्ली, 10 फरवरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अंग्रेज़ी अखबार ‘दि हिन्दू’ में राफेल संबंधी रिपोर्ट को लेकर अखबार के पूर्व संपादक एन राम पर आरोप लगाया कि वह एक झूठ काे अधूरे दस्तावेजाें के सहारे जिन्दा करने एवं सरकार पर लोगों का विश्वास तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।  अमेरिका से उपचार कराकर लौटने के बाद श्री जेटली ने अपने पहले ब्लॉग में लिखा, “राफेल सौदा न केवल भारतीय वायु सेना की युद्धक क्षमता को मजबूत करता है बल्कि सरकारी खजाने के लिए हजारों करोड़ रुपये बचाता है। जब इसका झूठ ढह गया, तो उस झूठ को दोबारा जिंदा करने के लिए एक अधूरा दस्तावेज पेश किया गया। इस झूठ के रचनाकारों को लगा कि इस अधूरे दस्तावेज से वे जनता का सरकार पर पूरा भरोसा तोड़ लेंगे।”

श्री जेटली ने कहा कि कि पिछले दो महीनों में कई फर्जी अभियान देखे गए हैं। उनमें से हरेक अभियान नाकाम रहा। झूठ की उम्र लंबी नहीं होती है। इसीलिए विपक्षी ‘मजबूर विरोधाभासी’ एक झूठ के बाद दूसरे झूठ पर खेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2008-2014 के बीच बैंकों में लूटमार का आयोजन करने वालों ने आरोप लगाया कि औद्योगिक ऋण माफ किए गए हैं। एक भी रुपया माफ नहीं किया गया। इसके विपरीत, बकाएदारों को प्रबंधन से बाहर कर दिया गया है। आर्थिक अपराधियों को भागने देने के लिए सरकार और उसके मंत्रियों की सांठगांठ का झूठ तब ढह गया जब जांच एजेंसियां एक के बाद कई प्रमुख बकाएदारों और बिचौलियों को वापस लाने में सफल हो रही थीं। उन्होंने कहा कि जीएसटी के खिलाफ अभियान लागू होने के महज अठारह महीनों के भीतर ही समाप्त हो गया। यह व्यवस्था करों को कम करने, छोटे व्यवसायों को छूट देने तथा करदाता और अधिकारियों के इंटरफेस को समाप्त करके भ्रष्टाचार / उत्पीड़न को खत्म करने के लिए एक उपभोक्ता अनुकूल उपाय बन गयी। इसके बाद हमला अब एक नए मैदान में स्थानांतरित हो गया है। अब कहा गया है कि संस्थाएँ दबाव में हैं। यह आरोप उन लोगों के अलावा और किसी के पास नहीं है जिनके जीवन का इतिहास संस्थानों को पूरी तरह से नियंत्रित करने का रहा है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून के कठोर प्रावधानों को लेकर जब कुछ कलमकारों को यह महसूस हुआ कि इससे स्वयं उन्हें परेशानी हो सकती है तो ‘संस्थानों पर हमले’ के तर्क की व्याख्या करना उन्हें जरूरी लगने लगा।

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