वन भूमि अधिकार रक्षा सम्मेलन 2 मार्च को, आक्रोशपूर्ण रैली 3 मार्च को
भोपाल,27 फरवरी। एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.रनसिंह परमार का कहना है कि यू.पी.ए.सरकार के कार्यकाल में वनाधिकार कानून 2006 कानून पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि जब एन.डी.ए.की सरकार आयी तो केंद्र सरकार ने वनभूमि अधिकार के पक्ष आदिवासियों का साथ नहीं दी और न सर्वोच्च न्यायालय में ही जाकर पैरवी की । इसका परिणाम सामने है। गत 13 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जारी आदेश से देश के 20 लाख आदिवासी परिवारों जिनके वनभूमि के दावे भिन्न-भिन्न कारणों से खारिज किये गये है, उनके सामने आवास और आजीविका का घोर संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि याचिका में आदिवासियों की पैरवी केन्द्र सरकार के द्वारा ठीक ढंग से नहीं की गयी। आगे कहा कि एकता परिषद संगठन विगत तीस वर्षो से आदिवासी समुदाय के अधिकार के लिए गांधीवादी तरीके से काम कर रहा है। वर्तमान परिस्थिति में वंचित समुदाय के हितों की रक्षा करने के लिए एकजुट होकर सरकार से याचिका में आदिवासी और वनाधिकार के पक्ष को मजबूत ढंग से रखने के लिए दबाव कायम करना और आगामी रणनीति के लिए विचार विमर्श किया जाना जरूरी है। इसलिए 2 मार्च को गांधी भवन, भोपाल में वनभूमि अधिकार रक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया है और 3 मार्च को हबीबगंज से गांधीभवन तक की रैली आयोजित की गयी है जिसमें 2 हजार आदिवासी और वनवासी भाग लेंगे। मार्च ऑन थर्ड मार्च में बैचेन आदिवासी नजर आएंगें। इस कार्यक्रम में विशेष रूप से एकता परिषद के प्रणेता और गांधीवादी नेता श्री राजगोपाल पी.व्ही जी शामिल रहेंगे। अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर आदिवासी और वनवासी हितों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए उनके अधिकारों की आवाज को बुलंद करें।
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