पटना, 16 फरवरी। बिहार विधान मंडल में 2019-20 का पेष हुए सालाना बजट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इस बजट में समग्र विकास दृष्टि का अभाव है। राज्य की बहुसंख्यक गरीब भूमिहीन आबादी की आवष्यकताओं को बजट में अनदेखी की गयी है। आगामी लोकसभा चुनाव के दृष्टि में रखकर आंकड़ों का सब्जबाग दिखाकर जनता को भरमाने का प्रयास किया गया है। सत्य नारायण सिंह ने कहा कि सबसे ज्यादे चर्चा बिहार के विकास को लेकर की गयी है। दावा किया गया है कि 2017-18 में विकास की दर 9.9 प्रतिषत से बढ़कर 11.3 प्रतिषत हो गयी। देखने से तो लगता है कि बिहार तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन इस सच्चाई को विधानमंडल में पेष आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट ने ही बेनकाब कर दिया है। आंकड़ों से यह पता चलता है कि 2011-12 और 2016-17 के बीच की अवधि में औसत विकास दर 5.3 प्रतिषत रहा जो राष्ट्रीय औसत विकास दर से कम है। इतना ही नहीं, कृषि विकास दर 2016-17 में 13.2 प्रतिषत थी जो 2017-18 में घटकर 4.2 प्रतिषत हो गयी। यह भी ध्यान देने लायक है कि 2011 से 2017 की अवधि में कृषि विकास दर मात्र0.1 प्रतिषत रही। उसी तरह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर 7.6 प्रतिषत से घटकर 2.7 प्रतिषत हो गयी। अब यह कैसे विष्वास किया जाय कि बिहार तेज गति से विकास कर रहा है? इस बात का बहुत शोर है कि एन.डी.ए. सरकार ने बिहार का 2,00,501.01 करोड़ का बजट पेष किया है। अवष्य ही यह बजट का बड़ा आकार है। लेकिन इस बड़े आकार वाले बजट से भी कई महत्वपूर्ण चीजें गायब हैं। बिहार जैसे राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत बड़ा योगदान है और कृषि के विकास के लिए भूमि सुधार का होना आवष्यक है। भूमि सुधार कार्यक्रम को इस बजट में छोड़ दिया गया है। बंद्योपाध्याय कमिटी की रिपोर्ट ने कहा है कि बिहार में 20 लाख 95 हजार एकड़ भूमि अवैध कब्जे में है जिसका अधिग्रहण करके 21 लाख भूमिहीनों के बीच बांटा जाना चाहिए। इस बारे में बजट में कुछ भी नहीं कहा गया है। उसी तरह बिहार के कृषि की सबसे बड़ी त्रासदी बाढ़ और सुखाड़ है। बाढ़ के स्थायी निदान पर भी बजट में कोई योजना नहीं है। सुखड़ से निपटने के लिए बजट में सिंचाई की लघु एवं मध्यम योजनाओं का भी अभाव है।
बिहार में खासकर ग्रामीण बिहार मे सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। युवकों के रोजगार सृजन के लिए बजट में कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। षिक्षा पर जरूर अधिक खर्च दिखलाया गया है। लेकिन बजट की राषि का अधिकांष हिस्सा स्थापना और षिक्षा के वेतन पर खर्च होने वाला है। षिक्षा बजट में अधिक व्यय का प्रावधान कर सरकार वाह-वाही लूट रही है। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि बिहार में प्रति छात्र षिक्षा पर पहले कितना खर्च होता था और आज कितना खर्च हो रहा है। अगर यह बताया जाता तो स्कूल काॅलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को पता चलता कि 2019-20 के बजट में उनके लिए क्या बढ़ोत्तरी की गयी है। इस बड़े षिक्षा बजट में यह भी नहीं बताया गया कि मानदेय की अल्प राषि पर जो षिक्षक काम कर रहे हैं उनको निर्धारित वेतनमान दिया जायेगा यह नहीं जबकि पटना हाईकोर्ट ने फैसला किया कि मानदेय पर काम करने वाले सभी षिक्षकों को भी निर्धारित वेतनमान दिया जाय। इस बजट से इन षिक्षकों को निराषा हुई है। सत्य नारायण सिंह ने कहा है कि इस बजट की सबसे बड़ी कमी यह है कि राज्य के क्षेत्रीय असंतुलन और आर्थिक असमानता को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में बिहार में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय 42 हजार रूपये से अधिक है। लेकिन प्रति व्यक्ति वार्षिक आय के मामले में षिवहर, सुपौल और मधेपुरा सबसे नीचे आखिरी पायदान पर हैं। पिछले कई वर्षों से षिवहर की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय छः हजार रूपये है। इस बजट में इस क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने की दिषा में कुछ भी नहीं है। उसी तरह आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए ठोस योजना की जरूरत है जो इस बजट में नहीं है। औद्योगिक दृष्टि से बिहार अत्यन्त पिछड़ा राज्य है फिर भी इस बजट में बिहार के औद्योगिक विकास के लिए बंद करखानों को खोलना और कृषि पर आधारित नये उद्योगों को खड़ा करना जरूरी है। लेकिन इस बजट में इस पर कुछ नहीं है। बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब है। जिसका बुरा असर व्यवसायिक एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। लेकिन इस बजट में कानून-व्यवस्था के सुधार की दिषा में कोई उल्लेखनीय व्यवस्था नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें