पूर्णियां : गाजर घास कृषि उत्पादन को 40 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है : प्राचार्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 अप्रैल 2019

पूर्णियां : गाजर घास कृषि उत्पादन को 40 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है : प्राचार्य

- विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान अंतर्गत गाजर घास उन्मूलन के लिए प्राचार्य ने दिलायी स्वच्छता की शपथ
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पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददत) : भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ पारसनाथ के निर्देश पर राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई प्रभारी डाॅ पंकज कुमार यादव द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के सह अधिष्ठाता सह प्राचार्य ने की। अपने संबोधन में प्राचार्य ने बताया कि पर्यावरण सुरक्षा के बारे में विश्व के सभी लोगों जागरुक करने के लिए विश्व पृथ्वी दिवस का आयोजन पूरे विश्व में किया जाता है। धरती पर जीवन को बचाये रखने के लिए इस प्राकृतिक संपत्ति को बचाना बहुत ही जरूरी है। आज हम सभी पार्थेनियम घास के बढ़ते दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए इसके उन्मूलन की शुरुआत करें। इस मौके पर महाविद्यालय परिसर से प्राचार्य द्वारा छात्र छात्राओं एवं कर्मचारियों को स्वच्छता के लिए गाजर घास उन्मूलन की शपथ दिलाई गई। उन्होंने स्वयं एवं महाविद्यालय को स्वस्थ रखने के लिए गाजर घास उन्मूलन की आवश्यकता पर बल दिया। प्राचार्य द्वारा छात्र छात्राओं को पृथ्वी पर पारथेनियम घास के बढ़ रहे क्षेत्रफल एवं इसका मनुष्य के स्वास्थ्य एवं कृषि उत्पादन पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव पर विस्तृत जानकारी दी गई। पारथेनियम घास की परागकण के द्वारा मनुष्यों में स्वास रोग एवं अस्थमा जैसी बीमारियों की शुरुआत होती है। प्राचार्य ने ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थमा के प्रमुख कारण में यह बताया कि पार्थेनियम घास जिसे गाजर घास, कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चंतक चादनी वं गनी बूटी अन्य नामों से जाना जाता है। यह ग्रामीण क्षेत्र में अस्थमा का प्रमुख कारण है। इस गाजर घास की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका से हुई। भारत में इस घास का प्रवेश वर्ष 1955 में महाराष्ट्र द्वारा अमेरिका से गेहूँ का आयात किया गया था, उसी के साथ इस घास का बीज भारत मेें आया। वर्तमान समय में हमारे पास के वातावरण सड़क, रोड, रेल लाइन वं गली मुहल्ले हर स्थान पर पार्थेनियम घास को आसानी से देखा जा सकता है। देश की करीब 35 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर गाजर घास का आच्छादन होे गया है। प्राचार्य ने किसानों को संदेश दिया कि फूल आने के पहले गाजर घास को अपने खेत से उखाड़ दें इसके बाद ही फसलों की बुआई करें। गाजर घास आज किसी न किसी प्रकार से कृषि उत्पादन को 40 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है। इससे होने वाले नुकसान को ध्यान में रखते हुए प्राचार्य ने राष्ट्रीय सेवा योजना के प्रभारी को निर्देशित किया कि राष्ट्रीय सेवा योजना स्वंय सेवकों से श्रमदान कराकर इस घास का उन्मूलन महाविद्यालय सेे पूरी तरह समाप्त किया जाए। डाॅ पंकज कुमार यादव द्वारा छात्र छात्राओं कोे इसके हानिकारक प्रभाव पर जानकारी दी गई।  इस मौके पर जेएन श्रीवास्तव, डाॅ अनिल कुमार, डाॅ रवि केसरी, एसपी सिन्हा, अनुपम कुमारी, डाॅ एनके शर्मा एवं प्रो तपन गोराई के साथ अन्य सभी वैज्ञानिक एवं कर्मचारियों की सहभागिता रही।

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