- खून पसीना बहाकर दूसरों का आशियाना बनाते व सजाते हैं लेकिन खुद समय के साथ मुफलिसी में घिरते चले जाते हैं
कुमार गौरव । पूर्णिया : सरकारी योजनाएं तो बहुत समय से ही बनी हुई है लेकिन उनका लाभ सबों तक नहीं पहुंच पाता है। लोग भविष्य बनाने की ख्वाहिश लेकर प्रदेशों की ओर मजदूरी करने पलायन कर जाते हैं। जहां जी तोड़ मेहनत करने वाले मजदूरों को दो जून की रोटी से ज्यादा कुछ नहीं मिल पाती है। वे भी अच्छा पहनने, एक अदद छत के नीचे रहने और बच्चों का भविष्य बनाने को लेकर खून पसीना बहाकर दूसरे के आशियाने बनाते व सजाते हैं। लेकिन खुद समय के साथ मुफलिसी में घिरते चले जाते हैं। न तो खेती से मुनाफा और न ही रोजगार की व्यवस्था। घर परिवार की रोजी रोटी चलाने के लिए युवाओं का गांव से पलायन बढ़ रहा है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने में नाकाम है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होते जाने, आबादी बढ़ने और प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों कसबों की ओर मुंह करना पड़ रहा है। यह ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन रोकने और उन्हें गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए केंद्र व राज्य सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। देश में ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रथम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और ग्रामीण भारत से गरीबी और भूखमरी को हटाना है। मगर जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के चलते ग्रामीण युवाओं का गांव छोड़ना बदस्तूर जारी है। ग्रामीण क्षेत्र के बड़ी संख्या में युवा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। यह हाल कोहवारा पंचायत में बसे महादलित टोले की है। जहां भारी संख्या में मजदूर दूसरे प्रदेशों की ओर तो पलायन कर रहे हैं लेकिन आर्थिक स्थिति में अबतक कोई सुधार नहीं हुआ है। पक्के मकानों एवं बच्चों को उच्च शिक्षा देना अब भी उनके लिए एक सपना ही बनकर रह गया है। अच्छे कपड़े पहनना एवं अच्छे भोजन भी नसीब नहीं हो पा रही है। अपने परिवार से कोसों दूर दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी कर रहे मजदूरों की स्थिति का अंदाजा सिर्फ उनके परिवार ही लगा सकते हैं।
...काम नहीं मिलने के कारण दूसरे प्रदेश गए :
घर में तीन बेटे, दो बहुएं एवं पांच पोता पोती। घर की जनसंख्या बड़ी होने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी। गांव एवं दूसरे खेतों में कोई काम नहीं मिल रहा था। सरकार के द्वारा मनरेगा का भी काम नहीं मिल रहा था। ऐसे में दूसरे प्रदेश जाना एकमात्र रास्ता था। जिससे हमलोगों को दो जून की रोटी नसीब हो पाती। : जीरिया देवी, निवासी, कोहवारा पंचायत, चंपानगर।
...पति खुद रहते हैं भूखे और भेजते हैं पैसे :
घर परिवार से कोसों मील दूर दूसरे प्रदेशों में जाकर मेरा पति काम करता है। लेकिन वहां उनको काम के हिसाब से रूपए नहीं मिलते हैं। अधिक काम करवा कर भरपेट भोजन भी नहीं देते हैं लेकिन इतना सब दुख झेलकर वह मजदूरी कर रहे हैं और जो रूपए भेजते हैं उनसे हम सब परिवार का भरण पोषण करते हैं। : चंपा देवी, निवासी, कोहवारा पंचायत, चंपानगर।
...सरकारी दिहाड़ी से घर परिवार चलाना मुश्किल :
गांव में ज्यादातर काम हो चुका है। गांव की लगभग सभी सड़कें बन चुकी हैं। तालाब भी खुद चुके हैं। ऐसे में मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा है। साल के 12 महीनों में ज्यादा से ज्यादा दो महीने काम मिल रहा है। खेती के काम भी दो सौ रुपए दिहाड़ी मिलती है। अब दो सौ की दिहाड़ी से घर का खर्च नहीं चलता है। : सजनी देवी, निवासी, कोहवारा पंचायत, चंपानगर।
...अन्य प्रदेश की तरह बिहार में भी फैक्ट्रियां स्थापित हो :
दूसरे प्रांतों की तरह अगर बिहार के हर जिले में अलग अलग कंपनियों की फैक्ट्रियां स्थापित हो जाती तो मजदूरों का काफी हद तक पलायन बंद हो जाता। यहां के मजदूर बिहार के विकास में हाथ बंटाते। अगर आसपास कोई भी छोटा मोटा काम मिल जाता तो पलायन की नौबत नहीं आती। पलायन के बाद भी अब तक घर की स्थिति ठीक नहीं हुई है। : जुगाई मंडल, निवासी, कोहवारा पंचायत, चंपानगर।
...सरकार सिर्फ सपना दिखाती है :
सरकार हर बार वायदे करती है कि हम गरीबी मिटाएंगे। लेकिन यहां एक अदद मजदूरी के लिए हमलोग भटक रहे हैं। मेरे चार बच्चे हैं। सभी छोटे हैं। सपना है कि उच्च शिक्षा देकर उसको शिक्षित बनाऊं मगर मेरा पति प्रदेश से इतने रूपए भेजते हैं कि सिर्फ घर का खर्च भी चल पाता है। घर का विकास तो दूर की बात है। : रीता देवी, निवासी, कोहवारा पंचायत, चंपानगर।
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