नहीं चला "72 हजार", भारी पड़ा ‘चौकीदार’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 24 मई 2019

नहीं चला "72 हजार", भारी पड़ा ‘चौकीदार’

chaukidar-beat-72-hajar
नयी दिल्ली, 23 मई, कांग्रेस ‘गरीबी पर वार, 72 हजार’ के नारे के साथ इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने की रणनीति के साथ उतरी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘चौकीदार’ अभियान, बालाकोट हवाई हमला, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं के आक्रामक प्रचार के आगे ढेर हो गई। इस चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थिति यह है कि वह 2014 के अपने 44 सीटों के आंकड़ों में महज कुछ सीटों की बढ़ोतरी करती दिख रही है।  चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी कई जानकारों का यह कहना था कि अगर कांग्रेस सीटों का शतक भी लगा लेती है तो वह उसके और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लिए सहज स्थिति होगी, हालांकि ऐसा नहीं होता दिख रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में समूची पार्टी ने प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित रखा और राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ‘चौकीदार चोर है’ का प्रचार अभियान चलाया जिसके जवाब में मोदी और भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान शुरू किया। राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा ‘न्यूनतम आय गारंटी’ (न्याय) योजना को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर पेश किया। पार्टी को उम्मीद थी कि गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का उसका वादा भाजपा के राष्ट्रवाद वाले विमर्श की धार को कुंद कर देगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा। पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे। वह बार बार यही कहते रहे कि जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा। कांग्रेस 2014 के आम चुनाव में 44 सीटों पर सिमट गई थी। यह पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। इसके बाद पिछले पांच वर्षों के सफर में कांग्रेस ने कई पराजयों का सामना किया, लेकिन पिछले साल नवंबर-दिसंबर में तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में उसकी जीत ने पार्टी की लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदों को ताकत देने का काम किया।  यह बात अलग है कि पार्टी हवा के इस रुख को बरकरार नहीं पाई।

कोई टिप्पणी नहीं: