पूर्णिया आर्यावर्त संवाददाता) : घर बनाने की तमन्ना में सारा जहां ढूंढ़ आए, अपने नक्शे के हिसाब से जमीन कुछ कम है...यह मशहूर पंक्ति भले ही किसी और भाव से लिखी गई हो, लेकिन आजकल हर आम आदमी घर बनाने की तमन्ना लिए इन्हीं पंक्तियों को गुनगुना कर अपने मन को तसल्ली देने में मशगुल है। बीते दो दशक में जिस कदर जमीन के भाव आसमान छूने लगे हैं उसने आम आदमी को अपना घर बनाने की कोशिशों में काफी बाधा पहुंचाई है। जिले के शहरी क्षेत्र एवं एनएच 57 में इस समय जमीन की कीमत सातवें आसमान पर है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसे कई इलाके हैं जहां जमीन की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। शहरी क्षेत्र में जितनी भी जमीन बची है वह सामान्य लोगों की पहुंच से पहले ही दूर थी। वहीं शहर के आठ से 10 किलोमीटर के रेंज में भी जो जमीन बिक रही है वह आम आदमी के बजट से दूर है। ऐसे में सामान्य कमाई वाले लोग चाहकर भी अपने परिवार को घर मुहैया नहीं करा पा रहे हैं।
...बिचौलियों के कारण बढ़ रहीं जमीन की कीमतें :
कसबा व पूर्णिया सदर प्रखंड में अलग अलग मौजे में 10 से 50 लाख तक की सरकारी वैल्यू की जमीन है। वहीं शहरी क्षेत्र में 60 से 70 लाख तक की सरकारी वैल्यू की जमीन है। हालांकि बिचौलियों के बढ़ते वर्चस्व के कारण यह जमीन दोगुनी कीमत में बेची जा रही है। बिचौलियों की ओर से जमीन की कीमत तय की जा रही है और उसपर मोटा मुनाफा कमा कर ग्राहकों को बेचा जा रहा है। खरीद बिक्री के दौरान बेचने वाले और खरीदार के बीच भी बिचौलिये पहले से ही आपसी सहमति बना दे रहे हैं। जमीन के विक्रेता भी जमीन की कीमत आसानी से मिलता देख चुपचाप रहने में ही भलाई समझते हैं। इस कारण खरीदार को मोटी रकम चुकानी पड़ रही है। जिले में 80 प्रतिशत जमीन का कारोबार बिचौलियों के माध्यम से हो रहा है। जिससे जमीन मालिक को भी सही कीमत नहीं मिल पा रही है। वहीं ग्राहक भी अपना बजट खराब कर रहे हैं।
...संयुक्त परिवार का टूटना भी एक कारण :
शहर का दायरा तो पहले से ही सिमटता जा रहा है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार के टूटने के कारण भी अधिकांश परिवार शहर की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में हर कोई अपना सेपरेट घर बनाने की कोशिश में लगा है। यही कारण है कि शहरी क्षेत्र में जमीन की कीमत बढ़ रही हैं। वहीं शहर में उपलब्ध शैक्षणिक व्यवस्थाओं व अन्य बुनियादी सुविधाओं ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शहर की ओर आकर्षित किया है। बड़ी संख्या में लोग गांव की कृषि योग्य जमीन बेच कर उस पैसे से शहर में मकान बना रहे हैं। जो लोग संपन्न परिवार से हैं उनके लिए गांव से शहर आकर घर बनाना कोई बहुत मुश्किल की बात नहीं है लेकिन जो लोग सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि के हैं उन्हें अपने घर के लिए जमीन खरीदने में काफी परेशानी होती है। ऐसे लोग गांव छोड़ विकास के उपभोग के लिए शहर तो आते हैं लेकिन आधी कमाई किराये के मकान में ही खर्च हो जाती है।
...चंवर की जमीन में भी बन रहा आशियाना :
विकास के इस दौर में लोग शहर में कहीं भी एक छोटा घर बनाकर स्थायी होना चाह रहे हैं। ऐसे में शहर में बढ़ती जमीन की कीमत के कारण शहर के आठ से 10 किलोमीटर के रेंज में चंवर की उपजाऊ जमीन पर भी आशियाना बनने लगे हैं। बीते एक दशक में कसबा प्रखंड व शहरी क्षेत्र के आसपास बसे ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों की संख्या में घर बने हैं। बीते पांच वर्षों में कसबा व जलालगढ़ अंचलों में दो हजार से भी अधिक नए घरों का निर्माण हुआ है। इनमें ज्यादातर कृषि योग्य उपजाऊ जमीन में ही निर्माण हुआ है। नए फोरलेन बाइपास रोड में जमीन की कीमतों में हाल के दिनों में दो से तीन गुना बढ़ोतरी हुई है।
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