गिरीश कर्नाड को लंदन-वासियों की श्रद्धांजलि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 29 जून 2019

गिरीश कर्नाड को लंदन-वासियों की श्रद्धांजलि

girish-karnad-tribute-in-londonलंदन, 26 जून 2019:  नेहरू सेंटर-लंदन और वातयन: पोएट्री ऑन साउथ बैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत स्वर्गीय श्री गिरीश कर्नाड के बहुआयामी व्यक्तित्व पर दिल को छू लेने वाली झलकियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। नेहरू केंद्र के उपनिदेशक, श्री बृज किशोर गुहारे, के संक्षिप्त परिचय और स्वागत के बाद, कुछ गणमान्य लोगों द्वारा गिरीश कर्नाड को श्रद्धांजलि दी गई, जो उन्हें करीब से जानते थे। शास्त्रीय संगीत के जानकार और सामा-आर्ट्स के कलात्मक निर्देशक, जय विश्वदेव, के अनुरोध पर युवा संगीतकार अनुराग ढौंडियाल (कुली ओडिसी के कलाकार) ने कबीर का एक भावभीना भजन सुनाकर इस राजसी संध्या के मंच को अलंकृत किया। उनका साथ दिया डैनी आर्बिटर (गिटार) और गेर्ग कुक (सेलो) ने।  

80 के दशक के बाद से चैनल 4 टीवी के लिए वार्षिक भारतीय फिल्म-सीज़न को क्यूरेट करने वाली फिल्म निर्माता, नसरीन मुन्नी कबीर ने राधा और रघु के 'अप्पा' के बारे में उनके अंतिम दिनों के संदेशों को पढ़ा। "हालाँकि बहुत से लोगों के लिए वह बहुत कुछ थे पर हमारे लिए वह अपने चतुर हाथों द्वारा बनाए साए बनाने वाले अप्पा/थाथा थे; जिनमें झपकी लेने की अद्भुत क्षमता थी। उनके चमकीले कुर्ते और बैग्गी-पजामें; उनके हरी कलम का वृहद् संग्रह जो उनकी जेबों पर स्याही के दाग छोड़ जाते थे। जब हम उनके आसपास रहकर बातें करते थे तो वह आराम से बैठे सपने देखते हुए बेहद खुश होते थे।  जब वह आराम कर रहे होते तो उनके पोते उनके कमरे के फ़र्श पर लेट कर चित्रकारी कर रहे होते थे।”  पुरस्कृत ब्रिटिश लेखक और किंग्स कॉलेज लंदन में पोएट्री की प्रोफेसर डॉ रूथ पडेल ने बताया कि कैसे गिरीश जी ने उनकी पुस्तक 'टाइगर्स इन रेड वेदर' में उनकी मदद की और उनकी कुड़ीअट्टम-केरल यात्रा की व्यवस्था की। रुथ ने गिरीश कर्नाड के सम्मान में अपनी मशहूर कविता, टाइगर ड्रिंकिंग एट फ़ॉरेस्ट पूल, का पाठ किया। भारत के लोकप्रिय इतिहास, सुदूर पूर्व और चीन के इतिहास के पुरस्कृत विशेषज्ञ, जॉन के, जो ऑक्सफ़ोर्ड में उनके साथ पढ़े और रहे थे, ने अपने कॉलेज के दिनों के कई हास्य प्रसंग के हवाले से कर्नाड के जीवन के एक और चरण का खुलासा किया कि कैसे ऑक्सफ़ोर्ड पहुंचते ही कर्नाड वहाँ के सभी क्लब्स के चहेते सदस्य बन गए थे और कैसे वह निर्विरोध सचिव अथवा अध्यक्ष चुन लिए जाते थे। भारत और विदेश में नृत्य कलाकार के रूप में पहचानी जाने वाली डॉ चित्रा सुंदरम ने, गिरीश कर्नाड के विशेष संदर्भ में, गोल्डस्मिथ कॉलेज में नृत्य और रंगमंच के शिक्षण के विषय में बताया। लेखिका, फ़िल्म इतिहासकार, टैगोर गायिका और फिल्म निर्माता डॉ संगीता दत्ता, जिन्होंने अपनी पुरुस्कृत फ़ीचर फ़िल्म, लाइफ गोज़ ऑन, में गिरीश कर्नाड को निर्देशित किया था, बताया कि कैसे वह युवा कलाकारों को प्रेरित करते थे और कैसे देर रात गए वह नए कलाकारों के साथ फ़िल्म के दृश्यों का अभ्यास किया करते थे।  सौंदर्य एवं भावना-शास्त्र की इतिहासकार, अनुवादक और पटकथा लेखक, डॉ नसरीन रहमान ने, गिरीश कर्नाड और अपनी लम्बी मित्रता के सन्दर्भ में सभा को बताया कि गिरीश कर्नाड साउथ-एशिया में शान्ति के लिए कितने लालायित रहते थे और कहा करते थे कि यह तभी संभव है जब दोनों देशों के लोग आपस में मिले-जुलें।  जब नसरीन ने उनसे अपनी माँ के चल बसने पर अपनी बेबसी का इज़हार किया तो उन्होंने कहा कि "...पर मृत्यु अनंत से मिलने का केवल एक ही ज़रिया है।"

अलकनंदा समर्थ, जो 1959 में पहली बार गिरीश कर्नाड से मिलीं थीं; जब कर्नाड ने उन्हें अल्काज़ी की प्रसिद्ध थिएटर यूनिट रिपर्टरी-बॉम्बे में 'स्ट्राइंडबर्ग की मिस जूली' के रूप में देखा और उनके अभिनय की सराहना की थी। अलकनंदा ने दर्शकों के साथ अपनी बहुत सी ख़ुशनुमा यादें साझा कीं। प्रकाशक, साहित्यिकार, फिल्म-निर्माता और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस-चेन्नई में गिरीश कर्नाड के एक सहयोगी मार्टिन पिक मार्टिन पिक ने अपना ओ.यू.पी. (चेन्नाई) में पेशा आरम्भ करने वाले, मार्टिन पिक ने गिरीश कर्नाड के साथ उस समय काम किया, जब वह 'संस्करा' में अभिनय कर चुके थे और मद्रास प्लेयर्स के बहुत से नाटक निदेशित करने के कारण अच्छा  अनुभव अर्जित कर चुके थे।  उन्होंने मार्टिन का परिचय रामानुजन से करवाया और ओ.यू.पी. को राज़ी किया कि वे उनके the Striders, चोलामंडलम में रहने वाले कलाकारों के अतिरिक्त वासुदेव को भी Oxford Modern Poets में सम्मिलित करें। कवि, फिल्म इतिहासकार, वृत्तचित्र फिल्म निर्माता और दक्षिण एशियाई सिनेमा फ़ाउंडेशन के संस्थापक निदेशक-संपादक, ललित मोहन जोशी, ने अपनी संस्था और नेहरू-केंद्र में अपने कार्यक्रमों में गिरीश जी की मदद के बारे में बात की। हाल ही में श्याम बेनेगल ने उन्हें फ़ोन पर बताया था कि कैसे उनके घर पर गिरीश कर्नाड और ओम पुरी रात-रात भर गरमागरम बहस करते रहते थे और कैसे अगली सुबह बेनेगल परिवार को वे फ़र्श पर सोते मिलते थे। 

नेत्र-सर्जन, निर्माता-निर्देशक, फ़िल्म-निर्माता और कवि, डॉ निखिल कौशिक ने गिरीश जी के साथ अपनी पहली मुलाकात का ख़ुलासा किया कि कैसे उन्होंने अपने परिवार के चिकित्सीय संबंध के बारे में बताया कि उनके पिता और अब उनकी बेटी भी डाक्टर है।  निखिल ने इस अवसर पर किशन सरोज द्वारा रचित एक प्रासंगिक गीत, वो देखो कोहरे में चन्दन-वन डूब गया,  भी प्रस्तुत किया जिसकी भूरी भूरी प्रशंसा की गयी। नेहरू सेंटर की पूर्व प्रशासनिक अधिकारी नीलम सिंह ने गिरीश जी की पारदर्शिता, ईमानदारी और कर्मचारियों को अपने परिवार सामान मानने का ज़िक्र किया और कहा कि 2003 में लंदन छोड़ने के बाद भी कैसे उन्होंने सबसे संपर्क बनाए रखा और कैसी निडरता से वह स्टाफ़ का साथ दिया करते थे। लेखक और प्रख्यात कहानीकार, डॉ वायू नायडू, जिन्होंने यू.के में नोना शेफ़र्रड द्वारा निर्देशित गिरीश कर्नाड के नाटकों - 'हयवदन' और 'बाली - द सैक्रिफ़ाइस' - को प्रोडूयूज़ किया, ने बताया कि कैसे गिरीश कर्नाड सेट्स पर और बाहर भी सबके साथ सुन्दर व्यवहार करते थे, चाहे वह कार-पार्क अटेंडेंट ही क्यों न हो। अंत में,  लेखक और वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर, ने आयोजकों की ओर से सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि गिरीश कर्नाड जैसे एक बड़े क़द की हस्ती का तीन वर्षों का साथ उनके लिए एक सपने की तरह है, इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए कि वह क्यों आज भी हम सबके दिलों में रहते हैं और सदा रहेंगे। अंत में उन्होंने नेहरू केंद्र के समक्ष एक प्रस्ताव भी रखा कि गिरीश कर्नाड के जीवन और कार्यों को समर्पित एक तीन-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाना चाहिए। कार्यक्रम में कई विद्वानों, कलाकारों और मीडिया-कर्मियों ने भाग लिया, बहुत से लोग लंदन के बाहर से  एक लंबा सफ़र तय करके अपनी श्रद्धाँजलि देने वहाँ पहुंचे थे।  आयोजन के दौरान गिरीश कर्नाड की उपस्थिति स्पष्ट महसूस की गई; कार्यक्रम के अंत तक थिएटर में एक अध्यात्मिक ऊष्मा छाई रही।  

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