लोकसभा के 2019 के चुनाव-नतीजों ने उन ऐसे सभी मिथकों, अटकलों और अनिश्चितताओं पर पर्दा गिरा दिया जो मोदी की जीत को लेकर संदेह प्रकट कर रहे थे। साझा-विपक्ष द्वारा मोदी के विरुद्ध चिनौतीपूर्ण संघर्ष के बीच, मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।दरअसल, विपक्ष द्वारा 1914 में ‘चायवाला’ और 2019 में ‘चौकीदार चोर है’ के रूप में टैग किए गए, श्री मोदी कभी भी इन तुच्छ और पक्षपाती नारों से निराश या दुखी नहीं हुए, बल्कि जनता के लिए विशेषरूप से गरीबों, पीड़ित और शोषितों के लिए लगातार काम करते रहे। सत्ताधारी सरकार द्वारा लगभग पचास जन-कल्याणकारी कार्यक्रम प्राथमिकता से और प्रभावी ढंग से चलाए गए। विपक्ष ने कभी भी इन परियोजनाओं/कार्यक्रमों के दूरगामी निहितार्थों के बारे में परवाह करने की जहमत नहीं उठाई। इन जन-कल्याणकारी कार्यक्रमों को पिछले पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कार्यान्वित किया गया।हुआ यूं कि एक तरफ विपक्ष निराधार आरोपों-आक्षेपों को बढ़ावा देने में व्यस्त रहा, सही-गलत नारे लगाते हुए सरकार को निशाने पर लेता रहा और उधर सत्तारूढ़ सरकार इन नारों की चिंता किये विना जन-हितकारी योजनाओं और अन्य सुधार-कार्यक्रमों को लागू करने के लिए कार्यशील रही।विपक्ष आलोचना करता रहा,नारे गढ़ता रहा और सरकार बेहिचक जनसाधारण के हिततार्थ काम करती रही। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई सभी सामाजिक और आर्थिक योजनाओं ने वोटर को खूब प्रभावित किया और साथ ही मोदी की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। इसी के साथ राष्ट्रवाद में मोदी के दृढ़ विश्वास ने भी मोदी को न केवल जनता का नायक बनाया बल्कि देश का सच्चा राष्ट्रवादी नेता भी बना दिया। उनके प्रसिद्ध नारे “सबका साथ, सबका विकास” ने मोदी को करोड़ों भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक और जन-नेता बनाया। संक्षेप में, किसी भी लोकतांत्रिक /गैर-लोकतांत्रिक देश के विपक्ष को इस महान नेता की सरलता,कार्यक्षमता, मानव-दृष्टि, बड़ों के प्रति सम्मान की भावना और कुशल वक्तृता से बहुत-कुछ सीखने को मिल सकता है। कौन नहीं जानता की प्रजातंत्र में ‘शब्द’ ही काम आते हैं,जनता को लुभाते हैं और उन्हें प्रभावित करते हैं।
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
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