परंपरागत खेती को छोड़ नई तकनीक से कर रहे औषधीय पौधों की खेती
कुमार गौरव । पूर्णिया : सर्पगंधा की खेती कर जिले के जलालगढ़ प्रखंड के किसान जितेंद्र कुशवाहा खुशहाल जीवन जी रहे हैं। वो पिछले करीब दस वर्षों से अनाज की खेती के साथ साथ सर्पगंधा की खेती दो से तीन एकड़ में कर रहे हैं और महज 75 हजार रूपए खर्च कर 3-4 लाख रूपए की आमद कर रहे हैं। विशेष बातचीत के क्रम में जितेंद्र कहते हैं कि इसकी खेती वे केवीके जलालगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर कर रहे हैं और इसका फायदा भी उन्हें मिल रहा है। बता दें कि सर्पगंधा की कई प्रजातियां होती हैं। जिसमें राववोल्फिया सरपेंटिना प्रमुख है। राववोल्फिया टेट्राफाइलस दूसरी प्रजाति है। जिसे औषधीय पौधों के रूप में उगाया जाता है। सर्पगंधा के जड़ औषधि के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं। इस पौधे के नर्म जड़ से सर्पेंन्टीन नामक दवा निकाली जाती है। इसके अलावा जड़ में रेसरपीन, सरपेजीन, रौलवेनीन, टेटराफिर्लीन आदि अल्कलाइड भी होते हैं। यह एक छाया पसंद पौधा है इसलिए आम, लीची एवं साल पेड़ के आसपास प्राकृतिक रूप से उगाया जा सकता है। जिले के जलालगढ़ में जितेंद्र कुशवाहा के अलावा एकाध किसान ही इसकी खेती करते हैं। जितेंद्र ने बताया कि सपंगंधा की फसल 18 माह में तैयार हो जाती है।
...10 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर होती है खेती :
कृषि विज्ञानी सुनील झा कहते हैं कि इसकी खेती उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु में की जा सकती है। 10 डिग्री सेंटीग्रेड से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक इसकी खेती के लिए बेहतर तापमान है। जून से अगस्त तक इसकी खेती की जाती है। 1200-1800 मिलीमीटर तक वर्षा वाले क्षेत्र में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। सर्पगंधा की खेती बीज के द्वारा, तना कलम एवं जड़ कलम के द्वारा की जा सकती है। इसकी खेती सभी तरह की जमीन में की जा सकती है। लाल लैटेरिटक उपजाऊ मिट्टी उपयुक्त है। यह अम्लीयता को बर्दाश्त करता है।
...ये हैं औषधीय गुण :
- स्थानीय लोग इसे सांप काटने में प्रयोग में लाते हैं
- गांव में औरतें इसका उपयोग बच्चों को सुलाने में करती हैं क्योंकि इसमें सुस्ती गुण होता है। प्रसव काल में भी इसका उपयोग किया जाता है
- मानसिक रोगी को रिलैक्स करने के लिए इसे दिया जाता है, इससे रोगी शांत हो जाता है
- यह रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को कम करता है
- जड़ के एक्सट्रेक्ट को पेचिस तथा हैजा में इसका इस्तेमाल होता है
- पेटदर्द तथा पेट के कीड़े को मारने के लिए गोलमिर्च के साथ जड़ का काढ़ा बनाकर दिया जाता है
...कैसे तैयार करें पौधे :
कृषि वैज्ञानिक डॉ अभिषेक प्रताप सिंह कहते हैं कि बीज द्वारा नर्सरी में बिचड़ा तैयार किया जा सकता है। इसके लिए ऊंचा नर्सरी बनाते हैं। बीज की बुआई वर्षा के आरंभ में (मई-जून) में करते हैं तथा रोपाई अगस्त माह में करते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 8-10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बुआई के पहले बीज को पानी में 24 घंटे पानी में फुला लेने पर अंकुरण अच्छा होता है। बीज अंकुरण कम (15-30 प्रतिशत) होता है तथा 3-4 सप्ताह समय लगता है। नर्सरी में 20-25 सेंटीमीटर के फासले पर 2 सेंटीमीटर गहरे कुंड में 2-5 सेंटीमीटर की दूरी पर गिराते हैं। दो माह के बाद तैयार बिचड़े को (10-12 सेंटीमीटर के होने पर) 45 सेंटीमीटर गुना 50 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करते हैं। वहीं कलम द्वारा जड़ अथवा तना दोनों को लिया जा सकता है। जड़ में कलम के लिए पेंसिल मोटाई के 2.5 से 5 सेंटीमीटर लंबाई के छोटे छोटे टुकड़े कर लेते हैं। इसे 5 सेंटीमीटर की गहराई पर पौधशाला में लगाते हैं। तीन सप्ताह बाद कल्ले आने पर तैयार खेत में रोपाई करते हैं। तना से पौधा तैयार करने के लिए 15-20 सेंटी मीटर पेंसिल मोटाई के कलम बनाते हैं। हरेक कलम में 2-3 नोड (गांठ) रहना जरूरी है। कलम को पौधशाला में लगाते हैं। 4-6 सप्ताह में रूटेड कटिंग को तैयार खेत में रोपाई करते हैं। रूट शूट कटिंग द्वारा भी प्रसारण किया जा सकता है। इसमें 5 सेंमी रूट कटिंग के साथ तना का कुछ हिस्सा को भी रखते हैं। उन्होंने कहा कि खेत को मई माह में जुताई करते हैं। वर्षा आरंभ होने पर गोबर की सड़ी खाद 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देकर मिट्टी में मिला दें। लगाते समय 45 किलो नाइट्रोजन, 45 किलो फॉस्फोरस तथा 45 किलो पोटाश दें। नाइट्रोजन की यही मात्रा (45 किलो) दो बार अक्टूबर एवं मार्च में दें। कोड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। जनवरी माह से लेकर वर्षा काल आरंभ होने तक 30 दिन के अंतराल पर तथा जाड़े के दिनों में 45 दिन के अंतराल पर सिंचाई दें। सर्पगंधा डेढ़ से दो वर्ष की फसल है। जाड़े के दिनों में जब पत्तियां झड़ जाती हैं तब जड़ को सावधानीपूर्वक उखाड़ना चाहिए। पौधों को छोड़ देने पर उपज बढ़ जाती है। तीन साल के पौधे में अधिकतम उपज होती है। उखाड़ते समय जड़ से छिलका नहीं हटना चाहिए। जड़ को 12-15 सेंटीमीटर टुकड़े में काटकर सूखा लिया जाता है। सूखने पर 50-60 प्रतिशत वजन की कमी हो जाती है। औसत उपज 100 किलो होती है। बिक्री दर 70-80 रूपए प्रतिकिलो है।
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