पेयजल संकट के बाद अब बाढ़ की भयावह समस्या, पानी मैनेजमेंट में असफल है सरकार.
पटना 14 जुलाई 2019 भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि यह अजीब विडंबना है कि एक तरफ बिहार सरकार सूबे में पेयजल संकट के सवाल पर बैठक बुलाती है, ठीक उसी समय राज्य का बड़ा हिस्सा बाढ़ के पानी में डूब जाता है. बाढ़ तो लंबे अर्से से एक संकट बना हुआ है लेकिन हाल के वर्षों में पेयजल का गहराता संकट एक और बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है. इस साल सूबे के लगभग आधे जिलों को भयानक पेयजल का संकट झेलना पड़ा है. जाहिर सी बात है कि यह सरकार के जल के मैनेजमेंट में घोर असफलता को ही जाहिर करता है. साथ ही, पेयजल के कारपोरटीकरण व उसके अंधाधुंध इस्तेमाल ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है. इसलिए सरकार को इस मसले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और जल संसाधनों को कारपोरेट हाथों में देने व उसके निजीकरण की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाते हुए जल संसाधनों के संरक्षण के लिए कानून बनाना चाहिए. एक तरफ सूखा और दूसरी तरफ बाढ़ की इतनी तबाही झेलने वाले बिहार राज्य में बाढ़ के इस अतिरिक्त पानी के वैज्ञानिक भंडारण की कोई योजना सरकारों के पास नहीं रही है. अगर ऐसा होता तो एक तरफ हम बाढ़ की तबाही को कुछ कम कर सकते थे और दूसरी तरफ बाढ़ के उस पानी के भंडारण से सूखे से निपट सकते थे. बिहार सरकार “बिहार ग्राउंड वाटर कंजर्वेशन बिल-2019” ला रही है. बड़े पैमाने पर भूमिगत जल का दोहन करने वाले डिब्बा व बोतल बंद पानी, शराब, फूड प्रोसेसिंग, कागज, रियल इस्टेट, एकल एयर कंडीशन प्लांट, होटल, रेल आदि द्वारा उपयोग किए गए भूजल की भरपाई का भी इस कानून में प्रावधान होना चाहिए. औरंगाबाद, फतुहा आदि जगहों पर जो सीमेंट फैक्ट्रियां चल रही हैं, उसमें भारी मात्रा में पेयजल का उपयोग हो रहा है. इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए.
1. जल स्रोतों और निकायों के संरक्षण को लेकर सरकार तत्काल कानून बनाए. जल स्रोत भरकर कब्जे को अपराध घोशित करे.
2. पुराने सर्वे में मौजूद जल स्रोतों अऔर निकायों को कब्जे से मुक्त कर उसके जीर्णोंद्धार की विस्तृत योजना बनाए.
3. तालाबों के सौंदर्यीकरण के नाम पर कंक्रीट से नाथेने के जिस माॅडल पर काम कर रहा है वह तालाब-पोखरों की हत्या कर देगा, इस पर रोक लगे. बेड से किसी रूप में छेड़ छाडऋ न किया जाए.
4. नदियों की धारा बदलने अथवा गैर जरूरी तटबंधों से सैंकडो नदियां मर गई हैं. उसे चालू कराए.
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