एनएमसी विधेयक का विरोध : दिल्ली में रेजीडेंट चिकित्सकों ने काम का किया बहिष्कार, निकाला मार्च - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

एनएमसी विधेयक का विरोध : दिल्ली में रेजीडेंट चिकित्सकों ने काम का किया बहिष्कार, निकाला मार्च

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नयी दिल्ली, एक अगस्त ,राष्ट्रीय राजधानी में मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कई अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र का नियमन करने वाले महत्वपूर्ण विधेयक के विरोध में हड़ताल पर हैं और उन्होंने आपात विभाग समेत सभी सेवाएं रोक दीं हैं।एम्स, आरएमएल अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल और एलएनजेपी समेत कई सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने काम का बहिष्कार किया, मार्च निकाला और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक के विरोध में नारे लगाए। यह विधेयक अभी राज्यसभा में पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि यदि विधेयक राज्यसभा में पारित हो जाता है तो वे ओपीडी, आपात विभाग, आईसीयू और ऑपरेशन थियेटरों में काम नहीं करेंगे और अपना विरोध अनिश्चितकाल के लिए जारी रखेंगे। एनएमसी भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह लेगा। यह विधेयक 29 जुलाई को लोकसभा में पारित हुआ था।

एम्स और सफदरजंग अस्पतालों के रेजीडेंट डॉक्टरों और स्नातक की पढ़ाई कर रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के कारण बृहस्पतिवार सुबह रिंग रोड पर यातायात बाधित हो गया। पुलिस ने उन्हें संसद की ओर मार्च करने से रोक दिया। पुलिस ने बताया कि प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों को हिरासत में ले लिया गया और उनमें से कुछ को बाद में रिहा कर दिया गया। संसद के आसपास के इलाकों में पुलिस बल की भारी तैनाती देखी गई। संसद के आसपास की सड़कों पर बैरिकेड लगाए गए, इलाके में यातायात की गति भी धीमी रही। फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) से जुड़े डॉक्टरों के एक अन्य समूह ने आरएमएल अस्पताल से संसद तक मार्च करने की योजना बनाई थी। फोर्डा के महासचिव डॉ. सुनील अरोड़ा ने दावा किया कि डॉक्टरों को संसद की ओर जाने से रोक दिया गया। मरीजों को हड़ताल के बारे में जानकारी नहीं थी जिसके कारण वे घर लौट गए और कुछ ने काफी समय तक इंतजार किया। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल, बी आर अंबेडकर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, डीडीयू अस्तपाल तथा संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टरों ने भी काम का बहिष्कार किया और हड़ताल में शामिल हो गए। दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल एलएनजेपी में ओपीडी बंद रही और आपात विभाग में भी बहुत कम मरीज देखे गए। एलएनजेपी के चिकित्सा अधीक्षक किशोर सिंह ने कहा, ‘‘हमारे यहां ओपीडी में हर दिन 9,000 मरीज आते हैं और करीब 900 मरीज ईआर विभाग में आते हैं। आज ओपीडी बंद रहने के कारण कई मरीजों को लौटना पड़ा जिनमें से बड़ी संख्या में मरीज शहर से बाहर से आए हुए थे। ईआर विभाग में अभी तक 300 मरीज आए हैं और हम अपने कॉलेज के चिकित्सा शिक्षा कर्मियों को बुला रहे हैं।’’ गाजियाबाद निवासी पंकज पांडेय अपनी जांच कराने के लिए आए थे लेकिन उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा और आखिरकार खाली हाथ घर लौटना पड़ा। कई अस्पतालों में आपात विभाग और आईसीयू में फैकल्टी सदस्यों, प्रायोजित रेजीडेंट्स, पूल अधिकारी, अन्य चिकित्सा या सर्जिकल विभाग के डॉक्टरों को बुलाया गया जबकि ओपीडी, रेडियो-डायग्नोसिस और लैबोरेटरी डायग्नोसिस सेवाएं कई स्थानों पर बंद रहीं।



अधिकारियों ने बताया कि नियमित सर्जरी रद्द कर दी गईं और कई अस्पतालों में केवल आपात मामले ही देखे गए। सफदरजंग अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुनील गुप्ता ने कहा, ‘‘हम आमतौर पर एक दिन में करीब 150-180 सर्जरी करते हैं। सभी नियमित सर्जरी रद्द की गई और केवल आपात मामले ही देखे गए।’’ हड़ताल का सबसे अधिक असर पड़ोसी शहरों से आए मरीजों पर पड़ा क्योंकि उन्हें इलाज के लिए काफी परेशानी झेलनी पड़ी या कर्मचारियों की कमी के कारण अस्पतालों की ओपीडी में घंटों इंतजार करना पड़ा। उत्तर प्रदेश निवासी 60 वर्षीय शशि देवी ने कहा कि वह अपने बीमार बेटे और पति के साथ बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी पहुंचीं और अपने बेटे को बृहस्पतिवार को एक डॉक्टर को दिखाना चाहती थीं लेकिन दिखा नहीं पाई और उन्हें बाद में आने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि उन्हें मालूम नहीं कि वह दिल्ली में कहां रुकेंगी। चिकित्सा जगत ने यह कहते हुए विधेयक का विरोध किया कि विधेयक ‘‘गरीब विरोधी, छात्र विरोधी और अलोकतांत्रिक’’ है। भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने भी विधेयक की कई धाराओं पर आपत्ति जताई है। आईएमए ने बुधवार को 24 घंटे के लिए गैर जरूरी सेवाओं को बंद करने का आह्वान किया था। उसने एक बयान में चेताया था कि अगर सरकार उनकी चिंताओं पर उदासीन रहती है तो वे अपना विरोध तेज करेंगे। एम्स आरडीए, फोर्डा और यूनाइटेड आरडीए ने संयुक्त बयान में कहा था कि इस विधेयक के प्रावधान कठोर हैं।



बयान में कहा गया था कि विधेयक को बिना संशोधन के राज्यसभा में रखा जाता है तो पूरे देश के डॉक्टर कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएंगे जो समूचे देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित कर सकता है। डॉक्टर अनिश्चितकालीन समय के लिए जरूरी और गैर जरूरी सेवाओं को बंद कर देंगे। देश के डॉक्टरों एवं चिकित्सा छात्रों को विधेयक के कई प्रावधानों पर आपत्ति है। आईएमए ने एनएमसी विधेयक की धारा 32(1), (2) और (3) को लेकर चिंता जताई है जिसमें एमबीबीएस डिग्री धारकों के अलावा गैर चिकित्सकीय लोगों या सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को लाइसेंस देने की बात की गई है। इसके अलावा चिकित्सा छात्रों ने प्रस्तावित ‘नेक्स्ट’ परीक्षा का उसके मौजूदा प्रारूप में विरोध किया है। विधेयक की धारा 15(1) में छात्रों के प्रैक्टिस करने से पहले और स्नातकोत्तर चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों में दाखिले आदि के लिए ‘नेक्स्ट’ की परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रस्ताव रखा गया है। उन्होंने विधेयक की धारा 45 पर भी आपत्ति जताई है जिसमें उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के सुझावों के विरुद्ध फैसला लेने की शक्ति होगी।

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