विशेष : उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों का संचालन करेगी, अजय पीरामल की एनजीओ 'प्रथम' - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 सितंबर 2019

विशेष : उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों का संचालन करेगी, अजय पीरामल की एनजीओ 'प्रथम'

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी निजी हाथों में सौपने की योजना पर अमल होने की शुरूआत प्रयागराज से हुई है। यहां बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आने वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने का जिम्मा निजी संस्था को दे दिया गया है। पढ़ाने का आदेश बेसिक शिक्षा अधिकारी संजय कुशवाहा ने 16 सितंबर को जारी किया है, आदेश में कहा गया है कि निजी संस्था (एनजीओ) 'प्रथम' शिक्षण संस्थान कक्षा 4 एवम 5 के साथ भाषा और गणित की कक्षाएं चलाएगा। इन विद्यालयों से कोई और काम नही लिया जाएगा और इन स्कूलों के प्रधानाचार्यो को आदेश दिया गया है कि वह इस संस्था को पूरा सहयोग प्रदान करें। इसे यूपी सरकार द्वारा शिक्षा का निजीकरण करने की दिशा में पहला कदम माना जा सकता है। आपके लिये यह जानना जरूरी है कि जिस निजी संस्था को प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गयी है उस संस्था 'प्रथम' के फाउंडर अजय पीरामल है जो पिरामल ग्रुप के मालिक है पिरामल भारत के शीर्ष 50 अरबपतियों में शामिल है। भारत के सबसे बड़े रईस मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की शादी आनंद पीरामल के साथ हुई। आनंद पीरामल पीरामल ग्रुप और श्रीराम ग्रुप के चेयरमैन अजय पीरामल और स्वाती पीरामल के बेटे हैं। अजय पिरामल का कारोबार दुनियाभर के 100 देशों में फैला हुआ है। फॉर्मास्युटिकल, पैकेजिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज के साथ ही रियल इस्टेट में भी उनकी कंपनी दमदारी से खड़ी है। अजय पीरामल का एनजीओ 'प्रथम' एजुकेशन सेक्टर की सबसे बड़ी निजी संस्था है जिसका 'रीड इंडिया' कैम्पेन के तहत 33 मिलियन बच्चों तक पहुंचने का दावा किया गया है।  जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ के देवेंद्र श्रीवास्तव ने संस्था के अध्यापकों के प्रमाणपत्र जमा कराने को कहा है। उन्होंने कहा कि यदि संस्था के लोग उनके स्कूल में पढ़ाने आते हैं तो उनके शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की प्रति वे जमा कराएंगे। उनके टीईटी, शिक्षक पात्रता परीक्षा आदि से संबंधित प्रमाणपत्र, आधार की फोटोकॉपी व फोटो जमा कराएंगे। यदि ये लोग आवश्यक शैक्षिक अर्हता पूरी नहीं करते तो नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के उल्लघंन मानकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा करेंगे।

जानकारों के मुताबिक शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत परिषदीय स्कूलों में पढ़ाने के लिये शिक्षक प्रशिक्षण एवम शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करना अनिवार्य है। लेकिन शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को ताक पर रख दिया गया है। यह सब सही से समझने के लिए आपको यह जानना जरूरी है कि  शिक्षा का अधिकार अधिनिमय (राइट तू एजुकेशन) क्या है। साल 1993 में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करे। इस निर्णय को दृष्टिगत लगभग 9 वर्षों के बाद साल 2002 में 86 वां संविधान संशोधन करके मूल अधिकारों में अनुच्छेद 21ए शामिल किया गया, जिसके तहत ऐसी आशा की गई कि सरकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी। 1 अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) लागू हो गया। इसके नियमानुसार सरकारी एवं निजी विद्यालयों में पढ़ाने हेतु शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य है। प्रत्येक विद्यालय हेतु छात्र शिक्षक अनुपात के हिसाब से शिक्षक होंगे। प्राथमिक विद्यालय में 150 छात्र संख्या पर एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 100 छात्र संख्या होने पर   अनिवार्य रूप से पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक होगा (अर्थात 150 एवं 100 छात्र संख्या पर अनिवार्यतः प्रधानाध्यापक होगा इससे कम संख्या पर सरकार चाहे तो रखे या न रखे।) 'एनसीटीई' के अनुसार मार्च 2019 के बाद से कोई भी शिक्षक, शिक्षामित्र, अनुदेशक या कोई अन्य प्रकार के पैराटीचर्स यदि अप्रशिक्षित हैं तो वे अध्यापन हेतु अर्हता नहीं हैं। 

यहां ध्यान देने वाली बात है कि 2002 से लेकर 2009 तक नियुक्त किये गए, एक लाख 78 हजार शिक्षामित्रो को स्थायी नियुक्ति से इसीलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि उनके पास आरटीई अधिनियम के तहत जरूरी अर्हताएं नही थी। ये अलग बात है कि शिक्षकों की कमी का रोना रोने वाली सरकार एक दशक से ज्यादा समय से इन्ही शिक्षामित्रो से प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को पढवाती रही। इनकी तनख्वाह साल 2002 में 1850 रुपये थी जो आज की तारीख में 10,000 रुपये है। इनको तनख्वाह देने में समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत की अनदेखी की गई। अब सरकार उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों को अजय पिरामल के स्वामित्व वाली संस्था 'प्रथम' के हवाले करने जा रही है तो सवाल पूछना तो बनता है कि इस संस्था के पास आरटीई अधिनियम के तहत शिक्षण कार्य के लिये पर्याप्त योग्यता है? इस संस्था के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि इसने लम्बे समय से शिक्षा के क्षेत्र में काम किया है और प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक गैरजिम्मेदार है। लेकिन क्या यह मानने के पर्याप्त कारण है? जाहिर है कि आज की तारीख में प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों को पढ़ाने के काम से ज्यादा दूसरे काम में लगा दिया जाता है। जिनमे जनगणना करवाने, मिड-डे मील तैयार करवाने, पोलियो ड्राप पिलाने और वोटर लिस्ट बनवाने से लेकर चुनाव करवाने तक के काम शामिल है। इन सबके बीच उसे पढ़ाना भी है और गलती से किसी बच्चे ने दो दुन्नी पाँच पढ़ दिया, तो शिक्षण कार्य में स्तरहीनता का आरोप लगा कर उसको गाली देने के लिये सब तैयार खड़े है। लेकिन जनता को फुसलाने का कोई न कोई बहाना तो चाहिये इसके लिए प्राइमरी स्कूलों के गिरते हुए शैक्षिक स्तर का ठीकरा इन शिक्षकों पर फोड़ कर सरकारी स्कूलों को निजी क्षेत्र के हाथों में सौपने की तैयारी कर ली गयी है। 


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--अशोक कुमार निर्भय--

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