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शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

विशेष : सार्वजनिक जीवन में कैसी निजता

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सार्वजनिक जीवन खुली किताब है। उसके किसी भी पन्ने को कभी भी कहीं भी खोलकर पढ़ा जा सकता है। नेतागीरी और फकीरी बहुत ऊंची चीज होती है जो शून्य से आरंभ होती है और अनंत तक जाती है। किसी भी नेता का जीवन एक खुला दस्तावेज होता है। उसमें दुराव—छिपाव की गुंजाइश नहीं होती और जब भी इस तरह की संभावना बनती है तो यह समझना चाहिए कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। कांग्रेसी अक्सर सरकार पर निजता के हनन का आरोप लगाते रहे हैं। सरकार अगर उनका हित भी चाहती है तो उस पर भी उन्हें आपत्ति होती है, आखिर इसे क्या कहा जाएगा? स्विस बैंक की ओर से अपने यहां गोपनीय ढंग से काला धन जमा करने वालों की सूची जारी की गई है। वे लोग भी इसे अपनी निजता का हनन करार दे सकते हैं। बोलने की आजादी सबको है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि कुछ भी बोला जाए।  

केंद्र सरकार ने एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप) सुरक्षा को लेकर बहुत ही निर्णायक और दूरगामी निर्णय लिया है और वह निर्णय यह है कि जिन किन्हीं दिग्गजों को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है। सुरक्षा जवान साये की तरह उनके साथ रहेंगे। वे देश में हों या विदेश में, यह मायने नहीं रखता।इस निर्देश में इस बात की ताकीद की गई है कि एसपीजी सुरक्षा पाने वाले अतिविशिष्टजन अपनी विदेश यात्रा के दौरान एसपीजी जवानों को साथ लेकर ही जाएं। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी विदेश यात्रा रद्द की जा सकती है। यह और बात है कि कांग्रेस को मोदी सरकार का यह फरमान रास नहीं आया है। उसने कहा है कि यह सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की निजता के अधिकार का हनन है। यह सीधे—सीधे उनकी निगरानी की बात है। हालांकि भाजपा ने इससे इनकार करते हुए कहा है कि यह अतिविशिष्टों की सुरक्षा का मामला है। किसी की निजता के हनन जैसी कोई बात नहीं है।

यहां यह बता देना जरूरी है कि देश में केवल चार लोगों के पास ही एसपीजी सुरक्षा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी। मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा मोदी सरकार पहले ही वापस ले चुकी है। उन्हें इसकी जगह जेड प्लस सुरक्षा दी जा चुकी है। इस निर्णय से कांग्रेस का तिलमिलाना स्वाभाविक है। उसकी एक वजह यह भी है कि राहुल गांधी सुरक्षा नियमों को ताक पर रखकर मुस्लिम और ईसाई देशों की यात्रा करते रहे हैं। वर्ष 2014 से अब तक वे 14 बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। एकाध बार ही उन्होंने अपनी यात्रा की जानकारी दी है, वह भी पूरी नहीं। अन्यथा हर बार वे अपनी विदेश यात्रा को गोपनीय रखते रहे हैं। जिस समय डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक आमने— सामने थे, उस दौर चीन के राजदूत से मिल आने को लेकर उनकी आलोचना भी हुई थी। सच तो यह है कि राहुल गांधी कब विदेश चले जाते हैं, यह किसी को पता ही नहीं चलता। सोनिया गांधी भी अपने इलाज के संदर्भ में विदेश गईं। वहां उनका आपरेशन भी हुआ लेकिन बीमारी क्या थी ,यह देश को आज तक पता नहीं है। उस दौरान हालांकि यह भी बताया गया था कि उनका आपरेशन अमेरिका में हुआ था लेकिन बहुत सारे लोगों को आज भी इस बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा है कि उनकी शल्य क्रिया अमेरिका में ही हुई थी।

   राहुल गांधी ने भी अपनी मां के इलाज के लिए विदेश जाने की बात कही थी लेकिन वे विदेश में कहां गए थे, यह किसी को नहीं पता। प्रियंका गांधी भी अपने पति और अपनी मां के साथ ही विदेशी सरजमीं पर बनी रहीं। विगत सात साल से सोनिया गांधी इलाज के संदर्भ में विदेश आती—जाती रहती हैं। उनके बच्चे राहुल और प्रियंका भी उनके साथ होते हैं लेकिन केंद्र सरकार को उनकी जानकारी नहीं होती। जब इंदिरा गांधी की हत्या अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में हुए आपरेशन ब्लूस्टार की वजह से उनसे नाराज सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी। इसके बाद उनके परिवार को सुरक्षा देने के लिहाज से एसपीजी का गठन किया गया था। तब से आज तक इंदिरा गांधी के परिजनों को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है। सवाल यह उठता है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका को भारत में तो एसपीजी सुरक्षा की जरूरत होती है लेकिन वे जब भी विदेश जाते हैं तो अपने साथ एसपीजी के जवानों को ले जाना मुनासिब नहीं समझते। भारत में एसपीजी सुरक्षा साथ रखने में उनकी निजता खतरे में नहीं पड़ती है और विदेश जाते ही उनकी निजता का हनन होने लगता है। यह विरोधाभासी स्थिति तो ठीक नहीं है। कांग्रेस नेताओं को यह तो बताना ही होगा कि वे अपने को विदेश में ज्यादा सुरक्षित पाते हैं या देश में। भारत में वे डरे रहते हैं और विदेश में बेखौफ।

  जब सोनिया गांधी के आपरेशन के बारे में देश ने यह जानना चाहा था कि उन्हें क्या बीमारी है, तब भी कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि यह सोनिया गांधी की निजता का मामला है। इस बावत कुछ भी बताना मुनासिब नहीं समझा जाता लेकिन क्यों, इस सवाल का जवाब संभवत:  किसी भी कांग्रेसी के पास नहीं है।  अगर विदेश की धरती पर उनके साथ कुछ अप्रिय हो जाता है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? तब तो पूरी कांग्रेस एक स्वर से चिल्लाती और सड़क पर प्रदर्शन करती नजर आएगी कि उनके साथ हुई किसी भी अप्रिय घटना के पीछे केंद्र सरकार की साजिश है? कांग्रेस को अपने नेताओं से यह तो पूछना ही चाहिए कि जब कांग्रेस को वाकई अपने नेताओं और उनके मार्गदर्शन की जरूरत होती है, तब वे अचानक गायब कहां हो जाते हैं? उन्हें खुद भी तो अपने शीर्ष नेताओं के बारे में जानकारी नहीं होती। देश को एकबारगी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा की लोकेशन ज्ञात हो या न हो लेकिन कांग्रेसियों को तो इस बावत जानना ही चाहिए। 

  राहुल गांधी फिलहाल बैंकाक में हैं या कोलंबिया में, यह कांग्रेस से बेहतर कोई नहीं बता सकता। कभी उन्हें बैंकाक गया बताया जा रहा है और कभी कोलंबिया में। आज जब देश के दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। कई राज्यों में विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं, ऐसे में राहुल गांधी का विदेश भ्रमण कांग्रेस को मंझधार में छोड़ देने जैसा ही है। अगर एसपीजी के सुरक्षा जवान विदेश में उनके साथ होते तो सरकार को यह तो पता होता कि वे जहां भी हैं, जिस किसी भी दशा में हैं, सुरक्षित हैं। इससे पहले भी राहुल छुट्टियों पर विदेश जाते रहे हैं, जिसे लेकर भाजपा उन पर गायब होने का आरोप लगाती रही है। 2015 में राहुल गांधी के छुट्टी पर जाने को लेकर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया था। भाजपा नेता टॉम वडक्कन  की इस बात में दम नजर आता है कि इस केंद्र सरकार के इस आदेश का मकसद  अतिविशिष्ट व्यक्तियों को सुरक्षा उपलब्ध कराना है। इसमें निजता के उल्‍लंघन जैसा कोई भी मामला नहीं है। राहुल गांधी ने  कभी नानी को देखने जाने की बात कही है और कभी मां के इलाज की लेकिन उनके विदेश यात्रा की जानकारी देने संबंधी ये इक्के —दुक्के प्रसंग ही हैं।

सरकार के नए आदेश के तहत अब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को विदेश दौरे पर भी एसपीजी जवानों को साथ ही ले जाना होगा। सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो यदि किसी वीवीआईपी को एसपीजी सुरक्षा मिली है तो नियमानुसार उसे सुरक्षा में लगे जवानों को अपने साथ रखना होता है लेकिन अपने विदेश दौरों पर अधिकांश वीवीआईपी एसपीजी जवानों को साथ नहीं ले जाते हैं। एसपीजी देश की एक सशस्त्र सेना है जो देश के प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित उनके निकटतम परिवार के सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करती है। सेना की इस यूनिट की स्थापना 1988 में संसद के अधिनियम 4 की धारा 1(5) के तहत की गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री, उनका परिवार और वर्तमान प्रधानमंत्री के परिवार के सदस्य चाहें तो अपनी इच्छा से एसपीजी की सुरक्षा लेने से मना कर सकते हैं। अगर कांग्रेस को लगता है कि एसपीजी उनकी निगरानी करती है तो उन्हें उसे हटाने की मांग करनी चाहिए। ' मीठा—मीठा गप और तीता—तीता थू' का भाव ठीक नहीं है।  

देश के चौदह वीवीआईपी की सुरक्षा में एनएसजी के कमांडो तैनात हैं। ये कमांडो वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव, मायावती के साथ साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित 14 लोगों को  सुरक्षा  दे रहे हैं।  इन वीवीआईपी को सुरक्षा देने में एनएसजी ने अपने 551 एलीट कमांडों को तैनात किया हुआ है। देश भर में सुरक्षा में खतरे को देखते हुए कुल 298  अतिविशिष्ट  लोगों को अलग-अलग कैटेगरी की सुरक्षा दी गई हैंं। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सुरक्षा को "ब्लू बुक" के मानकों के आधार पर सुरक्षा प्रदान की जाती हैं।  स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप सुरक्षा के दौरान एक ब्रीफकेस थामे चलता है। यह एक पोर्टेबल बुलेटप्रूफ शील्ड होता है जो पूरी तरह खुल जाता है और रक्षा कवच का काम करता है। अगर कोई हमला हो जाए तो  सुरक्षा कमांडो फ़ौरन इसे खोल कर वीआईपी को कवर कर  लेता है।  यह ब्रीफकेस उर्फ़ बैलेस्टिक शील्ड किसी भी तरह के हमले से सुरक्षा करने के लिए सक्षम होता है। सरकार को एपीजी ही नहीं, सभी तरह कीसुरक्षा पाने वालों परयह नियम लागू करनाचाहिए कि वे जहां हीं भी जाएं, सुरक्षा जवान उनके साथ हों और जो इस नियम की अनदेखी करें उनकी सुरक्षा व्यवस्था तत्काल प्रभाव से हटा देनी चाहिए।

देखा यह जाता है कि राहुल गांधी अक्सर जब भारत से गायब हो जाते हैं तो उनकी पार्टी की ओर से यही कहा जाता है कि वह सोनियाजी की बीमारी का इलाज कराने जा रहे हैं? कभी कहा जाता है कि वह सोनिया जी का रूटीन चेकअप कराने जा रहे हैं।  कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद जब दोनों मां-बेटे गायब हुए तो उनकी पार्टी की ओर से यही कहा गया।  कांग्रेस प्रवक्ता और वरिष्ठ  अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी  का मानना है कि किसी के व्यक्तिगत जीवन को उसके सार्वजनिक जीवन से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। हमें हर किसी की निजता और आजादी की भावना का सम्मान करना चाहिए। आखिरकार यही तो एक प्रगतिशील और उदार लोकतंत्र की पहचान है। सवाल यह है कि किसी नेता को विदेश में सुरक्षा की जरूरत नहीं है और अपने देश में है तो क्यों है? इसका खुलासा तो होना ही चाहिए। अगर राहुल गांधी और उनके परिजनों को निता की इतनी ही चिंता है तो वे देश पर अरबों रुपये का सुरक्षा भार क्यों डाल रहे हैं? एक बार फिर कहना मुनासिब होगा कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले को अपने कार्यव्यवहार में इतना पारदर्शी होना चाहिए कि किसी को भी उस पर अंगुली उठाने का मौका न मिले।



--सियाराम पांडेय 'शांत'--

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