नयी दिल्ली, पांच जनवरी, बीते साल मानसून से लेकर हाल ही में कड़ाके की ठंड तक, मौसम विभाग के पूर्वानुमान बार बार गलत साबित होने के कारण सवालों में घिरे विभाग ने भारत की जलवायु संबंधी विशिष्ट परिस्थितियों का हवाला देते हुये स्वीकार किया है कि ‘‘भारत जैसी ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में मौसम की चरम गतिविधियों का सटीक पूर्वानुमान कर पाना संभव नहीं है।’’ मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव ने पीटीआई भाषा को बताया कि इस साल रिकार्ड तोड़ सर्दी, दरअसल मौसम की चरम गतिविधि (एक्सट्रीम एक्टिविटी) का नतीजा है। उन्होंने कहा, ‘‘यह सही है कि मौसम के दीर्घकालिक पूर्वानुमान की घोषणा में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था। लेकिन इस साल सर्दी ने पिछले सौ साल के सारे रिकार्ड तोड़ दिये। मौसम विज्ञान की भाषा में इसे मौसम की चरम गतिविधि माना जाता है। भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक पूरी दुनिया में कहीं नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि पल भर में हवा का रुख बदलने वाले ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का सटीक दीर्घकालिक अनुमान लगा पाना मुमकिन नहीं है। इसलिये इसे तकनीकी खामी मानना उचित नहीं है। इससे पहले भी गर्मी और मानसून के बारे में अनुमान गलत साबित होने के सवाल पर डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि भारत में मौसम की विशिष्ट परिस्थितियों के मद्देनजर ही मौसम विभाग ने सबसे व्यापक बहु स्तरीय पूर्वानुमान प्रणाली अपनायी है। इसके तहत देश भर में 200 पर्यवेक्षण केन्द्रों से सतह पर हर तीन घंटे में मौसम का मिजाज लिया जाता है। साथ ही पूरे देश में 35 स्थानों से सेंसर युक्त गुब्बारों की मदद से प्रतिदिन वायुमंडल में हवा के रुख को भांप कर मौसम के रुझान का आंकलन किया जाता है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा इसरो के वैश्विक और स्थानीय उपग्रह तथा राडार से हर दस मिनट में हवा की गति, तापमान और नमी का आंकलन कर मौसम का अनुमान लगाया जाता है। इसके बावजूद वैज्ञानिक अनुमान में त्रुटि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस बार अप्रत्याशित सर्दी के कारणों के बारे में वरिष्ठ मौसम विज्ञानी ने कहा कि इसके दो कारण रहे। पहला, हिमालय क्षेत्र से चलने वाली उत्तर पश्चिमी सर्द हवाओं का जोर, जिनके आगे पूर्व के मैदानी इलाकों से चलने वाली गर्म हवाएं कमजोर पड़ गईं। दूसरा कारण पंजाब से लेकर मैदानी इलाकों में बने बादलों का 15 दिन तक टिके रहना है। इसकी वजह से अत्यधिक सर्दी पड़ी। उन्होंने कहा कि इन दोनों कारकों के 15 दिन तक एक साथ प्रभावी होने के कारण धूप नहीं निकली और सर्द हवाओं के हावी होने के कारण अधिकतम तापमान 9.4 डिग्री और न्यूनतम तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस तक चला गया। डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि इससे मौसम की चरम स्थिति पैदा हुयी और दिल्ली शिमला से ठंडी हो गयी। यह सिलसिला 15 दिन तक चला। आखिर में 29 दिसंबर को हिमालय क्षेत्र से सक्रिय हुये पश्चिमी विक्षोभ ने इस तंत्र को तोड़ कर सर्द हवाओं को कमजोर किया और फिर एक जनवरी से ठंड से राहत मिलने लगी। अत्यधिक गर्मी, उम्मीद से ज्यादा बारिश और अब अप्रत्याशित सर्दी के पीछे जलवायु परिवर्तन को एक वजह बताते हुये उन्होंने कहा, ‘‘मौसम संबंधी हमारे अपने अध्ययनों में भी मौसम की चरम गतिविधियों की बात सामने आ रही है। यह बात वैश्विक स्तर पर स्थापित हो रही है कि जलवायु परिवर्तन में मौसम की चरम गतिविधियों का दौर विभिन्न रूपों में बार बार देखने को मिल रहा है।’’ डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि भारत में भी पिछले एक साल में गर्मी, बारिश और अब सर्दी में मौसम की चरम स्थितियां पैदा हुयीं। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिल्ली एनसीआर में सात फरवरी को ओलावृष्टि हुई, जून में तापमान 48 डिग्री पर पहुंचा, फिर अभी 12 और 13 दिसंबर को 33 मिमी बारिश हुई, यह सब मौसम की अप्रत्याशित और असामान्य गतिविधि ही थीं। एक्सट्रीम एक्टिविटी के भविष्य के स्वरूप के सवाल पर डॉ. श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में विभिन्न रूपों में और अधिक तीव्रता के साथ देखने को मिल सकता है। अचानक बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या पारे में अचानक गिरावट या उछाल होने जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं।’’ उन्होंने कहा कि मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि ऐसी घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी ज्यादा बनी रहेगी।
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