आलेख : रायसीना संवाद से और मजबूत हुआ भारत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 20 जनवरी 2020

आलेख : रायसीना संवाद से और मजबूत हुआ भारत

raisina-dilogue-2020
देश में रोज ही कोई न कोई सम्मेलन होता है लेकिन मायने तो यह रखता है कि उनका हासिल क्या रहा। श्रम तभी सार्थक है जब उसका कोई प्रतिफल सामने आए। वैसे संवाद निरंतर स्थापित किए जाने की परंपरा है। कुछ दिन का संवाद और बाकी दिनों की चुप्पी ठीक नहीं है। मौजूदा केंद्र सरकार को दाद देनी पड़ेगी कि उसने रायसीना संवाद तो आरंभ किया ही है, अपनी सरकार के विदेश से संबंधों को सारे दरवाजे खोल रखे हैं। पाकिस्तान को अपवाद मानें तो अन्य किसी भी देश से वार्ता की निरंतरता बनाए रखने में भारत का कोई सानी नहीं है और इसका लाभ भारत को मिल भी रहा है। हाल ही में रायसीना डॉयलाग के पांचवें संस्करण का समापन हो गया। रायसीना डॉयलॉग 2020 में 12 देशों को विदेश मंत्रियों और 100 देशों के 700 विशेषज्ञों ने शिरकत की। इस अवसर पर  दुनिया के तमाम देशों ने  भू-राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक मंथन तो किया ही, भारत की अहमियत को  भी स्वीकार किया  और वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में और अधिक सक्रिय होने  का उससे आग्रह भी किया। भारत के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। विदेश नीति के धरातल पर भारत की मजबूती उसके विरोधियों के दिल पर सांप लोटने जैसी है।  विगत पांच साल से भारतीय विदेश मंत्रालय आब्जर्वर सिर्च फाउंडेशन के साल मिलकर इस तरह के आयोजन कर रहा है। रूस के विदेश मंत्री सगेर्ई लावरोव ने तो रायसीना डॉयलाग के दौरान भारत और ब्राजील को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने और  विकासशील देशों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अवसर देने की बात कह दी। उनके मुताबिक जी—7 की जगह जी—20 को होना चाहिए क्योंकि ब्रिक्स के फैसलों के लिए जी—7 कोई अहम मुद्दा तय नहीं कर सकता। उन्होंने इस बात की आश्वस्ति भी जताई कि वैश्विक विकास की व्यापक प्रवृत्ति आर्थिक, वित्तीय शक्ति और राजनीतिक प्रभाव के नए केंद्रों के गठन की उद्देश्य प्रक्रिया है। भारत उनमें से एक है। ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद खाड़ी देशों में तनाव के हालात हैं। अमेरिका, जापान और अन्य द्वारा आगे बढ़ाई जा रही नई इंडो-पैसिफिक अवधारणा मौजूदा संरचना को नया रूप देने  की कोशिश है। किसी को रोकने का प्रयास  ठीक नहीं है।  इंडो-पैसिफिक के संचालक भी इस बात को मानते हैं कि भारत एशिया पैसिफिक से  कहीं अधिक लोकतांत्रिक है।
   
इंडो-पैसिफिक को चीन को रोकने के लिए बनाया गया है लेकिन इसका उद्देश्य विभाजनकारी नहीं होना चाहिए। डेनमार्क के पूर्व पीएम और नाटो के पूर्व महासचिव अनस रासमुसनचाहते हैं कि दमनकारी शासकों और शासन के खिलाफ दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देश एकजुट हों। एक गठब्ंधन बनाएं और इसका नेतृत्व भारत करे। इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। आस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन ने कार्यक्रम के लिए वीडियो संदेश भेजा कि भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की ‘रणनीतिक धुरी’ है।  हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत एक अहम शक्ति है और आगे भी बना रहेगा। भारत अब इस क्षेत्र में ज्यादा क्रियाशील हो गया है। मारीसन को ही इस कार्यक्रम का उद्घाटन करना था लेकिन आस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लगने से उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया था। रायसीना संवाद में रासमुसन, न्यूजीलैंड की पीएम हेलेन क्लार्क, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, कनाडा के पूर्व पीएम स्टीफन हार्पर, स्वीडन के पूर्व पीएम कार्ल ब्लिडट, भूटान के पूर्व पीएम शिरिंग तोग्बे, दक्षिण कोरिया के पूर्व पीएम हान सांग सू ने वैश्विक चुनौतियों पर मंथन किया। पूर्व कनाडाई पीएम हार्पर  की मानें तो  जब तक ईरान की मौजूदा सरकार नहीं बदलती, पश्चिम एशिया में शांति नहीं आ सकती। रही बात भारत की तो वह  स्व-परिभाषित है।  वह पश्चिमी उदारवादियों का गढ़ नहीं बनने जा रहा।  हामिद करजई ने कहा कि अमेरिका को यह समझना चाहिए कि वह दूसरे को अपनी बात मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। अमेरिका अफगानिस्तान के साथ ऐसा नहीं कर सका, तो ईरान के साथ कैसे कर सकता है? अमेरिका को समझदारी दिखानी चाहिए। करजई ने अफगानिस्तान में शांति के लिए सरकार और तालिबान के बीच बातचीत की उम्मीद जताई। न्यूजीलैंड के पूर्व प्रमुख क्लार्क ने कहा, जलवायु परिवर्तन की चुनौती से मुकाबला करने के लिए कार्बन उत्सर्जन शून्य करना महत्वपूर्ण है। हालांकि इस बड़े लक्ष्य को पाने के लिए राष्ट्रीय सहमति बनाना जरूरी है। वायु प्रदूषण को वैश्विक समस्या बताते हुए कहा कि कानूनी कार्रवाई, निवेश और सख्ती से ही इसे रोका जा सकता है। भूटानी नेता तोग्बे  की मानें तो संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के मामले में विफल रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले में केवल एक प्रस्ताव पास किया है। इसमें बदलाव की जरूरत है, क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चिंता है। सांस लेना व्यक्ति का मूल अधिकार है और साफ हवा के जरिए उसे यह अधिकार  मिलना ही चाहिए। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक कहा कि भारत अकेला शांति की राह पर नहीं चल सकता। पड़ोसी देश पाकिस्तान यदि द्विपक्षीय वार्ता का इच्छुक है तो उसे भी आतंकवाद की राह छोड़नी होगी। चीन और भारत का कुछ मुद्दों पर असहमत होना अस्वाभाविक नहीं है लेकिन दोनों पक्षों को संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और एक-दूसरे की चिंताओं और हितों का सम्मान करना चाहिए। पाकिस्तान को शांति का मार्ग अपनाना  चाहिए। भारत का रुख हमेशा ही इस क्षेत्र से आतंकवाद को अलग-थलग करना तथा अच्छे और बुरे आतंकवाद के बीच कृत्रिम अंतर को खारिज करने का रहा है। अब यह वैश्विक चर्चा का भी विषय हो गया है। अपने पड़ोसी देशों के लिए हमारा नजरिया संपूर्ण दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता देने का है।  उन्होंने कहा कि हमारे जो भी पड़ोसी देश हिंसा को समर्थन देंगे, नफरत को हवा देंगे और आतंकवाद का निर्यात करेंगे, उन्हें अलग-थलग और उपेक्षित ही रहना होगा।  उन्होंने भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं, हिंद महासागर में सुरक्षा हितों और पड़ोसी देशों, खाड़ी के देशों तथा अमेरिका, चीन एवं रूस जैसी महाशक्तियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का भी जिक्र किया। देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने आतंकवाद के  खात्मे के लिए अमेरिका की राह पर चलने की सलाह दी। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध शुरू करने की बात की।  आतंकवादियों को अलग-थलग करने और आतंकवाद को प्रायोजित  करने वालों के खिलाफ खड़ा  होने पर जोर दिया। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा ऐसे देशों को  ब्लैकलिस्ट करने की मांग भी उन्होंने उठाई। यह और बात है कि उन्हें भारत में कट्टरपंथी नेताओं से चुनौती भी मिल रही है लेकिन चुनौती के भय से चुप तो नहीं रहा जा सकता। 
  
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रायसीना डॉयलाग के शुरुआती सत्र को संबोधित करते हुए कहा भी कि भारत अब सिर्फ दुनिया में होने वाले इस तरह के कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं बनना चाहता बल्कि वह इसके केंद्र के तौर पर स्थापित होना चाहता है। जिस तरह से बहुध्रुवीय विश्व बन रहा है उसमें अपने हितों की रक्षा करने के लिए भी इस तरह का आयोजन  आवश्यक है ताकि एक मंच पर सभी पक्षों की राय जाना जा सके। विश्व के इस बड़े वैश्विक तीन दिनी समागम में रूस, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान सहित 12 देशों के विदेश मंत्रियों और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों की उपस्थिति विशेष मायने रखती है। भारत का तरीका, विकास और प्रतियोगिता की सदी के लिए तैयारी विषय पर बोलकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर  ने भारत का इरादा जाहिर कर दिया है। विश्वशांति, आतंकवाद,पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर मंथन का दुनिया भर में सकारात्मक संदेश गया है। इससे भारत की उभरती ताकत का भी पता चलता है। रूस ने एक भरोसेमंद दोस्त की तरह का व्यवहार किया है। उसने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनाने की वकालत तो की ही है,चार साल में भारत को बहु प्रतीक्षित एस—400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति करने का भी वचन दिया है। जम्मू—कश्मीर मामले में भी उसने भारत का खुलकर समर्थन किया है। चीन—रूस, ईरान के संयुक्त सैन्य अभियान में भारत की अनुपस्थिति पर भी रूस ने चिंता जतायी है, यह अपने आप में बड़ी बात है।

2019 के रायसीना संवाद में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि आतंकवाद, जनसंहार के हथियारों का प्रसार और जलवायु परिवर्तन तीन गंभीर चुनौतियां हैं, जिनसे आज दुनिया जूझ रही है। एक वक्त था जब भारत आतंकवाद की बात करता था और दुनिया के अनेक मंचों पर इसे कानून-व्यवस्था के मसले के रूप में लिया जाता था। लेकिन आज बड़ा या छोटा कोई देश इस मौजूदा खतरे से बचा हुआ नहीं है, खासतौर पर वे देश जो आतंकवाद का समर्थन व प्रायोजन करते हैं। इस डिजिटल युग में चरमपंथ का खतरा बढ़ने से चुनौती और बढ़ गई है। ऐसे में संवाद की बदौलत ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह एक बार फिर शांति का महानायक बनकर उभर सकता है। जिस तरह उससे सक्रिय होने का विश्व आग्रह है,वह इसी बात का संदेश है। 



--सियाराम पांडेय 'शांत'--

कोई टिप्पणी नहीं: