विशेष : सीहोर क्रांति का गौरवमयी इतिहास – कुछ प्रमुख घटनाक्रम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 12 जनवरी 2020

विशेष : सीहोर क्रांति का गौरवमयी इतिहास – कुछ प्रमुख घटनाक्रम

13 जून को बगावती चपातियाँ सीहोर आईं थीं
भारत मे बाहरी सत्ता के विरुद्ध मई 1857 में जो सशस्त्र बगावत हुई थी उसने उत्तर भारत को भी चपेट ले लिया था। बगावत की चिंगारी मालवा व ग्वालियर में पहुँची थी। मालवा क्षेत्र में संगठित बगावत शुरु होने के लगभग 6 माह पूर्व से ही सीहोर भोपाल रियासत में बगावत की तैयारी होने लगी थी। 13 जून 1857 के आसपास सीहोर के कुछ देहाती क्षेत्रों में भी बगावती चपातियाँ पहुँची थीं। इस क्षेत्र में ये चपातियाँ एक गांव से दूसरे गांव भेजी जाती थी, जो इस बात की परिचायक समझी जाती थीं कि इन देहातों के रहने वाले बग़ावत से सहमत हैं। सीहोर के देहाती क्षेत्रों में इन चपातियों के पहुँचने से ये नतीजा निकलता है कि यहाँ रहने वाले बहुत पहले से अंग्रेजी राज को समाप्त करने की तैयारी में जुटे थे। (स्त्रोत हयाते सिकन्दरी नवाब सुल्तान जहाँ बेगम)

सीहोर में बंटे बगावती पर्चे
1 मई 1857 को भोपाल में एक बागय़िाना पोस्टर की पाँच सौ कापियाँ भोपाल सैना में वितरित की गईं थीं। इस पोस्टर में अन्य बातों के साथ लिखा था कि बरतानवी हुकूमत हिन्दुस्तानियों के धार्मिक मामलों में भी मदाखलत कर रही है इसलिये इस सरकार को खत्म कर  देना चाहिये। इसे पढकऱ फौजियों में बांगियाना जज्बात पैदा हो गये और कुछ सिपाहियों ने तय कर लिया था कि देहली जाकर गदर आंदोलन में साथ देंगे। भोपाल सैना का एक व्यक्ति 'मामा कहार खाँÓ रियासत भोपाल के पहले आदमी थे जिन्होने अपना वेतन और नौकरी दोनो को छोड़कर देहली जाने का फैसला कर लिया। उनकी देखा-देखी सिपाहियों ने वेतन लेने से इंकार कर दिया। इस पर सिकन्दर बेगम भोपाल ने मामा कहार खाँ को मनाने के प्रयास किये लेकिन वह राजी नहीं हुए। इस पर उस पोस्टर का एक जबावी पोस्टर 4 जून 1857 को सिकन्दर प्रेस में छपवाया जाकर सिपाहियों में वितरित किया गया। बगावती पोस्टर बाहर से छपकर आये थे जिन्हे यहाँ शिवलाल सूबेदार ने बंटवाये थे।

जब सुअर-गाय की चर्बी के कारतूस नष्ट करना पड़े
मेरठ की तरह सीहोर के फौजियों की भी एक शिकायत यह भी थी कि जो नये कारतूस फौज में उपयोग किये जा रहे हैं, उनमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। सिपाहियों का विचार था कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के दीन-ईमान को खराब कर  देना चाहते हैं। इस अवसर पर किसी ने फौज में यह अफवाह फैला दी कि सिकन्दर बेगम अंग्रेजों को खुश करने के लिये छुपकर ईसाई हो गई हैं। इन अफवाहों से फौज में रोष व्याप्त हो गया। जब यह अफवाह सिकन्दर बेगम तक पहुँची तो उन्होने अपने वकील मुंशी भवानी प्रसाद से बातचीत की लेकिन उन्होने शांत रहने की सलाह दी।  कारतूसों में चर्बी के उपयोग की शिकायत की जांच फौज के बख्शी साहब की उपस्थिति में सीहोर के हथियार थाने में की गई। इस जांच में छ: पेटी में से दो पेटी संदेहास्पद पाई गई, जिन्हे अलग कर दिया गया और ये आदेश दिये गये कि संदेह वाले कारतूसों को तोड़कर तोपों के गोलाबारुद में उपयोग में लाया जायेगा। परन्तु इस आदेश के पश्चात भी हिन्दुस्तान के वीर सिपाहियों में रोष रहा उन्हे विश्वास था कि नये कारतूसों में अवश्य ही गाय और सुबह की चर्बी उपयोग की जा रही है। इस प्रकार फौज के एक बड़े वर्ग में वगावत फैल गई।

महावीर कोठ और रमजूलाल को बाहर निकालने से डर गई बेगम सिकन्दर....
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सीहोर के बागियों से प्रभावित होकर भोपाल रियासत के फौजी भी उनके साथ होने लगे थे। सिकन्दर बेगम ने इनकी रोकथाम के लिये कड़े निर्देश जारी किये थे। अत: बख्शी मुरव्वत मोहम्मद खाँ ने सीहोर में एक आर्मी कमेटी स्थापित की थी जिसमें उच्च अधिकारी नियुक्त किये गये। फौज में सभी सिपाहियों को निर्देशित किया गया था कि वह प्रतिदिन इस कमेटी के समक्ष उपस्थित रहें। यह भी आदेश जारी किया गया कि जिन फौजियों ने सैनिक अनुशासन का उल्लंघन किया उनके प्रकरणों की जांच भी इसी कमेटी द्वारा की जायेगी। इस कमेटी ने सिपाहियों द्वारा आदेशों का पालन न करने, लापरवाही और देर से उपस्थिति आदि के कई प्रकरण पंजीबद्ध किये और अपने सिपाहियों के विरुद्ध निलंबन, निष्कासन और जबरी त्यागपत्र के आदेश जारी कर दिये। अंत में सिपाहियों की छोटी-छोटी गलती के प्रकरणों को भी इस कमेटी के सुपुर्द किया जाने लगा। सिपाहियों को इस कमेटी से चिढ होने लगी थी और वो ऐसा समझने लगे थे कि कमेटी उनको नौकरी से निकालने के लिये बनाई गई है। इससे फौज में और अधिक रोष व्याप्त हो गया। इस कमेटी ने फौज के उन चौदस सिपाहियों को भी नौकरी से निकालने का आदेश दे दिया था जो इन्दौर से बिना अनुमति डयूटी छोड़कर सीहोर आ गये थे। इन चौदह फौजियों में महावीर कोठ हवलदार और रमजूलाल सूबेदार के नाम भी सम्मिलित थे। सीहोर की फौज में ये दोनो बहुत लोकप्रिय थे। इसलिये इनको सेवा से हटाने से फौज में बगावत फैलने की संभावना थी इस कारण बख्शी साहब ने इन दोनो के अतिरिक्त बाकी बारह फौजियों को सेवा से पृथक कर दिया। जिन सिपाहियों को नौकरी से निकाला गया उन्हे सीहोर की सीमा से बाहर जाने का भी आदेश दिया गया। इस आदेश में यह भी लिखा था कि जो भी व्यक्ति इन लोगों को शरण देगा उसे भी सजा दी जायेगी।

बैरसिया हुआ आजाद पर सीहोर की फौज ने वहाँ जाकर बागियों से युद्ध करने का मना कर दिया
बैरसिया रियासत भोपाल की एक तहसील में भोपाल के पॉलिटिकल एजेन्ट का एक असिस्टेंट शुभराय रहता था। यह बैरसिया का प्रशासक भी था। बैरसिया में बागी अंग्रेजों और सिकन्दर बेगम के खिलाफ खुले आम बातें कर रहे थे। 13 जुलाई 1857 को शुभराय ने एक बागी के साथ दुव्र्यवहार किया। कहा जाता है कि बातचीत में उस बागी को मारापीटा भी। जब ये बागी जख्मी हालत में बस्ती में आया और यहॉ के लोगों को उसके जख्मी होने का कारण ज्ञात हुआ तो बैरसिया के एक प्रभावशाली व्यक्ति शुजाअत खाँ ने अपने 70 आदमियों के साथ शुभराय के बंगले पर हमला कर दिया। इस हमले में शुभ राय और उनके मीर मुंशी मखदूम बख्श कत्ल कर दिये गये। ये घटना 14 जुलाई 1857 को हुई। शुभ  राय को कत्ल कर देने के पश्चात शुजाअत खाँ के आदमियों ने बैरसिया के अंग्रेज अफसरों के घरों में आग लगा दी और जितने अंग्रेज बैरसिया में मिले उनको कत्ल कर दिया। इसके फौरन बाद शुजाअत खाँ ने बैरसिया पर अपना शासन घोषित कर दिया। उस समय भोपाल कन्टिनजेंट का एक हिस्सा पहले से ही बैरसिया में मौजूद था। इस फौज के भी सभी सिपाही शुजाअत खाँ से मिल गये। इस घटना की सूचना शीघ्र ही सिकन्दर बेगम को मिल गई थी। लेकिन इतिहास ने मोड़ तब लिया जब सिकन्दर बेगम ने 15 जुलाई को भोपाल आर्मी को बैरसिया पर हमला करने का आदेश दिया यह फौज गई तो लेकिन 90 प्रतिशत से भी अधिक आदमी बैरसिया जाकर सुजाअत खाँ से मिल गये। इस स्थिति में सिकन्दर बेगम ने सीहोर फौज के जवानों को बैरसिया पर हमला करने का आदेश दिया। सीहोर की फौज ने जब कद्दावर सिपाही महावीर कोठ से इस बावत पूछा तो  उनके इशारे पर फौज ने पूरी दमदारी से बैरसिया जाने से इंकार कर दिया।

जब सीहोर फौज से दो तोप चोरी हो गईं
फाजिल मोहम्मद खाँ और आदिल मोहम्मद खाँ रियासत भोपाल के मोंजागढ़ी जिला रायसेन के दो विख्यात जागीरदार थे। ये दोनो भाई वैयक्तिक शासन और अधूरे राज के घोर विरोधी थे। इन दोनो भाईयों ने अपनी व्यक्तिगत फौज बना ली थी और वह लगातार इस फौज की ताकत बढ़ा रहे थे। इन भाईयों ने बगावत के दौर में रियासत भोपाल के विभिन्न जिलों का कई बार चक्कर लगाया था। इसी प्रकार ये भाई रियासत भोपाल के आसपास के राजा नवाबों से भी संबंध बनाए हुए थे। भोपाल, सीहोर, बैरसिया आदि और रियासत के विभिन्न स्थानों पर आगे चलकर जो बगावतें हुई उनको संगठित करने में इन दोनो भाईयों का भी विशेष योगदान रहा। भोपाल सैना और सीहोर फौज के विलायती अफगान सिपाही इन भाईयों के विशेष हमदर्द थे। इन भाईयों के राष्ट्रवादी प्रयासों और बहादुरी से प्रभावित होकर रियासत के बहुत से सिपाहियों ने नौकरी छोड़कर इन भाईयों की फौज में नौकरी कर ली थी। 10 जुलाई 1857 को रियासत की फौज के बख्शी साहब के पास अचानक यह सूचना आई कि सीहोर से दो तोपों को किसी ने चुरा लिया है। बख्शी साहब ने फौरन इस चोरी की जांच शुरु कर दी जांच में पता चला कि ये तोपें फाजिल मोहम्मद खाँ के इशारे पर चुराई गई थीं। एक तोप फौज के एक सिपाही से बरामद हुई जिसे उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी गिरफ्तारी के बाद जो आगे छानबीन हुई तो उससे पता चला कि फाजिल मोहम्मद खाँ बहुत पहले से सीहोर और भोपाल में बगावत की तैयारियाँ कर रहे थे। सिकन्दर बेगम को ये रिपोर्ट दी गई कि फाजिल मोहम्मद खाँ भोपाल आर्मी के कमाण्डर इन चीफ, डिप्टी कमाण्डर और कई वफादार फौजी अफसरों को कत्ल करने की योजना बना रहे थे। इसमें शिवलाल, चंदूलाल और फरजंद अली जैसे वफादार के नाम भी सम्मिलित थे।

चुन्नीलाल और भीकाजी जैसे जासूसों से कराई जाती थी बागियों की जासूसी
भोपाल रियासत में प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन गदर को लेकर सिकन्दर बेगम सतर्क थीं। उन्होने 17 जून 1857 को एक फरमान नवाब उमराव दुल्हा, बाकी मोहम्मद खाँ साहब पूर्व सैनाध्यक्ष रियासत भोपाल को जारी किया जिसमें कहा था कि ऐसे प्रयास किये जायें जिससे बगावत की आग भोपाल में न फैलने पाए। बेगम साहब ने 18 जून 1857 को एक एलान (उल्लेख गदर के कागजात किताब एवं हयाते सिकन्दरी किताब पृष्ठ 34 के अनुसार) छपवाकर पूरी रियासत में वितरित कराया गया था। जिसमें जिला कलेक्टरों एवं रियासत के अधिकारियों को निर्देश दिये गये थे कि वह सख्ती से निगरानी रखें कि बाहर से कोई बागी भोपाल में दाखिल न होने पाये और अगर कोई बागी रियासत की सीमा में घुस जाता है तो उसको या तो कत्ल कर दिया जाये या बंदी बना लिया जाये। इस आदेश में यह भी कहा गया था कि अगर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नवाब बांदा या नवाब फर्रुखाबाद के सिपाही रियासत की सीमा में घुस आएं तो उनके साथ भी यही कार्यवाही की जाये और इसकी सूचना तत्काल सरकार के पास भेजी जाऐ।

घी और शक्कर में मिलावट की शिकायत पर सीहोर के कोतवाल भागे
11 जुलाई 1857 को सीहोर के कुछ सिपाहियों ने ये शिकायत की थी कि बाजार में जो घी और शक्कर बेची जा रही है और जो यहॉ फौज को भी सप्लाई की जा रही है उसमें मिलावट की जा रही है। खाद्य सामग्री में मिलावट की यह शिकायत सीहोर में नई बात थी। इस अफवाह की वजह से सभी फौजियों में गुस्से की लहर फैल गई। कुछ जोशीले और भडक़ीले सिपाहियों ने दुकानदारों तक को सबक सिखा दिया था। सिपाही मिलावट के लिये सरकार को दोषी मान रहे हैं। उस समय इन अफवाहों से सीहोर के अन्दर इतनी बैचेनी फैल गई थी कि यहॉ के कोतवाल लाला रामदीन को ये अंदेशा हो गया था कि बांगी कहीं उन पर भी हमला न कर दें। इस बदहवासी की हालत में वो अपनी जान बचाने के लिये सीहोर से भाग खड़े हुए। सरकार ने उनकी जगह पर इमदाद अली को तैनात किया परन्तु वह भी घबराहट में डयूटी ज्वाईन करने के बाद छुप गये। अंतत: मिलावट की जांच 6 अगस्त 1857 को सीहोर के रामलीला मैदान में हुई। जांच में शकर में मिलावट पाई गई। जांच के निष्कर्ष सामने आते ही सिपाही भड़क गये, वह अंग्रेजों के खिलाफ भड़क गये।

और बनाई सिपाही बहादुर सरकार
अंग्रेजों से भड़के और मिलावट से गुस्साये सिपाहियों ने इसी दिन एक सभा की, जिसमें क्रांतिकारी भाषण देते हुए वली  शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ तो बोला ही साथ ही उत्तेजित स्वर में  बोले 'फौज के अधिकारी अच्छी तरह कान खोलकर सुन लें कि अगर उन्होने हमारे मेहबूब लीडर महावीर को गिरफ्तार कर लिया तो हम फौज की इमारत की  ईंट से ईंट बजा कर रख देंगे  और हम सभी बड़े  अधिकारियों को भेड़ बकरियों की तरह काटकर फेंक देंगे।इसी दिन स्पष्ट कर दिया गया जो अंग्रेजों की गुलामी पसंद करते हैं वह चले जायें और देश की आजादी पसंद करने वाले सिपाही क्रांतिकारियों का साथ दें। इसी दिन 6  अगस्त को सिपाही बहादुर सरकार की स्थापना की गई और बागियों की सरकार दर्शाने के लिये दो झण्डे निशाने मोहम्मदी और निशाने महावीरी लगाये गये।

14 जनवरी को हुआ कत्लेआम
8 जनवरी 1858 को जनरल रोज की विशाल फौज मुम्बई  के रास्ते सीहोर पहुँची। जनरल रोज की सैना ने यहाँ क्रांतिकारियों को पकड़कर गिरफ्तार कर लिया। उनसे माफी मांगने को कहा गया, लेकिन क्रांतिकारियों ने माफी  मांगने से इंकार कर दिया। अंतत: 14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को सैकड़ाखेड़ी स्थित चॉदमारी के मैदान पर एकत्र कर गोलियों से भून दिया गया। अनेक किताबों और भोपाल स्टेट गजेटियर के  पृष्ठ क्रमांक 122 के अनुसार इन शहीदों की संख्या 356 से अधिक थी।



-आनन्‍द भैया गॉधी-
मो: 7566995545

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