पिछला दो दिन काफी निराशा भरा रहा। आप घर से उम्मीद लेकर निकले और निराश घर लौटे तो हताशा स्वाभाविक है। इस हताशे से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है कोशिश। लेकिन हर कोशिश सफल नहीं होती। बिहार की सत्ता के गलियारे में राजनीतिक खबरों में लीड का हरसंभव प्रयास करते रहे हैं। इसी कोशिश में हमने ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ का 23 फरवरी को विधान परिषद चुनाव विशेषांक निकालने का निर्णय लिया। स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की 4 - 4 सीटों के लिए चुनाव होना है। इसके अलावा विधान सभा कोटे की 9 सीटों के लिए भी चुनाव अगले मार्च और अप्रैल महीने में होना है। बिहार विधान परिषद के सभापति का चुनाव भी बजट सत्र में होने की संभावना है। सभापति का चुनाव बजट सत्र में नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। विधान परिषद की 17 सीटों के चुनाव में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की खास रुचि है। इसी बात को फोकस करते हुए विशेषांक प्रकाशित कर रहे हैं। इस अंक के लिए विज्ञापन भी जरूरत पड़ेगी। रंगीन होने के बाद पत्रिका का प्रिंटिंग कॉस्ट पहले की तुलना 8 गुना अधिक हो गया है। इस कारण आर्थिक मोर्चे पर हमें नयी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ आमदनी के नये स्रोत की तलाश करनी पड़ रही है। नवंबर महीने तक हम पत्रिका को चंदा से प्रकाशित कर रहे थे। दिसंबर महीने से लोगों से कंट्रीब्यूशन के साथ विज्ञापन भी ले रहे हैं। विज्ञापन भी लोग कंट्रीब्यूशन समझकर ही देते हैं। एक ऐसे सहयोगी भी मिले, जिन्होंने अब तक की सबसे महंगी विज्ञापन दर से भुगतान किया। विज्ञापन भी उन्होंने खुद स्वेच्छा से दिया था, मदद करने के लिए ही। हमने तीन दिनों का समय विशेषांक के लिए विज्ञापन संकलन के लिए निर्धारित किया था। सोमवार, मंगलवार और बुधवार। सोमवार और मंगलवार दो दिनों का समय निरर्थक चला गया। उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील होती गयी। प्रकाशन की तिथि नजदीक आ रही है। इसलिए परेशानी स्वाभाविक है। अभी हमें विज्ञापन से ज्यादा कंट्रीब्यूशन पर निर्भर करना पड़ रहा है। अभी भी पत्रिका पर जनसरोकार हावी है। इस कारण बाजार की ‘निर्लज्जता’ गले से नीचे नहीं उतर रही है। एक साथी ने कहा कि आपको विज्ञापन देंगे तो हमें रिटर्न क्या मिलेगा। उनका सवाल एकदम जायज था। यह हमारी कमजोरी है कि हम ‘रिटर्न की पत्रकारिता’ को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। संभव है कि दो-चार अंक बाद हम भी बाजार की निर्लज्जता को सहज रूप से स्वीकार करने लगें या स्वीकार नहीं भी करें। ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ की शुरुआत पत्रकारिता और जनसरोकार के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर चंदा से हुई थी। लेकिन अब चंदा से पत्रिका को चलाना संभव नहीं हो रहा है। इसलिए विज्ञापन के लिए अपने पाठकों के पास जा रहे हैं। नये पाठक बना रहे हैं। ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ आज भी हमारा सामाजिक सरोकार है। हम इस सरोकार को जीवित रखना चाहते हैं। इसके लिए आप कंट्रीब्यूशन या विज्ञापन दे सकते हैं। जरूरी नहीं है कि आप कंट्रीब्यूशन (आर्थिक मदद) या विज्ञापन हमारे मांगने के बाद ही दें। आप स्वेच्छा से भी चंदा और विज्ञापन दे सकते हैं। आपकी यह मदद ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ की आवाज को बेवाक बनाये रखने में मददगार साबित होगी।
----वीरेंद्र यादव----
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