पटना,23 फरवरी. शक्तिधाम मंदिर ,बैंक रोड,बिस्कोमान भवन के पीछे ,गांधी मैदान के नजदीक सुबह 08 से 02 बजे से रविवार 23 फरवरी को एचएलए कैम्प का आयोजन किया जा रहा है. बताया गया है कि यह कैम्प बिहार में पहली बार थैलेसीमिया रोग से पीड़ित मरीजों की सुधि ली जाएगी.अभी तक राजेश बजाज द्वारा जनहित में वीडियों बनाया गया हैं.इसी से थैलेसीमिया रोग की जानकारी दी जाती थी.अब कैम्प में सीधे थैलेसीमिया रोग से पीड़ित 200 नन्हे-मुन्ने,. इन नन्हे-मुन्ने के 560 भाई-बहन और उनके 370 माता-पिता भी आ रहे हैं.खून का एक विकार जिसमें ऑक्सीजन वाहक प्रोटीन सामान्य से कम मात्रा में होते हैं.इसके आलोक में दुनियाभर में वर्ल्ड थैलेसीमिया डे (Thalassemia Day)मनाया जाता है. ताकि पीड़ितों पर फौकस डाला जा सके.थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है. इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है. ज्यादातर बच्चों में देखी जाने वाली इस बीमारी की वजह से शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और उचित उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है. आइए जानते हैं आखिर क्या है ये बीमारी और इसके लक्षण और बचाव के तरीके. आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है. इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है. थैलेसीमिया दो तरह का होता है. माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या फिर पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है. लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है. जिसकी वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है. थैलेसीमिया असामान्य हीमोग्लोबिन और रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन से जुड़ा एक ब्लड डिसऑर्डर है. इस बीमारी में रोगी के शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम होने की वजह से वो एनीमिया का शिकार बन जाता है. जिसकी वजह से उसे हर समय कमजोरी,थकावट महसूस करना, पेट में सूजन, डार्क यूरिन, त्वचा का रंग पीला पड़ सकता है.
-इस गंभीर रोग से होने वाले बच्चे को बचाने के लिए सबसे पहले शादी से पहले ही लड़के और लड़की की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए.
- अगर आपने खून की जांच करवाए बिना ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही अपने डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए.
- माइनर थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरफ अपना जीवन जीता है. बिना खून की जांच करवाए कई बार तो उसे पता ही नहीं चलता कि उसके खून में कोई दोष भी है. ऐसे में अगर शादी से पहले ही पति-पत्नी के खून की जांच करवा ली जाए तो काफी हद तक इस आनुवांशिक रोग से होने वाले बच्चे को बचाया जा सकता है.
-थैलेसीमिया का इलाज, रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है. कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
-बोन मैरो प्रत्यारोपण से इन रोग का इलाज सफलतापूर्वक संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है.
- इसके अलावा रक्ताधान, बोन मैरो प्रत्यारोपण, दवाएं और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है.
थैलेसीमिया एक पीढ़ी से पीढ़ी में जाने वाले खून संबंधी बीमारी है जो शरीर में सामान्य के मुकाबले कम ऑक्सीजन ले जाने वाले प्रोटीन (हीमोग्लोबिन) और कम संख्या में लाल रक्त कोशिकाओं से पहचानी जाती है.थैलेसीमिया यह एक अनुवांशिक रक्त रोग हैं। इस रोग के कारण रक्त / हीमोग्लोबिन निर्माण के कार्य में गड़बड़ी होने के कारण रोगी व्यक्ति को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता हैं। भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित पैदा होते हैं। यह रोग न केवल रोगी के लिए कष्टदायक होता है बल्कि सम्पूर्ण परिवार के लिए कष्टों का सिलसिला लिए रहता हैं। यह रोग अनुवांशिक होने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में चलती रहता हैं. इस रोग में शरीर में लाल रक्त कण / रेड ब्लड सेल(आर.बी.सी.) नहीं बन पाते है और जो थोड़े बन पाते है वह केवल अल्प काल तक ही रहते हैं. थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को बार-बार खून चढाने की आवश्यकता पड़ती है और ऐसा न करने पर बच्चा जीवित नहीं रह सकता हैं.इस बीमारी की सम्पूर्ण जानकारी और विवाह के पहले विशेष एहतियात बरतने पर हम इसे आनेवाले पीढ़ी को होने से कुछ प्रमाण में रोक सकते हैं.
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