*स्थापना दिवस पर भाकपा-माले भूख मिटाने-कोरोना भगाने और साम्प्रदायिकता के वायरस को परास्त करने का लेगी संकल्प**सभी ब्रांचों में आह्वान का किया जाएगा पाठ*
पटना 21 अप्रैल, भाकपा-माले के राज्य सचिव कॉमरेड कुणाल ने कहा है कि 22 अप्रैल का दिन हमारी पार्टी की स्थापना का दिन है. महान लेनिन के जन्म दिन पर 1969 में पार्टी का गठन हुआ था. इस बार हम 51 वां पार्टी स्थापना दिवस मनाएंगे. यह स्थापना दिवस ऐसे वक्त में मनाया जा रहा है जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में है और हमारे देश में लॉक डाउन की वजह से गरीबों-मजदूरों की बड़ी आबादी के सामने भुखमरी की समस्या उठ खड़ी हुई है. भूख से लगातार मौतें हो रही हैं. ऐसे विकट दौर में भी साम्प्रदायिक ताकतें नफरत फैलाने से बाज नहीं आ रही है. कोरोना के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाया जा रहा है और उनकी नाकेबंदी तक की जा रही है. मॉब लिंच हो रहा है. इसलिये, इस स्थापना दिवस को हम भूख मिटाने, कोरोना भगाने और साम्प्रदायिकता के वायरस को खत्म करने का संकल्प लेंगे. हमारी पार्टी के लिए जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है. पार्टी के एक-एक कार्यकर्ता कल इसका संकल्प लेंगे. हम तमाम न्यायप्रिय, लोकतन्त्र पसन्द नागरिकों से भी अपील करते हैं कि इस चुनौती का मिलजुलकर सामना करें.
22 अप्रैल को भाकपा (माले) के 51वें पार्टी स्थापना दिवस के अवसर पर संकल्प
1- कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए मोदी सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के इस दौर में देश के सामने स्वास्थ्य, भोजन और जीविका का भीषण संकट खड़ा हो गया है। गरीब और प्रवासी मजदूर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। हम कॉमरेड चारू मजूमदार के इस आह्वान पर खरा उतरने का संकल्प लेते हैं कि ''जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है''। हम इस महामारी से प्रभावित लोगों के साथ दृढ़ता से खड़े रहने का संकल्प लेते हैं। भूख मिटाओ! कोरोना भगाओ!
2. आम लोग कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के चलते बदहाल हैं लेकिन संघ-भाजपा के लोग बाकायदा अभियान चलाकर लोगों के भीतर झूठ फैलाने में लगे हैं कि इस महामारी के लिए चीन और मुसलमान जिम्मेदार हैं। अपने इस अभियान में ये झूठी खबरें, अंधविश्वास और पाखंड फैला रहे हैं। हम इस सांप्रदायिक अभियान की निंदा करते हैं जिसके तहत मुस्लिम समुदाय का सामाजिक आैर आर्थिक बिहष्कार एवं उन पर पाबंदियां लगार्इ जा रही हैं। हम कोरोना वायरस के नाम पर तेजी से फैल रही छुआछूत आैर इससे प्रभावित लोगों को कलंक के रूप में देखने के सोच को खारिज करते हैं। हमें एकता और एकजुटता कायम करने के लिए जो कुछ भी बस में हो, करना चाहिए। कोविड-19 से प्रभावित लोगों के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए, स्वास्थ्य और सफाई कर्मियों की मदद करनी चाहिए, तर्कपूर्ण और प्रगतिशील विचारों को आगे बढ़ाना चाहिए और सांप्रदायिकता के वायरस को परास्त करना चाहिए।
3. इस संकट में साफ हो गया है कि केन्द्र की मोदी सरकार और विभिन्न राज्यों की भाजपा और एनडीए सरकारों को जनता की कोई चिंता नहीं है। इन्होंने गरीबों के लिए कोई भी इंतजाम किये बगैर लॉकडाउन घोषित कर दिया। गरीबों के लिए केवल लाठियां, अपमान और दमन था, जबकि अमीरों के लिए सारी सुविधायें। हमें अपनी पूरी ताकत झोंककर भाकपा (माले) को मजबूत करना होगा और जनांदोलनों को तेज करना होगा ताकि आम लोगों के हाथ में ज्यादा राजनीतिक शक्ति आ सके।
4. मोदी सरकार कोविड-19 महामारी की आड़ में अपनी तमाम विफलताओं और जनता से की गई धोखेबाजियों को छिपाने में लगी हुई है। सरकार लॉकडाउन का इस्तेमाल लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने और पुलिस राज कायम करने के लिए कर रही है। कॉरपोरेट, सामंती सांप्रदायिक ताकतें और अपराधी इस अवसर का इस्तेमाल अपना प्रभाव और नियंत्रण बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। हम लॉकडाउन को ऐसी ताकतों का हथियार नहीं बनने दे सकते। सभी जगहों से यही संकेत मिल रहे हैं कि कोविड-19 संकट भारत को और भी ज्यादा आर्थिक मंदी में धकेल रहा है। मोदी सरकार इस मंदी का पूरा भार जनता पर थोपने की योजना बना रही है। हम अपनी पूरी ताकत से लडेंगे और सरकार को जवाबदेह ठहरायेंगे। हम इस बात के लिए संघर्ष करेंगे कि भारत कोविड-19 के बाद ज्यादा न्यायपूर्ण देश बनकर उभरे, जहां हर नागरिक को मुफ्त और अच्छी स्वास्थ्य सेवा हासिल हो।
5. कोविड-19 महामारी ने वैश्विक पूंजीवाद की भयानक कमजोरी को उजागर कर दिया है। अमेरिका न केवल अपने लोगों को बचाने में नाकाम रहा बल्कि इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर हमला किया और भारत को धमकाया भी। इसने इस महामारी को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों को रोका कि वे क्यूबा और वेनेजुएला को वेंटिलेटर न बेचें। विकसित पूंजीवादी देश कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देश हैं। जाहिर है कि इन देशों के भीतर कामगारों, समाज के हाशिए के लोगों व समुदायों को सबसे ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। पूंजीवादी स्वास्थ्य व्यवस्था और नीतियां स्वास्थ्य को लोगों का मौलिक अधिकार मानने की जगह इसे उपभोक्ता माल और मुनाफे के कारोबारे के रूप में देखते हैं। यह व्यवस्था लोगों को राहत पहुंचाने में पूरी तरह नाकाम रही है। वहीं दूसरी तरफ जनोन्मुख स्वास्थ्य व्यवस्था ज्यादा बेहतर साबित हुई है, चाहे वह क्यूबा हो या फिर भारत में केरल। हम विनाशकारी पूंजीवादी व्यवस्था को परास्त करके ज्यादा न्यायपूर्ण और बराबरी वाली ऐसी समाजवादी दुनिया बनाने के लक्ष्य के प्रति खुद को फिर से समर्पित करते हैं, जिसके केन्द्र में मेहनकश मजदूर और पर्यावरण होंगे। आज विश्व की प्रथम समाजवादी क्रांति के महान नेता आैर समाजवाद निर्माण के सर्वप्रथम प्रयोग की शुरूआत करने वाले कामरेड लेनिन की १५०वीं वर्षगांठ है. उनके प्रति सर्वोच्च सम्मान व्यक्त करते हुए अपने इस संकल्प को दुहराते हैं कि साम्राज्यवाद की पराजय आैर एक समाजवादी दुनियां के निर्माण के उनके सपने को हम पूरा करेंगे.
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