तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने चीफ मिनिस्टर फेलोशिप योजना की शुरुआत की थी. तब से लेकर आज तक इस योजना का लाभ एक भी अभ्यर्थी को नहीं मिला है.
रांची: 24 जनवरी 2018 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने चीफ मिनिस्टर फेलोशिप योजना की शुरुआत की थी. तब इस योजना का लाभ शैक्षणिक सत्र 2018-19 में नामांकन लेने वाले स्टूडेंट्स को देना था, लेकिन तब से लेकर आज तक इस योजना का लाभ एक भी अभ्यर्थी को नहीं मिला है. गरीब विद्यार्थियों के लिए यह फेलोशिप योजना अगर बेहतरीन तरीके से संचालित होती तो बेहतर होता. उच्च तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास विभाग की ओर से इस चीफ मिनिस्टर फेलोशिप योजना के तहत कैटेगरी में रूपरेखा तैयार किया गया था. योजना का लाभ तीन श्रेणियों में दिए जाने का प्रावधान है. पहला स्नातक स्तर पर तकनीकी पाठ्यक्रम में नामांकन ले चुके छात्रों के लिए स्कॉलरशिप योजना है. दूसरा राज्य के विश्वविद्यालयों से पीजी कर चुके छात्रों को पीएचडी के साथ-साथ शोध कार्य के लिए फैलोशिप मिलती है. तीसरी श्रेणी में वे स्टूडेंट्स आते हैं, जिनका रिसर्च वर्क विश्व के शिर्ष 100 विश्व विद्यालयों में से किसी एक में चुना गया हो. इस योजना के तहत एक फिक्स राशि भी तय की गई है, जिससे अभ्यर्थियों को कोई परेशानी न हो तकनीकी संस्थानों में स्नातक करने और राज्य के बीवी से पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों को 15 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने का प्रावधान है, जबकि अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में शोध वर्क चयनित उम्मीदवारों को एक लाख रुपए मिलते हैं. इसके तहत जिस एकेडमिक साल में स्टूडेंट्स सिलेक्ट हुए हैं. उसे अगले 3 साल तक इसका लाभ मिलने की योजना बनाई गई थी. उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग को, हायर एजुकेशन रिसर्च वर्क करने वाले स्टूडेंट को फेलोशिप देने को लेकर कार्यभार सौंपा गया और इस योजना को शुरू हुए 2 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन बीते 2 साल में यह योजना एक भी विद्यार्थी तक नहीं पहुंची है. यहां तक कि विभाग को भी यह नहीं पता है कि 2 साल में कितने स्टूडेंट्स को इसका लाभ मिला है.
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