लेखकों और कवियों के साथ बीत रहा लॉकडाउन का यह समय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लेखकों और कवियों के साथ बीत रहा लॉकडाउन का यह समय

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लॉकडाउन का यह ऐसा समय है जिसे पहले किसी ने नहीं देखा था। महामारियों का प्रकोप पहले भी हो चुका है, पहले भी महामारियों ने मानवता से टक्कर ली है, उस दौर में भी लोगों ने इससे बचने के उपाय ढूँढ़ निकाले थे। आज भी हम इस महामारी से जीत हासिल करेंगे। लेकिन, आने वाला इतिहास जब इस समय को देखेगा तो वो पाएगा कि कैसे इस अंधेरे समय में लोग एक-दूसरे के साथ खड़े होने की भरपूर कोशिश कर रहे थे। अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से उम्मीद का दिया जला रहे थे। राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से लगातार हो रहे फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम और वाट्सएप्प के जरिए साझा की जा रही पुस्तिका ऐसी ही एक कोशिश है जो बताती है कि हम अकेले नहीं है। हम साथ हैं। समाज के साथ, देश के साथ। राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव के जरिए सोमवार का दिन कहानियों और खाने पर हुई स्वादिष्ट बातचीत के साथ बीता।

एकांतवास में भिंडी का साथ 
लॉकडाउन में सुबह ग्यारह बजे का समय ‘अलार्म’ की तरह काम करता है। मोबाइल पर आने वाला फ़ेसबुक नोटिफिकेशन यह बता है कि इतिहासकार एवं खान-पान विशेषज्ञ पुष्पेश पंत ‘स्वाद-सुख’ कार्यक्रम लेकर आ चुके हैं। व्यंजनों की यह ऐतिहासिक यात्रा अचंभित करती है। सोचिए, प्लेट में सजी भिंडी को देखकर कभी आपने सोचा था कि यह इथियोपिया से चलकर आपके पास आयी है ! ‘स्वाद-सुख‘ के कार्यक्रम में सोमवार की सुबह चर्चा करते हुए पुष्पेश पंत ने बताया कि भिन्डी का एक नाम ‘गम्बो’ भी है। माना जाता है अफ्रीका के गुलाम इसे अपने साथ उत्तरी अमेरिका ले गए और वहाँ से यह यूरोप पहुंचा। इसका जन्म इथियोपिया के आसपास कहीं हुआ। लेकिन, इतिहासकारों का यह भी मत है कि इसका जन्म दक्षिण एशिया के देशों में कहीं हुआ है। इसके पीछे तर्क यह है कि जितना मान-सम्मान इसे इन देशों में मिला उतना कहीं और नहीं मिला।

रिश्तेदारी को महत्व देने वाले लोगों के लिए विशेष जानकारी यह है कि मुम्बई के भिंडी बाज़ार से इसका कोई संबध नहीं है। लॉकडाउन में भिंडी का एक सुख यह भी है कि बहुत कम मसालों से बहुत स्वादिष्ट भिंडी तैयार की जा सकती है। पारसी खाने में भिंडी का उपयोग बहुत होता है। जैसे, ‘खारा भिंडी’ इसमें नमक और तेल, बस यही दो चीजें मिलाईं जाती हैं। इसे तेल के साथ तल दिया जाता है। इसमें कोई मिर्च नहीं, कुछ नहीं। पारसी खाने में अंडे का उपयोग बहुत होता है। वे, अंडा भूर्जी के साथ भिंडी खाना पसंद करते हैं। साथ ही, वे भिंडी को दही के साथ भी पकाते हैं। भिंडी की स्वाद-यात्रा के दौरान पुष्पेश पंत ने बताया कि उड़ीसा में भिंडी को दही के साथ पकाने का रिवाज़ है। ठंडी दही में भिंडी को अलग से छौंक कर मिला दिया जाता है। एक और भिंडी की सब्जी है-सरसों भिंडी, इसमें सरसों को पीस कर भिंडी का मसाला तैयार किया जाता है। वहीं दक्षिण में इसे वेंकई पचड़ी कहते हैं। यह कुछ-कुछ भिंडी के रायता जैसा होता है। उत्तर भारत में भिंडी निम्न रूप में देखने को मिलती है- भिंडी भूजिया, भिंडी-प्याज़ (दो प्याज़ा भी); सौंफ, लाल मिर्च, अजवाइन डालकर तैयार की गई अचारी भिंडी, भरवां भिंडी, और कुरकुरी भिंडी। इसमें राजस्थान की बेसन भिंडी को भी शामिल किया जा सकता है। पुष्पेश पंत का कहना है कि, “दक्षिण में तरी वाली भिंडी के बहुत सारे प्रकार देखने को मिलते हैं, जो उत्तर भारत में बहुत कम हैं। “ तरी वाली सब्जियों में एक तरह की खटास होती है जो इमली से आती है। दरअसल, भिंडी के लस को कम करने के लिए इसमें इमली का पानी मिलाया जाता है। पुष्पेश पंत मसाला भिंडी को बहुत कष्टदायक व्यंजन मानते हैं। उनका कहना है कि, “रेस्तरां में इसके साथ तरह-तरह के प्रयोग किए जाते हैं। इसमें भिंडी बेचारी पूरी तरह पस्त हो जाती है। भिंडी का सुख उसके कुदरती स्वाद में ही है। ज्यादा तामझाम न करना ही इसके साथ न्याय है।“ कुदरती स्वाद बहुत हद तक मिलता है भरवां भिंडी में। आंध्र में इसे गुट्टी वेंडकई कहते हैं। वहां भरवां भिंडी में बहुत साधारण मसालों का प्रयोग होता है। लेकिन, अगर इसमें सिंग दाना, तिल के बीज, कसा हुआ नारियल, दाल मिला दें तो वो महाराष्ट्रीयन भरवां भिंडी हो जाती है। घर में भिंडी, कम हो या ज्यादा, कम समय और बहुत ही कम मसालों से स्वादिष्ट भिंडी का आसानी से आनंद लिया जा सकता है। 

हमारी अधूरी कहानी
कहानियाँ कभी मरती नहीं। हम रोज़ अपनी कहानी गढ़ते हैं। हम किसी की कहानी का हिस्सा भी होते हैं। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से सोमवार को लाइव बातचीत में लेखक चरण सिंह पथिक ने कहा कि, “कहानियाँ सब एक जैसी होती हैं लेकिन वो कभी मरती नहीं, अधूरी रहती हैं। अधूरापन नए सृजन को जन्म देता है। मैं चाहता हूँ कि हर कहानी अधूरी रहे, जिससे हर किसी को मौका मिले कि वो कहानी को आगे ले जाए।“

लाइव कार्यक्रम में चरण सिंह पथिक  राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपने कहानी संग्रह ‘दो बहनें’ से कहानी पाठ कर रहे थे। निर्देशक एवं संगीतकार विशाल भारद्वाज की चर्चित फ़िल्म ‘पटाखा’, दो बहनें कहानी पर ही आधारित है। पाठ के बाद चरण सिंह पथिक ने लोगों से बातचीत करते हुए विशाल भारद्वाज के साथ अपने फ़िल्म के अनुभवों को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि, “विशाल भारद्वाज बहुत पढ़ते हैं। वो किताबों के साथ-साथ हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं भी पढ़ते हैं। पटाखा फ़िल्म की शूटिंग गाँव में ही हुई, और सभी किरदारों ने गाँव में रहकर यहाँ की संस्कृति और भाषा को जाना। “ इसी संग्रह की एक और कहानी ‘कसाई’ पर फ़िल्म निर्देशक गजेन्द्र सिंह श्रोत्रिय ने फिल्म निर्माण किया है। फ़िल्म का नाम कहानी के नाम पर ही रखा गया है।  शाम में फ़ेसबुक लाइव के जरिए लेखक एवं मनोचिकित्सक विनय कुमार ने कवि मुक्तिबोध के रहस्यलोक पर विस्तार से बातचीत करते हुए बताया कि, “मुक्तिबोध एक तनी हुई रस्सी पर चलते रहे। वे हमेशा अपने भीतर के तनाव, सृजनात्मक तनाव, अन्त:संघर्ष के तनाव, सामाजिक परिस्थितियों के बीच रास्ता निकालने के तनाव से झूझते रहे। उनका साहित्य इसी के भीतर से निकलकर आया है।“ विनय कुमार ने मुक्तिबोध के जीवन पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि, उन्होंने कविताएं लिखीं, प्रेम किया और सरकारी नौकरी करने से इंकार कर दिया। प्रेम के साथ खड़े रहे और इसके वजह से घरवालों से भी लड़े। विनय कुमार ने कहा कि, “उनके साहित्य में दर्शन है। कला है। उनकी कविताएं हमें पूर्ण रूप से शिक्षित करती हैं।“ लेखक विनय कुमार के साथ राजकमल प्रकाशन समूह लाइव कार्यक्रम में मुक्तिबोध के जीवन एवं साहित्य पर रोचक बातचीत ने प्रिय कवि के बारे में बहुत कुछ बताया।   साहित्यिक चर्चाओं में आज की शाम की अंतिम कड़ी थे लेखक एवं आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल। उन्होंने अपने उपन्यास ‘नकोहस’ से रोचक अंश पाठ किया। साथ ही लोगों के सवालों का जवाब देते हुए आज के समय की विषमताओं पर बहुत सारे सवालों के जवाब भी दिए। उन्होंने कहा कि केवल जन्म के कारण न कोई मनुष्य छोटा होता है, न बड़ा। भले और बुरे का विवेक ही हमें मानव बनाता है। पुरुषोत्तम अग्रवाल ने उपन्यास के संदर्भ में बातचीत करते हुए बताया कि, “नाकोहस जिस परिदृश्य का रूप प्रस्तुत करती है, वह अब मात्र भयावह सम्भावना या भावी आतंक नहीं रहा। बल्कि हमारे समय में रोज़ाना घटने वाला यथार्थ बन चुका है।” लाइव बातचीत में उन्होंने बताया कि इस उपन्यास के पीछे की प्रेरणा पूणे की एक घटना है जब भंडारकर विश्वविद्यालय में हमला किया गया था। कई महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ हमले में नष्ट हो गए। यह निंदनीय घटना थी। लेकिन, पढ़े-लिखे लोगों भी इस घटना की निंदा करने में सोच-विचार कर रहे थे। ये चयनात्मक चुप्पी थी। यह उपन्यास इसी के खिलाफ़ खड़ा है। नाकोहस उपन्यास राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।

राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अब तक शामिल हुए लेखक हैं - विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, उषा किरण खान, पुरुषोत्तम अग्रवाल, हृषीकेश सुलभ, शिवमूर्ति, चन्द्रकान्ता, गीतांजलि श्री, वंदना राग, सविता सिंह, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, मृदुला गर्ग, मृणाल पाण्डे, ज्ञान चतुर्वेदी, मैत्रेयी पुष्पा, उषा उथुप, ज़ावेद अख्तर, अनामिका, नमिता गोखले, अश्विनी कुमार पंकज, अशोक कुमार पांडेय, पुष्पेश पंत, प्रभात रंजन, राकेश तिवारी, कृष्ण कल्पित, सुजाता, प्रियदर्शन, यतीन्द्र मिश्र, अल्पना मिश्र, गिरीन्द्रनाथ झा, विनीत कुमार, हिमांशु बाजपेयी, अनुराधा बेनीवाल, सुधांशु फिरदौस, व्योमेश शुक्ल, अरूण देव, प्रत्यक्षा, त्रिलोकनाथ पांडेय, आकांक्षा पारे, आलोक श्रीवास्तव, विनय कुमार, दिलीप पांडे, अदनान कफ़ील दरवेश, गौरव सोलंकी, कैलाश वानखेड़े, अनघ शर्मा, नवीन चौधरी, सोपान जोशी, अभिषेक शुक्ला, रामकुमार सिंह, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, तरूण भटनागर, उमेश पंत, निशान्त जैन, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला, प्रकृति करगेती, मनीषा कुलश्रेष्ठ, पुष्पेश पंत, मालचंद तिवाड़ी, बद्रीनारायण, मृत्युंजय, शिरिष मौर्य, अवधेश प्रीत, समर्थ वशिष्ठ, उमा शंकर चौधरी, अबरार मुल्तानी, अमित श्रीवास्तव, गिरिराज किराडू, चरण सिंह पथिक

राजकमल फेसबुक पेज से लाइव हुए कुछ ख़ास हिंदी साहित्य-प्रेमी : चिन्मयी त्रिपाठी (गायक), हरप्रीत सिंह (गायक), राजेंद्र धोड़पकर (कार्टूनिस्ट एवं पत्रकार), राजेश जोशी (पत्रकार), दारैन शाहिदी (दास्तानगो), अविनाश दास (फ़िल्म निर्देशक), रविकांत (इतिहासकार, सीएसडीएस), हिमांशु पंड्या (आलोचक/क्रिटिक), आनन्द प्रधान (मीडिया विशेषज्ञ), शिराज़ हुसैन (चित्रकार, पोस्टर आर्टिस्ट), हैदर रिज़वी, अंकिता आनंद, प्रेम मोदी, सुरेंद्र राजन, रघुवीर यादव, वाणी त्रिपाठी टिक्कू, राजशेखर

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