सहित्यिकी : भाषा और विचार अनेक, भाव एक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 11 मई 2020

सहित्यिकी : भाषा और विचार अनेक, भाव एक

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पिछले 46 दिनों में भारत में बहुत कुछ बदल गया है, और ये बदलाव बहुत तेजी से हमारे आसपास घटित हो रहा है। वैसे ये बदलाव दुनिया के मानचित्र में हर तरफ़ हो रहे हैं। मौसम भी बदल रहा है। हवा स्वस्थ हो रही है। जेठ का महीना गर्मी के साथ बौछारों को जगह दे रहा है। लेकिन, इनके बीच जीवन की अनिश्चितता और इंसानी स्वभावों की रेखाएं ऊपर नीचे होती रहती हैं। इन सारी घटनाओं के बीच किताबें साथ होती हैं और संबल देती हैं। एकांत के इस समय में हम सभी ने इसे महसूस किया है। जिया है। लॉकडाउन में घर का कॉलबेल तो नहीं बज रहा, लेकिन किताबों की दुनिया आभासी मंच के रास्ते हमारे घरों में रोज़ दाखिल हो रही है। साहित्य, कला, फ़िल्म, चित्रकारी, संगीत एवं रचनात्मक दुनिया की बातों को लेकर राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव से लेखक एवं साहित्यप्रेमी साथ जुड़कर अपनी बात साझा कर रहे हैं। 

भाषा और विचार अनेक, भाव एक
“पिछले 150 सालों से हम मनुष्य और प्रकृति के बीच के संबंधों के सवाल को नज़रअंदाज़ कर रहे थे। महामारियां प्राकृतिक आपदा होती हैं, लेकिन, इससे मरने वालों लोगों में बड़ी संख्या समाज के उत्तरदायी, ताकतवर लोगों द्वारा की गई लापरवाहियों के कारण होती है।“ आलोचक आशीष त्रिपाठी ने राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से जुड़कर लाइव बातचीत में कहा।   आशीष त्रिपाठी प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह के विषय में बात करते हुए उनके लेखों एवं पत्रों पर चर्चा कर रहे थे। आज की परिस्थितियों के सवाल पर, अनुपस्थित नामवर सिंह क्या कहते, या करते इसपर बहुत जीवंत चर्चा करते हुए आशीष त्रिपाठी ने कहा, “ नामवर सिंह, हिन्दी की प्रगतिशील आलोचना, मार्क्सवादी आलोचना के आधार स्तंभ हैं। एक संवेदनशील विचारक की तरह उन्होंने लोकतंत्र के भीतर पनप रहे फासीवादी विचारों की हमेशा घनघोर आलोचना की है। आज भी वे मजदूरों के साथ उनके पक्ष में खड़े होते हुए ताकतवर लोगों से सवाल कर रहे होते।“ उन्होंने कहा कि प्रोफ़ेसर नामवर सिंह का संपूर्ण रचनाकर्म इस बात की पुष्टि करता है कि वो आज भी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। इस कठिन समय में उनके लेख बहुत सारे सवालों से पर्दा हटाते हैं।

#RajkamalFacebookLive के अंतर्गत होने वाली साहित्यिक चर्चाओं से जुड़कर लेखक अनीता राकेश ने अपनी बात करते हुए कहा कि यह भारी समय है लेकिन, इस समय में किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं। अपने उपन्यास ‘कूंज गली नहिं सांकरी’ से अंश पाठ करते हुए उन्होंने लोगों से बातचीत की और कहा, “मुझे रेल यात्रा के दौरान पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। लेकिन आज रेल यात्राएं स्थगित हैं। उससे भी ज्यादा रेल से जुड़ी जैसी घटनाएं हमारे सामने आ रही हैं वे हमें ठहर कर विचार करने पर मजबूर करती हैं कि हम इस कठिन समय में किसके साथ खड़े हैं।“ लाइव बातचीत में अनिता गोपेश ने अपने उपन्यास से अंश पाठ भी किया। पाठ से साथ संवाद करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अपने समय की महिलाओं से, लड़कियों से बहुत शिकायतें हैं। उन्होंने कहा, “कामकाजी स्त्रियां घर पर रहते हुए भी घर और दफ़्तर दोनों जगहों का काम कर रही हैं। यह भी सच है कि स्त्री बहुत जगहों पर खुद भी समझने को तैयार नहीं। वे आज भी चांद पर पानी चढ़ाती हैं, जबकि इंसान चांद पर उतर चुका है। बाज़ार ने धकियानुसी मान्यताओं को और बढ़ा-चढ़ा दिया है। मेरे लिखने की कोशिश ही यही है कि स्त्रियां अपने को समझें और अपने आस पास की परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करें।“ उन्होंने कहा, “महिलाओं को मानसिक दृढ़ता तभी मिलेगी जब पुरूष उनके साथ खड़े होंगे। एकाकी जीवन किसी को नहीं चाहिए जहाँ सिर्फ़ औरतें ही रहेंगी। पुरूष के साथ के बिना स्वस्थ संसार नहीं होगा। दोनों का बराबर साथ जरूरी है।“

#StayAtHomeWithRajkamal के तहत रोज़ की साहित्यिक चर्चाओं के साथ फ़िल्मी दुनिया की बातचीत भी होती रहती है। रविवार को हुई ख़ास बातचीत में कई रोचक फ़िल्मों की स्क्रिप्ट लिख चुके लेखक विपुल के रावल ने घर बैठे फ़िल्मी कहानियों के संबंध में कई रोचक जानकारियों से लोगों को अवगत कराया। ‘फिल्म की कहानी कैसे लिखें’ इस विषय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि अपने समय को पहचानना और जानना बहुत जरूरी है। विपुल रावल ने कहा कि, “फ़िल्म लिखने का तरीका समय के अनुसार बदलता रहता है लेकिन, अगर आप अपने समय को समझकर कुछ नया लिख सकते हैं तो आप लेखक बन सकते हैं, आप फ़िल्म की कहानी लिख सकते हैं।“ फ़िल्मी दुनिया में एक लेखक के संघर्षों एवं उसकी तैयारी पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा,”जंजीर फ़िल्म आज भी एक हिट फ़िल्म है क्योंकि जंजीर ने अपने समय के मुल्क की नब्ज़ को फ़िल्मी पर्दे पर जीवित कर दिया था। अगर आप अपने समय की मांग को समझ सकते हैं तो आप एक सफ़ल फ़िल्म लेखक बन सकते हैं।“ साहित्य और फ़िल्मी दुनिया की बातों के साथ थियेटर की झलक भी राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक पेज पर लाइव देखने को मिली। जश्न-ए-क़लम की ओर से शाश्विता शर्मा ने कथाकार राजिंदर सिंह बेदी साहब की कहानी 'चेचक के दाग़' के एकल अभिनय को आभासी मंच पर जीवंत कर दिया। उनकी प्रस्तुति थिएटर की ताज़गी और क्षणभंगुरता को फ़ेसबुक के जरिए लोगों के दिलों में खुशी का संचार कर रही थी। प्रस्तुति के दौरान लोगों की सराहना बता रही थी कि फ़ेसबुक के जरिए ही सही थियेटर हम सभी के दिलों में धड़कता है। लॉकडाउन के तीसरे फ़ेज में भी लगातार जारी फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अबतक 170 लाइव सत्र हो चुके हैं जिसमें 126 लेखकों और साहित्य प्रमियों ने भाग लिया है।

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