बिहार : करीब 400 से अधिक महिला संगठनों को 'अगर हम उठे नहीं' कार्यक्रमों से जोड़ा : अंजलि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 29 अगस्त 2020

बिहार : करीब 400 से अधिक महिला संगठनों को 'अगर हम उठे नहीं' कार्यक्रमों से जोड़ा : अंजलि

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पटना, 29 अगस्त। वह भारतीय क्रांतिकारी पत्रकार थीं।उसका नाम है गौरी लंकेश। उनका जन्म 29 जनवरी 1962 में हुआ। जब 55 साल की थीं तब 05 सितंबर 2017 को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उनकी तीसरी पुण्य तिथि 05 सितंबर 2020 के अवसर पर विशेष तरह का कार्यक्रम होगा। कार्यक्रम की आयोजिका अंजलि भारद्वाज ने बताया कि करीब 400 से अधिक महिला संगठनों को 'अगर हम उठे नहीं' कार्यक्रमों से जोड़ा जा रहा है।जिन मूल्यों को लेकर भारतीय क्रांतिकारी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी और वर्तमान सरकार की नीतियों को विषय बिन्दु रखा गया है। बंगलौर से निकलने वाली कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका लंकेश में संपादिका के रूप में कार्यरत थीं। पिता पी. लंकेश की लंकेश पत्रिका के साथ हीं वे साप्ताहिक गौरी लंकेश पत्रिका भी निकालती थीं। 5 सितंबर 2017 को बंगलौर के राजराजेश्वरी नगर में उनके घर पर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस तरह वे नरेंद्र दाभोलकर (पुणे, 2013), गोविंद पानसरे (कोल्हापुर, 2015 ), एमएम कलबुर्गी (2015) जैसे दक्षिणपंथ के आलोचक भारतीय पत्रकारों और लेखकों के वर्ग में शामिल हो गईं जिनकी 2013 ई. के बाद हत्या कर दी गई है।


गौरी लंकेश की बहन कविता और भाई इंद्रजीत लंकेश फिल्म और थियेटर में काम करते हैं। पत्रकारिता से जुड़ी होने के कारण गौरी की कन्नड़ और अंग्रेजी भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' और 'संडे' मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम करने के बाद उन्होंने बेंगलूरू में रहकर मुख्यतः कन्नड़ में पत्रकारिता करने का निर्णय किया। साल 2000 में जब उनके पिता पी. लंकेश की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपने भाई इंद्रजीत के साथ मिलकर, पिता की पत्रिका 'लंकेश पत्रिका' का कार्यभार संभाला। जल्द ही इस मैग्जीन से जुड़े विवाद भी सामने आने लगे। उसने कलम उठाई थी सच के लिए, उसने बात की थी सच के लिए। लेकिन इस दौर में यही जुर्म हो गया। हत्यारों ने तीन गोलियां दाग दीं वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश के शरीर पर। कलम चलाने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश का कसूर था कि वो लिखती थीं, बोलती थीं। लेकिन कुछ लोगों को उनका लिखना रास नहीं आया। लिहाजा कलम चलाने का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा था। 55 साल की दुबली पतली गौरी की शाम अपने ही घर में थी। जब हत्यारों ने उन पर गोलियां बरसा दी। सात गोलियां चली जिनमें से तीन गोलियां गौरी को लगी और कलम चलाने वाले हाथ कि जुंबिश खत्म हो गई। 

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