- अनिश्चितकालीन उपवास के इस प्रस्ताव पर यहां चर्चा की गई है है। इस सत्याग्रह का आयोजन सरकार के समक्ष मांगों की सूची के साथ नहीं किया जाना है। यह एक नई राजनीति के पक्ष में जनमत और विवेक को बढ़ाने वाला यज्ञ है जो पीड़ित जनता के हित के लिए है। सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों पर जनता के दबाव द्वारा उन्हें जन-विरोधी और पर्यावरण-विरोधी नीतियों और राजनीति से दूर करना भी इसका मकसद है....
पटना, 09 अगस्त। अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस एवं भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के उपलक्ष्य में 24 घंटे का उपवास शुरू हुआ।आज 9 अगस्त को सुबह 8 बजे से पटना में एकता परिषद के उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी, पुष्पा लकड़ा और मंजू डुंगडुंग उपवास शुरू किये।जो कल 10 अगस्त सुबह 8 बजे तक चलेगा। 'गाँधीयन कलेक्टिव इंडिया' के बैनर तले व विख्यात गांधीवादी विचारक राजागोपाल पी. व्ही. जी और जिल बेहन के नेतृत्व उपवास संचालित है। एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक आनिश ने कहा कि यह उपवास देशव्यापी है।इसे समर्थन देने के लिए एकता परिषद संगठन के 10 राज्यो जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, केरल,असम, उड़ीसा, मणिपुर उपवास की जो श्रृंखला 5 जून 2020 विश्व पर्यावरण दिवस से 2 अक्टूबर 2020 तक जारी रहेगी। इस उपवास श्रृंखला करने का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है ।
गाँधी के भारत के मांग "गाँधी के भारत की माँग-अंतिम जन के लिए राजनीति" विषय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहे हैं। समाज के कमजोर वर्गों के बारे में कोई विचार किए बिना लॉकडाउन की अचानक घोषणा, शहरों से सामूहिक पलायन, हमें भारत विभाजन के दिनों के समान दृश्यों की याद दिलाती है। एक देश के रूप में भारत के पास पर्याप्त संसाधन और परिवहन सुविधाएं हैं जो इन लोगों को चार या पांच दिनों के भीतर अपने-अपने मूल स्थानों पर वापस भेज सकते हैं। किसी को भी इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि भारत इन्हीं लोगों के खून और पसीने से इस स्तर पर पहुंचा है। मजदूरों को उनके घर भेजने के बाद ही तालाबंदी की घोषणा की जानी चाहिए थी। यदि ऐसा किया जाता, तो उनमें से कई सड़कों के बीच, रेलवे पटरियों और ट्रेनों में नहीं मारे जाते। इन लोगों का एक हिस्सा बीमारी का वाहक बनकर भी अपने - अपने गांव लौट रहा है।, यदि इन लोगों को मार्च के मध्य तक घर वापस भेज दिया जाता, तो इस त्रासदी को आसानी से टाला जा सकता था।
गांधीजी द्वारा दिया गया ताबीज भारत के लोकतांत्रिक शासकों को हमेशा अनुसरण योग्य मार्ग दिखाता है। लेकिन, मौजूदा दौर में शासक इसका मजाक उड़ा रहे हैं। गांधी के विचारों को आज के भारत में फिर से तभी जीवित किया जा सकता है जब लोग देश के शासकों के खिलाफ खड़े होने की इच्छाशक्ति दिखाएंगे। जो गांधी के मार्ग में यकीन करते हैं, उन्हें खुद से यह पूछने का सही समय है कि क्या वे गांधीजी के बताए सत्याग्रह या अहिंसा के हथियार को उसी आत्मबल के साथ उपयोग करने के लिए तैयार हैं? यही कारण है कि अनिश्चितकालीन उपवास के इस प्रस्ताव पर यहां चर्चा की गई है है। इस सत्याग्रह का आयोजन सरकार के समक्ष मांगों की सूची के साथ नहीं किया जाना है। यह एक नई राजनीति के पक्ष में जनमत और विवेक को बढ़ाने वाला यज्ञ है जो पीड़ित जनता के हित के लिए है। सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों पर जनता के दबाव द्वारा उन्हें जन-विरोधी और पर्यावरण-विरोधी नीतियों और राजनीति से दूर करना भी इसका मकसद है। इस उपवास के माध्यम से हम सभी भारतवासियों से गाँधी के भारत की कल्पना की ओर लौटने का आग्रह करते हैं।
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