विचार : पत्रकार विहीन मीडिया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

विचार : पत्रकार विहीन मीडिया

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भारत में मीडिया को लेकर कई विषमताएं  सामने आती रहती है.. ऐसा माना जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है.. जो जनचेतनाओं को सशक्त बनाने का दायित्व निभाता है। किन्तु वही मीडिया, यदि समाजाधिकारों का हनन करने लगे, लोकतंत्र पर आघात करने लगे, सत्तापक्ष के गुणगान में इतना लीन हो जाये कि अपने मूल सिद्धांतों को ही ताक पर रख दे, सम्बंधित राष्ट्र उन्नति तो छोड़िए, अर्जित प्रतिष्ठा भी कायम नही रख सकता। भारत में मीडिया का स्वर्णिम काल कभी नही रहा है लेकिन विगत कुछ वर्षों में इस पर जो आघात हुये है, वे अत्यधिक ख़तरनाक है। पहले मीडिया की शह से, आम जनता का शोषण होता था.. लेकिन अब जज लोया, हाल में ही हुआ पुलिस टुकड़ी हत्याकांड जैसे अविश्वसनीय तत्व सामने आने लगे है। जिस देश में, जज औऱ पुलिस अधिकारी सुरक्षित ना हो, वहाँ की जनता की तो मजबूरी ही है, सत्तापार्टी और उसके द्वारा समर्थित मीडिया चैनलों की जी हुज़ूरी करे। हम आपातकाल के उस दौर से उभरने का प्रयास ही कर रहे थे, कि पुनः उन स्थितियों का आभासी निर्माण होने लगा है, हो सकता है कि समाज का एक बड़ा वर्ग, इन तर्कों से इत्तेफाक ना रखता हूँ.. लेकिन भविष्य  भयावह होगा, मैं इस बात से सिर्फ आगाह कर सकता हूँ।  जितना जानने का प्रयास किया, कि कैसे मीडिया का झुकाव जनता पक्ष की तरफ ना हो कर, दलविशेष की ओर है.. तब समझ आया कि कही ना कहीं.. इसमें मुख्य भूमिका रही है पत्रकारिता  सम्बन्धी शिक्षा के आभाव की...

जैसा कि मैंने पहले कहा, कि भारत में पत्रकारों के लिए कभी खुशमुमा दौर नही रहा है, प्रारम्भ से ही वह संघर्ष करते आये हैं। पहले आजादी के लिये और फिर दमनकारी नीतियों के खिलाफ.. ऐसे में आपातकाल का वो दर्दनाक मंजर भी, उन्हें भयभीत करता आया है। अतीत से ही, भारत मे पत्रकारिता सम्बन्धी शिक्षण संस्थानों का आभाव रहा है.. अभी की स्थिति तो काफी बेहतर है.. लेकिन आज भी हम इस क्षेत्र में वह मुकाम हासिल ना कर सके है, जहाँ हमे होना चाहिये था। जिस व्यक्ति को लिखने, बोलने का अच्छा ज्ञान होता है, हम उसे ही बेहतर पत्रकार समझ बैठते है। लेकिन पत्रकार और साहित्यकार में काफी अंतर होता है। शब्दों की कला में माहिर होना, पत्रकार की लोकप्रियता जरूर बढ़ा सकता है किंतु उसका व्यवसायिक निखार, तथ्ययुक्त सूचनाओं और द्विपक्षीय लहज़े पर निर्भर करता है। जब कि  वास्तविक और आभाषी तर्कों का मेल साहित्य कहलाता है। अतः कह सकते है कि हर पत्रकार के भीतर एक साहित्यकार छिपा होना अच्छा है, लेकिन अनिवार्य नही। आज नौबत यह है, कि बड़े बड़े मीडिया संगठनों में जो प्रबन्धन समिति है जिनके द्वारा पत्रकारों, संवाददाताओं और अन्य मीडिया कर्मचारियों की भर्ती होती होती है...  वे सिर्फ साहित्यकार है, सिर्फ बेहतरीन लेखक है, वाकपटु वक्ता है किंतु पत्रकार नही!!!! वे कलम शक्ति द्वारा अव्वल दर्जे का निबन्ध या कविता तो लिख सकते है, किसी सामाजिक मुद्दे पर सहमति या असहमति व्यक्त कर सकते है, किन्तु सूचना कैसे लिखी जाती है, पढ़ी जाती है.. इस बात से पूर्णतः अंजान है।

आप ही बताइये, जब शीर्ष कमान में रसप्रेमी होंगे, तो हमे बेहतर मीडिया कैसे प्राप्त होगा?? हो सकता है कि मेरा यह लेख, इस डायरी में ही कैद हो कर जाये..  जब वे स्वार्थ के लिये, किसी भी अन्य मुद्दे को दबा सकते है..  यह तो फिर उन पर ही अप्रत्यक्ष तौर पर प्रहार है।। हो सकता है कि इन समिति सचिवों की मुलाकात , कभी किसी कार्यक्रम के दौरान राजनेताओं से हो जाती हो.. साहित्य से जुड़ा व्यक्ति प्रायः सम्मोहन विद्या का धनी होता है.. बड़ी ही आसानी से वह इस मुलाकात तो स्वार्थ सिद्धि के रूप में व्यवहारिक गढ़ सकता है, गढ़ता है.. यही से शुरुआत होती है, मीडिया की नीलामी की... प्राथमिक व्यवहार सम्बन्धो में तब्दील होते है और धीरे धीरे वह चैनल या संगठन उस नेता को, दलविशेष को अपना माई बाप घोषित कर देता है। इसके बदले प्रबन्धकों को भी मोटा इनाम दिया जाता है, किसी किसी को तो, राष्ट्रीय सदन में सदस्य तक मनोनीत कर लिया जाता है। खैर, जिसके बारे में आप सोच रहे है, मैं उनके परिपेक्ष्य में कुछ नही कहा.. मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पड़ी नही करता। इस प्रकार, उस संगठन या चैनल के डीएनए में दलाली रूपी एंजाइम प्रवेश कर लेता है.. और काल कालांतर तक वह संगठन गुलामी का चादर ओढ़कर, जी हुज़ूरी मे लीन हो जाता है। ऐसा कदापि नही हो सकता, यदि प्रबन्धन समिति के सदस्य गण, पत्रकारिता के मूल तत्वों के जानकार हो..   क्योंकि पत्रकारिता में देशप्रेम की शिक्षा दी जाती है.. जैसे एक जवान राष्ट्र के बाह्य आवरण के रूप में हमारी रक्षा करता है... वैसे ही पत्रकार के भीतर राष्ट्र सम्वेन्दना भरपूर मात्रा में निहित होती है, बशर्ते जरूरत है तो सिर्फ.... उचित चयन और चयन प्रक्रिया की ।।



--चौबे जी---

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