बिहार : 'मन की बात' में चर्चा करने में थारू समाज में उत्साह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 30 अगस्त 2020

बिहार : 'मन की बात' में चर्चा करने में थारू समाज में उत्साह

पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में ‘60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है...
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बगहा, 30 अगस्त। बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में ‘60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है। थारू समाज के प्रकृति-प्रेम की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' में की। इसे लेकर चंपारण में उत्साह है।   बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास कार्यों की अपनी समीक्षा यात्रा की शुरुआत पश्चिम चंपारण जिले के पतिलार गांव से आज करते हुए कहा कि चंपारण की धरती के प्रति उनका समर्पण हमेशा बना रहेगा। 2005 में सता में काबिज हुए सीएम नीतीश ने चंपारण के बगहा से अपनी चुनावी यात्रा शुरू किया था। उन्होंने यात्रा के दौरान न्याय के साथ विकास का नारा दिया, जिसके बाद सेवा, विकास, धन्यवाद, समीक्षा, प्रवास और संकल्प यात्रा जैसे सारी यात्राओं की शुरुआत यहीं से की गई।इसके बाद से लगातार तीसरी बार सीएम नीतीश सता में काबिज हैं।शायद यही वजह है कि एक बार सीएम नीतीश इन उद्घाटनों के बहाने चुनाव पूर्व यहां से अपनी प्रवास यात्रा की तैयारी कर मिशन 2020 को भेदने की कवायद में जुट गये।



आगामी बिहार चुनाव को देखते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में पूरी कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आमतौर पर ये समय उत्सव का होता है, जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं ।कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग तो है, उत्साह भी है, लेकिन, हम सबको मन को छू जाए, वैसा अनुशासन भी है। बहुत एक रूप में देखा जाए तो नागरिकों में दायित्व का एहसास भी है। लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं। देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है। गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो, ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है ।साथियो, हम, बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात  अवश्य हमारे ध्यान में आयेगी - हमारे पर्व और पर्यावरण। इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता रहा है। जहां एक ओर हमारे पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सहजीवन का सन्देश छिपा होता है तो दूसरी ओर कई सारे पर्व प्रकृति की रक्षा के लिये ही मनाए जाते हैं ।जैसे, बिहार के पश्चिमी चंपारण में, सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के lockdown या उनके ही शब्दों में कहें तो ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिये बरना को थारु समाज ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और सदियों से बनाया है।इस दौरान न कोई गाँव में आता है, न ही कोई अपने घरों से बाहर निकलता है और लोग मानते हैं कि अगर वो बाहर निकले या कोई बाहर से आया, तो उनके आने-जाने से, लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियों से, नए पेड़-पौधों को नुकसान हो सकता है।बरना की शुरुआत में भव्य तरीके से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजा-पाठ करते हैं और उसकी समाप्ति पर आदिवासी परम्परा के गीत,संगीत, नृत्य जमकर के उसके कार्यक्रम भी होते हैं। भारतीय थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद ने कहा कि हमारी सभ्यता और संस्कृति ही हमारी पहचान है। प्रधानमंत्री ने हमारी संस्कृति की चर्चा कर गौरवान्वित किया है। देवरिया तरूअनवा पंचायत की मुखिया श्रीमतीदेवी ने कहा कि इसके लिए पीएम को धन्यवाद देती हूं। नौरंगिया दरदरी पंचायत के मुखिया बिहारी महतो ने पीएम ने अपने संबोधन में हमारी परंपरा को स्थान दिया। यह गौरव की बात है।  प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की समाप्ति के बाद थारू बहुल हरनाटांड, अमवा, भड़छी, तरुअनवा, पाडऱखाप, सिधांव, बिनवलिया, बेलहवा, नौरंगिया, केरई, बेरई, अमहट, काला बरवा, बैरिया, सुंदरपुर, भेलाही, नौतनवा, जिमरी, शेरहवा दोन, बेतहानी, गोबरहिया और बेलाटांड़ी आदि गांवों के युवा घर से बाहर निकल आए। हर्ष व्यक्त किया।

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