करवाचौथ पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत अन्य कई प्रदेशों के साथ इंग्लैंड अमेरिका, यूरोप, कैनेडा और सूरीनाम आदि देशों में रहने वाले भारतीय परंपरागत ढंग से मनाते हैं। उन्होंने बताया कि इस पर्व को पहले पत्नियां ही करती थी लेकिन बदलते परिवेष में पति भी अपने सफल दाम्पत्य जीवन के लिए पत्नी के साथ निर्जला व्रत का पालन करने लगे है। मोबाइल फोन और इंटरनेट के दौर में करवाचौथ के प्रति महिलाओं में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आयी बल्कि इसमें और आकर्षण बढ़ा है। टीवी धारावाहिकों और फिल्मों से इसको अधिक बल मिला है। करवाचौथ भावना के अलावा रचनात्मकताए कुछ-कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है। डाॅ सिंह ने बताया कि इस पर्व की महत्ता न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरूषों के लिए भी है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और फिर पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं। उन्हाेंने बताया कि इस व्रत में चन्द्रमा को छलनी में देखने का विधान इस बात की ओर इंगित करता है कि पतिण्पत्नी एक दूसरे के दोष को छानकार सिर्फ गुणों को देखें जिससे दाम्पत्य के रिश्ते प्यार और विश्वास की डोर से मजबूती के साथ बंधे रहे। पति और पत्नि गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिया हैं। किसी एक के भी बिखरने से पूरी गृहस्थी टूट जाती है। डाॅ रश्मि सिंह ने बताया कि पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। यह पर्व पति-पत्नी का बन चुका है क्योंकि दोनों गृहस्थी रुपी गाड़ी के दो पहिए है। निष्ठा की धुरी से जुड़े हैं इसलिए संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए दोनों ही व्रत करते हैं।
उन्हाेंने बताया कि बदलाव आधुनिकता का जरूर है लेकिन संस्कृति और परंपराओं के निभाने की पूरी ललक विवाहिताओं में साफ दिखाई दे रही है। आजकल के मॉडर्न जमाने में भी करवा चौथ त्योहार मनाने को लेकर पीढ़ी अंतराल के बावजूद कोई खास बदलाव नहीं आया है। रिश्तों और पुरानी परंपराओं को सहेजने में नई पीढ़ी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। करवाचौथ को अधिक बल फिल्मों और टीवी धारावाहिकों से मिला है। करवाचौथ के व्रत का आरम्भ कब से शुरू हुआ इसकी सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है। इसका विवरण शास्त्रों, पुराणों और महाभारत में मिलता है। श्वामन पुराण में भी करवा चौथ व्रत का वर्णन मिलता है। करवा चौथ से जुड़ी अनेक कथायें भी प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों के साथ युद्ध से भी जुड़ा है इसका इतिहास। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने.अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
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