बिहार : पटना की ओर चल पड़ा किसानों का जत्था, सैंकड़ों गाड़ियां शामिल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 28 दिसंबर 2020

बिहार : पटना की ओर चल पड़ा किसानों का जत्था, सैंकड़ों गाड़ियां शामिल

  • किसानों के राजभवन मार्च को हर तरह से सहयोग की अपील
  • राजभवन जाकर राज्यपाल को सौंपेंगे ज्ञापन, तीनों कृषि बिल वापस लेने की कर रहे मांग

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पटना 28 दिसंबर, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर कल 29 दिसंबर को आयोजित किसानों के राजभवन मार्च में हिस्सा लेने के लिए बिहार के सुदूर इलाकों के किसानों कड़ाके की ठंड के बावजूद चारपहिए वाहनों, ट्रेनों व अन्य साधनों से आज ही पटना की ओर निकल गए हैं. अभी व्यापक पैमाने पर रेलवे का परिचालन नहीं हो रहा है, फिर भी पूरे बिहार से किसानों की विशाल भागीदारी कल के राजभवन मार्च में होने वाली है. यह जानकारी अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह ने आज प्रेस बयान जारी करके कही. उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय किसान महासभा के साथ-साथ एआईकेएससीसी के सभी सदस्य संगठनों ने कल के राजभवन मार्च में अपनी पूरी शक्ति लगा दी है. कल के राजभवन मार्च में दसियों हजार किसान भाग लेंगे. जिसमें बटाईदार किसानों का भी बड़ा हिस्सा शामिल होगा. पूर्णिया, अररिया, सीमांचल के अन्य जिलों, चंपारण, सिवान, गोपालगंज आदि जिलों के किसान आज ही पटना की ओर निकल चुके हैं. कल के मार्च में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी व पूर्व विधायक राजाराम सिंह, पंजाब के किसान आंदोलन के नेता जगमोहन सिंह, बिहार राज्य किसान सभा-केदार भवन के महासचिव अशोक कुमार सिंह, बिहार राज्य किसान सभा-जमाल रोड के बिहार अध्यक्ष ललन चैधरी, किसान-मजदूर विकास समिति, जहानाबाद के अनिल सिंह, अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव रामाधार सिंह आदि नेतागण भाग लेंगे. किसान नेताओं ने बिहार के प्रबुद्ध नागरिकों से अपील की है कि किसानों के इस आंदोलन को अपना व्यापक समर्थन दें. पटना में कल 12 बजे गांधी मैदान के गेट नंबर 10 से राजभवन मार्च आरंभ होगा. किसान नेताओं ने कहा कि आज भगत सिंह का पंजाब और स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन की धरती बिहार के किसानों की एकता कायम होने लगी है, इससे भाजपाई बेहद डरे हुए हैं. बिहार की धरती सहजानंद सरस्वती जैसे किसान नेताओं की धरती रही है, जिनके नेतृत्व में जमींदारी राज की चूलें हिला दी गई थीं. आजादी के बाद भी बिहार मजबूत किसान आंदोलनों की गवाह रही है. 70-80 के दशक में भोजपुर और तत्कालीन मध्य बिहार के किसान आंदोलन ने किसान आंदोलन के इतिहास में एक नई मिसाल कायम की है. अब एक बार नए सिरे से बिहार के छोटे-मंझोले-बटाईदार समेत सभी किसान आंदोलित हैं. बिहार से पूरे देश को उम्मीदें हैं और 29 दिसंबर के राजभवन मार्च से भाजपा के इस झूठ का पूरी तरह पर्दाफाश हो जाएगा कि बिहार के किसानों में इन तीन काले कानूनों में किसी भी प्रकार का गुस्सा है ही नहीं. किसान नेताओं ने बिहार के राज्यपाल से अपील की है कि वे किसान प्रतिनिधियों से वार्ता का समय निकालें, हमारी मांगों को सुनें और उचित कार्रवाई हेतु उसे राष्ट्रपति तक पहुंचाने का कष्ट करें.

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