श्री रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल साहित्य सम्मान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

श्री रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल साहित्य सम्मान

sri-lal-shukla-literature-award-to-shri-ranendra
नयी दिल्ली, 05 दिसंबर, लेखक एवं कथाकार श्री रणेन्द्र को वर्ष 2020 के श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान के लिए चुना गया है। इफको के प्रबंध निदेशक उदय शंकर अवस्थी ने शनिवार को यह घोषणा की। उन्होंने ट्वीट कर श्री रणेन्द्र को बधाई दी और कहा कि उनका लेखन आदिवासी जीवन को समर्पित है। उन्हें यह सम्मान आगामी 31 जनवरी को यहां एक समारोह में प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार के रूप में 11 लाख रूपये नकद और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। उर्वरक क्षेत्र की अग्रणी सहकारी संस्था इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) द्वारा दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए कथाकार श्री रणेन्द्र के नाम का चयन सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. नित्यानन्द तिवारी की अध्यक्षता वाली समिति ने किया है। समिति में वरिष्ठ कथाकार चंद्रकांता, कवि-पत्रकार श्विष्णु नागर, लेखक प्रो. रविभूषण, वरिष्ठ आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल शामिल थे। श्री रणेन्द्र का जन्म 10 फरवरी 1960 को बिहार के नालंदा जिले में एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने आदिवासी जीवन को अपनी लेखनी का मुख्य विषय बनाया है। अपनी रचनाओं में वे वैश्वीकरण एवं विकास के दौर में आदिवासी समुदायों के भीतर हो रहे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की बारीकी से पड़ताल करते हैं। अपने पहले उपन्यास ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ से वे साहित्य जगत में चर्चा में आए। ‘असुर’ के जीवन के माध्यम से लेखक ने इस उपन्यास में आदिवासी समाज को देखने का नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। ‘गायब होता देश’ उनका दूसरा उपन्यास है जिसमें ‘मुंडा’ आदिवासियों के जीवन संघर्ष का चित्रण किया गया है। अपनी इन रचनाओं में उन्होंने अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, विस्थापन, घुसपैठ, स्त्री-शोषण, धार्मिक-भाषिक अस्मिता जैसे प्रश्नों को संवेदनशीलता के साथ उठाया है। कहानी और उपन्यास के साथ-साथ उन्होंने कविताएं भी लिखीं हैं। अब तक उनके दो कहानी संग्रह, 'रात बाकी' और ‘अन्य कहानियां’ तथा ‘छप्पन छुरी बहत्तर पेंच’ नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताओं का संकलन 'थोड़ा सा स्त्री होना चाहता हूं' नाम से प्रकाशित है। उन्होंने 1999 से 2005 के दौरान 'कांची' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी किया है। शास्त्रीय संगीत के घरानों पर आधारित उनका उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ जल्दी ही प्रकाशित होने वाला है। मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान प्रत्येक वर्ष ऐसे हिन्दी लेखक को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में मुख्यत: ग्रामीण व कृषि जीवन तथा हाशिए के लोग, विस्थापन आदि से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों का चित्रण किया गया हो अब तक यह सम्मान विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामधारी सिंह ‘दिवाकर’ और महेश कटारे को दिया गया है।

कोई टिप्पणी नहीं: