इथेनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए संशोधित योजना मंजूर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 दिसंबर 2020

इथेनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए संशोधित योजना मंजूर

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नयी दिल्ली 30 दिसंबर, सरकार ने देश में पहली पीढ़ी (1 जी) के इथेनॉल का उत्‍पादन बढ़ाने के लिए अनाजों (चावल, गेंहू, जौ, मक्‍का और जवार), गन्‍ना, चुकन्‍दर आदि से इथेनॉल निकालने की क्षमता बढ़ाने के लिए एक संशोधित योजना को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति की आज हुयी बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। मिश्रण स्‍तर में वृद्धि से आयातित जैव ईंधन पर निर्भरता कम होगी और वायु प्रदूषण भी कम होगा। भट्टियों की क्षमता में वृद्धि/नयी भट्टियां लगाने से ग्रामीण इलाकों में नए रोजगार अवसरों का सृजन होगा और इस तरह आत्‍मनिर्भर भारत के लक्ष्‍य को प्राप्‍त किया जा सकेगा। आधिकारिक जानकारी के अनुसार 2010-11 के चीनी सत्र से गन्‍ने की बेहतर किस्‍मों के आने के बाद देश में चीनी का अतिरिक्‍त उत्‍पादन हुआ है और उम्‍मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह रूख जारी रहेगा। सामान्‍य चीनी सत्र (अक्टूबर से सितम्‍बर) में करीब 320 लाख टन चीनी का उत्‍पादन होता है, जबकि घरेलू खपत करीब 260 लाख टन है। सामान्‍य चीनी सत्र में 60 लाख टन के इस अतिरिक्‍त उत्‍पादन से चीनी मिलों को अपनी कीमत तय करने में दबाव का सामना करना पड़ता है। 60 लाख मीट्रिक टन का यह अतिरिक्‍त भंडार बिक नहीं पाता और इस तरह चीनी मिलों का 19 हजार करोड़ रुपये की राशि फंस जाती है और उनकी पूंजी तरलता की स्थिति को प्रभावित करती है। परिणामस्‍वरूप वे गन्‍ना किसानों को उनके उत्‍पाद की बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पाती। चीनी के इस अतिरिक्‍त भंडार से निपटने के लिए चीनी मिलें चीनी का निर्यात करती हैं और इसके लिए उन्‍हें सरकार से वित्‍तीय सहायता मिलती है, लेकिन विश्‍व व्‍यापार संगठन की व्‍यवस्‍था के अनुरूप भारत, विकासशील देश होने के कारण सिर्फ 2023 तक ही चीनी के निर्यात के लिए वित्‍तीय सहायता दे सकता है। अत: इस अतिरिक्‍त गन्‍ने और चीनी का इथेनॉल के उत्‍पादन के लिए उपयोग करना ही चीनी के अतिरिक्‍त भंडार से निपटने का सही रास्‍ता है। अतिरिक्‍त चीनी के इस उपयोग से मिलों द्वारा भुगतान किए जाने वाले चीनी के घरेलू मिल-मूल्‍य में स्थिरता आएगी और चीनी मिलों को इसके भंडारण की समस्‍या से निजात मिलेगी। इससे उनके पूंजी प्रवाह में सुधार होगा और उन्‍हें किसानों को उनके बकाया मूल्‍य का भुगतान करने में सुविधा होगी। इसके साथ ही इससे चीनी मिलों को आने वाले सालों में अपना कामकाज चलाने में भी मदद मिलेगी।

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