राज्य के ऐसे कई पहाड़ी इलाके हैं जहां सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। गढवाल मंडल स्थित चमौली जनपद के दूरस्थ गाँव डुमक कलगोठ, किमाणा, पल्ला, जखोला, लांजी पोखनी, द्वींग आदि के ग्रामीणों को अभी तक यातायात की सुविधा का लाभ नही मिल पाया है। सड़क न होने के कारण इस क्षेत्र में तमाम विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि इन सभी गावों के लिये सड़क का निर्माण कार्य वर्षो से शुरू हो गया था, लेकिन ढ़ीली रफ्तार के कारण आज भी इन सड़कों का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। जो स्थानीय लोगों की परेशानियों का कारण बना हुआ है। हालांकि राज्य सरकार दूरस्थ से दूरस्थ गाँवों को भी सड़कों की सुविधा प्रदान करने का दावा कर रही है। लेकिन पिछले कई सालों से जिले से लेकर राजधानी तक आंदोलन करने के बावजूद भी इन क्षेत्रों के लोगों को सड़क की सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है।
धीमी निर्माण गति गांव वालों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा प्रतीत होता है। विकास के इस दौर में भी यहां के बाशिंदों को आज भी मीलों पैदल चलकर अपनी कठिन आजीविका संचालित करनी पड़ रही है। इस क्षेत्र के गांवों में 500 परिवारों की लगभग 2000 की जनसंख्या निवास करती है। अभी भी यह लोग विकट परिस्थितियों में अपना जीवन यापन करते हैं। महीने में एक बार बाजार पहुँचकर जरूरी सामान अपने घरों में एकत्र कर लेते हैं। ताकि कठिनाइयों से बचा जा सके। सबसे अधिक समस्या इन गांव वालों को वर्षा के समय होती है, जब बारिश के कारण सड़क पैदल चलने लायक भी नहीं रह जाती है। वहीं जाड़ों में बर्फ़बारी के कारण भी इस सड़क से गुज़रना जानलेवा साबित होता है। ऐसे कठिन समय में मरीज़ों और प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को किस प्रकार अस्पताल पहुंचाया जाता है, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। वर्ष 2013 की दैवी आपदा के समय इन गाँवों को जोड़ने वाले पुल तथा पैदल रास्ते पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये थे। जिन्हें अभी तक नहीं बनाया जा सका है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिना यातायात सुविधा के यहां तमाम विकास कार्य कैसे संचालित हो पा रहे होंगे?
इस क्षेत्र के गाँवों में नकदी फसल के नाम पर राजमा, रामदाना, आलू तथा अन्य सब्जियां उगाई जाती हैं। लेकिन सड़क व मंडी के दूर होने के कारण उत्पादों को बाजार नहीं मिल पाता है। देहरादून जैसी मंडियों तक उत्पाद पहुँचाने पर लागत कई गुना बढ़ जाती है, जिससे किसानों की लागत ही नहीं निकल पाती है। इससे फसलें बर्बाद हो जाती हैं और लोगों का मन खेती से भी विभुख हो जाता है। यदि गाँव को सड़क सुविधा से जोड़ दिया जाता तो इसका लाभ यहां के किसानों को भी मिलता। सड़क को गांव तक पहुँचाने वाले विषय पर बात करने पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, चमौली के सहायक अभियंता तनुज कांबोज का कहना है कि ‘‘वर्तमान समय में सड़क के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। बीच में कुछ समय पूर्व ठेकेदार के द्वारा निर्माण कार्य को बीच में ही छोड़ देने के बाद नई टेंडर प्रकिया जारी की गई है। जिसके बाद अब कार्य प्रगति पर है और शीघ्र ही सड़क के निर्माण का कार्य पूरा होने की संभावना है।’’
इस संबंध में स्थानीय विधायक महेन्द्र भटट का कहना है कि ‘‘जनपद के दूरस्थ गाँवों को सड़क सुविधा से जोड़ने के साथ ही तमाम सुविधाओं के विकास के लिये विभागीय अधिकारियों को जरूरी निर्देश दे दिये गये हैं। सड़क के लिये धनराशि भी शासन से स्वीकृत कर दी गई है। यदि निर्माण कार्य करने वाली एजेंसी द्वारा कार्य में प्रगति नही लाई गई तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जायेगी।’’ डुमक गांव के सामाजिक कार्यकर्ता व सड़क आन्दोलन के अग्रणी प्रेम सिंह सनवाल का कहना है कि ‘‘आज भी इन गाँवों के लोग अपनी नगदी फसलों को बाजार तक पहुँचाने के लिए घोड़े एवं खच्चरों का सहारा ले रहे हैं। इससे माल ढुलाई में अधिक पैसा खर्च होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।’’ गाँव के एक किसान का कहना है कि यदि 5 कुन्तल राजमा गोपेश्वर या जोशी मठ नगर तक पहुँचाना है तो घोड़े और खच्चरों का किराया ही इतना देना पड़ जाता है कि उसे बेचना मुफ्त देने के बराबर हो जाता है। हमें 5 कुन्तल राजमा की कीमत 150 रुपया प्रति किलोग्राम के हिसाब से 75 हजार रूपये मिल भी जाती है तो लगभग 30 हजार रुपया किराया, बीज की ही लागत हो जाती है। इसके बाद अपनी मेहनत का तो कुछ कहना ही नहीं है।
एक कल्यांणकारी राज्य की सरकार को चाहिए कि वह अपने नागरिकों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुये कम से कम मूलभूत सुविधायें तो प्रदान करे। विकास कार्यों की गति को लेकर त्वरित कार्यवाही करते हुये इसे समय पर पूरा करने की दिशा में कदम बढ़यें। तभी गाँवों तथा गाँव के लोगों का समेकित विकास संभव हो सकेगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब सुविधाओं की कमी के कारण लोग पलायन करने पर मजबूर हो जायेंगे और गाँव के गाँव वीरान होंगे।
चमौली, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें