सन् 1970 मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता डाॅ. निवासकर जिला अस्पताल दतिया मे पदस्थ थे और तत्समय उनका सम्पर्क दाऊ से हुआ। उन्होने दाऊ को संघ की कार्य पद्धति व राष्ट्रभक्ति से परिचित कराया था। तभी से दाऊ संघ के स्वयंसेवक हो गए थे। दिनांक 26 सितम्बर 1971 को बिहार व उŸार प्रदेश के तत्समय क्षेत्रीय प्रचारक श्री रज्जू भैया जी प्रवास पर दतिया आए और हमारे निवासगृह पर ही रूके। प्रसिद्ध समाजवादी डाॅ. राम मनोहर लोहिया, आध्यात्मिक चिन्तक दादा धर्माधिकारी, विमला बहिन, माननीय भाऊराव जी देवरस तथा माननीय सुदर्शन जी तो दर्जनो बार अपने प्रवास पर दाऊ के साथ हमारे घर मे ही रूकते रहै हैं। तत्कालीन सर संघचालक गुरूजी (माननीय गोलवरकर जी) ने ग्वालियर के संघ शिक्षा वर्ग, जिसके दाऊ सवर्वाधिकारी थे, उन्हे ग्वालियर विभाग के संघचालक नियुक्त किया था। इस वर्ग मे श्री अटल विहारी वाजपेयी, प्रांत संघचालक श्री रामनारायण शास्त्री, माननीय सुदर्शन जी शामिल थे। संघ की दृष्टि से ग्वालियर विभाग मे पांच जिले शामिल थे और अब बर्तमान मे मुरेना, शिवपुरी व ग्वालियर विभाग हैं। दिनांक 31 दिसम्बर 1980 को दाऊ ने बकालत के व्यवसाय से स्वयं को सेवानिवृत कर लिया था और तभी से संघ कार्य मे स्वयं को समर्पित कर दिया था। प्रदेश व देश के बिभिन्न क्षेत्रों मे उन्होने संघ कार्य हेतु निरन्तर प्रवास किए। वह सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान भोपाल के प्रान्तीय अध्यक्ष एवं विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्तीय उपाध्यक्ष रहै। दाऊ का सम्पूर्ण परिवार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रेरित राष्ट्रवादी बिचारधारा का है। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा ने अपनी सŸाा की सुरक्षार्थ जन भावना के बिरूद्ध हठधर्मी करते हुए देश मे एमर्जेन्सी लगाने की घोषणा कर दी थी जिसके परिणामस्वरूप देश के विपक्षी नेताओं को जेल मे डाल दिया गया था। चूंकि श्री राम रतन तिवारी ग्वालियर विभाग संघचालक थे, अतः उन्हे भी डी.आई.आर. के तहत दिनांक 5 जुलाई 1975 को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन कोई भी अपराध नही पाए जाने के कारण ग्वालियर न्यायालय से दाऊ की जमानत स्वीकार की गई थी तथा उन्हे दिनांक 10 जुलाई 1975 को जेल से रिहा कर दिया गया। तत्पश्चात से दाऊ ने अपना शेष सम्पूर्ण जीवन संघ कार्य के प्रति समर्पित कर दिया।
अध्यात्मिक चिन्तन के क्षेत्र मे दाऊ परम ज्ञानी थे। श्रीमद्भगवतगीता, रामचरित मानस, उपनिषद व कर्मयोग आदि विषयों पर उनके उद्बोधन व विचार हमेशा याद किए जावेंगे। कर्म और उसके परिणाम के सन्दर्भ मे दो दृष्टिकोंण हैं, एक तो यह कि कर्म किया तो उसके प्रतिफल मे उपलब्धि प्राप्त होना हमारा अधिकार है। दूसरा यह कि सिर्फ कर्म करना ही हमारा दायित्व है, उसका परिणाम जो मिलना है वह प्राप्त हो या नहीं हो, परिणाम की आकांक्षा की आतुरता नहीं है। दाऊ का समस्त जीवन कभी भी कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा का नहीं रहा है। उनका ध्येय केवल कर्म करने का रहा है। यही श्रीमद्भगवतगीता मे भगवान श्रीकृष्ण का संदेश है। संघ की कार्य पद्धति भी इसी उद्देश्य पर आधारित है। अपनी आयु के 97वें वर्ष मे पूर्णतः स्वस्थ रहते हुए दिनांक 30 दिसम्बर 2020 को दाऊ ने अपना स्थूल शरीर छोड़ा। उनके स्वर्गवास के कारण समाज मे जो रिक्तता हो गई है, उसकी भारपाई कभी भी नहीं हो सकती है। उनके चरणों मे श्रद्धांजलि अर्पित।
राजेन्द्र तिवारी
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नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं।
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