बीते दिनों से प्रदेश के विदिशा जिले का कस्बा उदयपुर और उदयपुर की ऐतिहासिक विरासतें सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक चर्चा का विषय बनी हुईं है । दरअसल उदयपुर की परमार कालीन विरासत पर कस्बे के ही एक काजी परिवार ने निजी संपत्ति का बोर्ड लटका दिया था। कस्बे से निकलकर आईं इन तस्वीरों ने इतिहासकार और पुरातात्विक धरोहरों के प्रेमियों को विचलित कर दिया, लेक़िन जब यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो उसका परिणाम यह हुआ कि महज कुछ ही घंटों में इन धरोहरों को बचाने के लिए स्थानीय स्तर पर युवाओं ने सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ दी। जिसके बाद यह पूरा मामला लोगों की नजर में आया और प्रशासन की कुम्भकर्णी नींद में भी खलल पड़ी। आखिरकार प्रशासन जागा और उदयपुर के महल पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही हुई ।
क्या है पूरा वाक्या
भोपाल से महज 70 किलोमीटर दूर उदयपुर नाम का यह कस्बा उन दिनों सुर्खियों में आया जब मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी अपने मित्र और देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ सुरेश मिश्र के साथ एक हेरिटेज वॉक पर घूमने आए हुए थे। प्राचीन भवनों को निहारते हुए उनकी नजर एक और भव्य महल की ओर पड़ी उन्होंने देखा कि इस प्राचीन और ऐतिहासिक सी दिखने वाली इमारत पर एक बोर्ड लटका हुआ है जिस बोर्ड पर लिखा था "निजी संपत्ति उदयपुर पैलेस खसरा नंबर 822 वार्ड नंबर 14" दरअसल यह महल कोई साधारण महल नहीं बल्कि राजा उदयादित्य के काल का एक ऐतिहासिक महल था। जिस को उदयपुर के डॉ काजी सैयद इरफान अली ने बोर्ड टांग कर अपनी निजी संपत्ति घोषित कर दिया था। श्री विजय मनोहर तिवारी ने इस पूरे मसले को अपनी सोशल मीडिया वॉल पर डाला तो कुछ ही घंटों में यह पूरा मामला स्थानीय समाचार पत्रों और स्थानीय युवाओं की नजर में आ गया, जिसके बाद युवाओं ने फेसबुक सहित सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म पर अपनी ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए एक मुहिम छेड़ दी। विदिशा के प्रबुद्ध नागरिकों के द्वारा राजा उदयादित्य की नगरी को बचाने के लिए स्थानीय कलेक्टर के नाम एक ज्ञापन भी दिया गया, धीरे धीरे एक सोशल मीडिया पोस्ट जन मुहिम बन गयी। इस मुहिम को सोशल मीडिया की सार्थकता के चलते ही वर्षों से कुंभकरण नींद का आनंद ले रहे प्रशासन के आनंद में भी खलल पड़ा स्थानीय एसडीएम के द्वारा नायब तहसीलदार को मौके पर पहुंचा कर जानकारी जुटाने को कहा। तहसीलदार ने मौके पर पहुंचकर काजी साहब से बोर्ड हटवा दिया लेकिन युवाओं की मुहिम यहां नहीं रुकी थी और समाचार पत्र पत्रिका के द्वारा भी लगातार इस संदर्भ में समाचार प्रकाशित किए जा रहे थे , जिसके बाद स्थानीय विधायक इस मुद्दे को लेकर आनन-फानन में एसडीएम तहसीलदार सहित अधिकारियों की बैठक ली और पूरे मसले को 3 दिन में खत्म करने की हिदायत दी प्रशासन ने ऐतिहासिक महल को अपनी पुरातात्विक धरोहर मानते हुए काजी साहब को अतिक्रमण हटाने नोटिस जारी किया साथ ही काजी साहब पर भू अभिलेख की धारा 248 का मामला भी दर्ज किया गया । इस प्रकार एक फेसबुक पोस्ट ने हमारे देश की अनमोल और ऐतिहासिक इमारत को काजी साहब की निजी संपत्ति बनने से बचा लिया । ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग का यह पहला उदाहरण हो ऐसे कई उदाहरण पूर्व में भी हमारे सामने आ चुके हैं जहां सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों ने धन संग्रह कर कई गरीबों की मदद की है तो कई जरूरतमंद लोगों को गंभीर बीमारी से लड़ने के लिए इलाज मुहैया कराया गया है।
हर दिन 3 घंटे सोशल मीडिया पर वक्त बिताते हैं भारतीय
एक दैनिक समाचार पत्र मैं प्रकाशित समाचार के मुताबिक भारत में सोशल मीडिया पर मौजूद हर यूजर दिन में औसतन 2 घंटे 24 मिनट बिताता है , जिससे यह साफ जाहिर होता है कि यदि हम सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए अपने आस पास की छोटी-छोटी समस्याओं को हम उठाएं,जन सरोकार के मुद्दों को स्पर्श करें,समाज में सकारात्मक प्रयास लाने की दिशा में अग्रसर हो तो इस मंच के द्वारा भी बदलाव सम्भव है। ऐसा नहीं हैं कि उदयपुर के बारे में इससे पहले समाचार पत्रों में चिंता व्यक्त नहीं की गई हो.प्रशासन की उदासीनता से लेकर सरकारों की बेरुखी और स्थानीय नागरिकों का सहयोग- असहयोग की खबरें लगातार अखबारों की जगह भरती आ रही थीं। तो इस बार अलग क्या हुआ जो उदयपुर खबर से उठकर मुद्दा बन गया। मुद्दा जिसके कारण महल और आस-पास की ऐतिहासिक इमारतों पर पड़ी धूल पर पटवारी से लेकर सांसद तक की जवाबदेही तय हो गयी। एक साधारण सी फेसबुक पोस्ट से निकली चिंगारी जन चेतना को जाग्रत कर सकती है.यह बात अब सिद्ध हो चुकी है। यह सोशल मीडिया की ही ताकत है की छोटे शहरों की बड़ी से बड़ी खबर तक नज़रअंदाज़ कर नोयडा में किसी शाम को हुई बूंदा-बांदी की खबर को नेशनल न्यूज़ बनाकर दिखाने वाला मीडिया भी आज ट्विटर पर ट्रेंड में रहने वाले मुद्दों से कन्नी नहीं काट पाता।
अंकित शर्मा
(छात्र पत्रकारिता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल)
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