दरभंगा : हिंदी को दिया गया सखी भाषा का दर्जा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 10 जनवरी 2021

दरभंगा : हिंदी को दिया गया सखी भाषा का दर्जा

hindi-sakhi-in-india
दरभंगा : हिन्दी को अपनी विकास-यात्रा में काफी संघर्ष करना पड़ा है। आजाद भारत में भी इसे सखी भाषा का दर्जा दिया गया। उस दौर के सत्तासीनों ने हिन्दी की समृद्धि का मार्ग अवरूद्ध किया है। वाबजूद इसके हिन्दी टक्कर लेती हुई आगे बढ़ती रही है। हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य अत्यंत समृद्ध और सुखद है। वैश्विक फलक पर इसकी समृद्धि का कारण है- उन्नत सृजनशीलता, बोलने वालों की अकूत संख्या तथा अपार शब्द-संपदा।’ ये बातें लनामिवि के हिन्दी विभाग में 10 जनवरी को आयोजित ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता पूर्व संकायाध्यक्ष डाॅ. प्रभाकर पाठक ने कहीं। उन्होंने कहा कि बोलने वालों की दृष्टि से हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी भाषा है। हिन्दी के पास अपार शब्द-संपदा है। समृद्ध साहित्य है। अपना व्याकरण और अपनी लिपि है। इस अवसर पर प्रभारी विभागाध्यक्ष डाॅ० विजय कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि पूरी दुनिया आज हिन्दी दिवस मना रही है। अब हिन्दी की शक्ति और सामर्थ्य का बोध पूरी दुनिया को हो चुकी है। तभी तो कार्पोरेट कंपनियों ने अपने उत्पाद को बेचने के लिए अंग्रेजी के साथ हिन्दी को अपना लिया है। हिन्दी भाषा के कारण ही हमें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। हिन्दी की समृद्धि हमें गौरवान्वित करती है। डाॅ० सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि हिन्दी हमारी माटी-पानी की भाषा है। यह बाजारू या बिकाऊ भाषा नहीं है। हिन्दी के विकास के लिए किसी दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं है। भारत के गिरमिटिया मजदूरों ने हिन्दी को वैश्विक फलक पर फैलाया है। हिन्दी वास्तव में हमारे दिल की भाषा है। कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि कोई भी भाषा भाषण या नारों से समृद्ध नहीं होती है। वह समृद्ध होती है व्यापार और उद्योग से, रोजी-रोजगार से। हिन्दी वास्तव में व्यापार और रोजगार की भाषा है। हमें हिन्दी दिवस मनाने की रस्म अदाएगी के बजाय इसके विकास के लिए दृढ़संकल्पित होना चाहिए। विषय -प्रवेश से लेकर समूचे कार्यक्रम का कुशल संचालन डाॅ. आनन्द प्रकाश गुप्ता ने किया। इस आयोजन में विभाग के अतिथि शिक्षक डाॅ. उमेश कुमार शर्मा, शोधार्थी कृष्णा अनुराग, सरोजनी गौतम, अभिशेक कुमार सिन्हा, धर्मेन्द्र दास, सियाराम मुखिया, प्रियंका कुमारी, चन्दीर पासवान, नरेश राम समेत बड़ी संख्या मे एम.ए. प्रथम छमाही तथा तृतीय छमाही के छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।

कोई टिप्पणी नहीं: