- -- राजकमल प्रकाशन से आई पत्रकार धवल कुलकर्णी की किताब 'ठाकरे भाऊ : उद्धव, राज और उनकी सेनाओं की छाया'
- -- राज और उद्धव ठाकरे के वैचारिक राजनीतिक टकराव और अलगाव का बेहद दिलचस्प ब्योरा
- -- महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और उठापटक का प्रामाणिक चित्रण
नई दिल्ली : जाने-माने पत्रकार धवल कुलकर्णी की किताब ‘ठाकरे भाऊ : उद्धव, राज और उनकी सेनाओं की छाया’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हो गई है। महाराष्ट्र के सियासी परिदृश्य पर गंभीरता से विचार करने वाली इस किताब का प्रकाशन ऐसे समय हुआ है जब 23 जनवरी को, मराठी अस्मिता की आक्रामक राजनीति करनेवाले शिवसेना-प्रमुख बाल ठाकरे की 95वीं जयंती है। इसमें उनकी राजनीतिक विरासत के दावेदारों, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के राजनीतिक जीवन और उनके राजनीतिक दलों की विकास-यात्रा का व्यापक सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया गया है। जिससे राज और उद्धव के वैचारिक राजनीतिक टकराव और अलगाव की बेहद दिलचस्प कहानी सामने आती है। लेखक धवल कुलकर्णी कहते हैं, यह किताब शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के हवाले से उन उद्देश्यों और प्रक्रियाओं की गम्भीरता से पड़ताल करती है, जो स्थानीय पहचान से जुड़े आन्दोलनों और स्थानीय होने के आधार पर लोगों को विशेष अधिकार का दावा करने के लिए प्रेरित करती हैं। मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब का अनुवाद सुपरिचित कथाकार-अनुवादक प्रभात रंजन ने किया है। यह हिन्दी अनुवाद अपने मूल अंग्रेजी संस्करण से संवर्धित है जिसमें महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के सत्ता सँभालने के पूरे घटनाक्रम और उनके अब तक के शासन की उपलब्धियों और चुनौतियों का ब्योरा भी दिया गया है। राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की विरासत को उनकी परवर्ती पीढ़ी की राजनीतिक आकांक्षाओं और गतिविधियों के आलोक में परखने वाली यह किताब समकालीन भारतीय राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों समेत सभी लोगों के लिए एक जरूरी संदर्भ है. इसमें इतिहास को बनते हुए देखा जा सकता है। यह किताब आज से पाठकों के लिए बाजार में उपलब्ध है ।
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