- • कौन हैं भारत माता’ का मशहूर शायर जावेद अख़्तर ने लोकार्पण किया।
- • आलोचनात्मक विवेक से संपन्न समाज था नेहरू का स्वप्न : पुरुषोत्तम अग्रवाल
नई दिल्ली : हिन्दुस्तान की बहुलता को नकार कर उसे आगे ले जाना संभव नहीं हो सकता। जवाहरलाल नेहरू और उनकी पीढ़ी के तमाम नेता इस बात को बखूबी जानते थे। नेहरू के बारे में आमतौर पर यह समझा जाता है कि वह पश्चिम के रंगढंग में ढले ऐसे आधुनिक थे जिन्हें अपने देश की सभ्यता-संस्कृति से कोई वास्ता नहीं था या वह इससे अनजान थे लेकिन सच्चाई यह है कि वह हिन्दुस्तान की ज़मीन से बहुत गहरे जुड़े हुए थे और उनके पास अपने देश के लिए उनके मन में एक बड़ा सपना था जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह बातें 'कौन हैं भारत माता?' पुस्तक के लोकार्पण समारोह में कही गईं। वरिष्ठ लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल द्वारा सम्पादित ‘कौन हैं भारतमाता?’ का प्रसिद्ध शायर-विचारक जावेद अख़्तर ने गुरुवार को जवाहर भवन में लोकार्पण किया। इस मौके पर जावेद अख़्तर और पुरुषोत्तम अग्रवाल के बीच नेहरू के बौद्धिक विरासत और हिन्दुस्तान के बारे में उनके विचारों को लेकर बातचीत भी हुई। पुस्तक का लोकार्पण करते हुए जावेद अख़्तर ने नेहरू के बारे में अपनी यादें साझा करते हुए कहा कि मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे नेहरू जी से ऑटोग्राफ लेने का मौका मिला। जब मैं 14-15 साल का था तब मेरे तीन हीरो हुआ करते थे- नेहरू, कृषण चंदर और दिलीप कुमार। 1963 में तीन मूर्ति भवन में जब उनका आखिरी जन्मदिन मनाया गया तब मुझे वहाँ जाने का मौका मिला था। जावेद अख़्तर ने कहा कि आज भी नेहरू बहुतों को बहुत पसंद हैं और कुछ को नापसंद हैं। लेकिन वह लगातार प्रासंगिक हैं।
सभा में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा - जवाहरलाल नेहरू को जानने-समझने की कोशिश में पिछले कोई पन्द्रह-बीस सालों से करता रहा हूँ। इस कोशिश के एक पड़ाव तक पहुँच जाने का ही नतीजा है यह पुस्तक, जो सबसे पहले अंग्रेजी में छपी! विद्वानों से लेकर आम पाठकों तक ने जिस तरह इसमें दिलचस्पी दिखाई तमाम मित्रों ने जिस तरह इसे हिन्दी में लाने का आग्रह किया और राजकमल ने तत्परता दिखाई उसी का फल है-आज लोकार्पित हो रही यह पुस्तक ‘कौन हैं भारतमाता?’ प्रोफ़ेसर अग्रवाल ने कहा कि नेहरू ने जिस हिन्दुस्तान का स्वप्न देखा था और उसे संभव करने के जो प्रयास उन्होंने किए उसकी आलोचना की जा सकती है, उसमें भूलें भी हुईं लेकिन मेरा मानना है कि अपनी संकल्पना में वह बिल्कुल सही थे। नेहरू वास्तव में आलोचनात्मक विवेक से संपन्न समाज बनाना चाहते थे। उनका यह स्वप्न आज और ज़्यादा प्रासंगिक है। इससे पहले लोकार्पण समारोह में उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए इस पुस्तक को प्रकाशित करनेवाले राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, यह पुस्तक ऐसे समय प्रकाशित की गई है जब देश, देशप्रेम और राष्ट्रवाद जैसी चीजों पर चारों तरफ बहस का माहौल है। हम तेजी से बदल रहे समय में रह रहे हैं। हमारा समय पोस्ट ट्रूथ का समय हो चला है िजसमें सचाई को ही संदिग्ध बनाने की कोशिश की जा रही है। इससे उन विचारों, मूल्यों और आदर्र्शों को ही संदिग्ध बना दिए जाने का जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है, जिन्हें हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान अपनाया था। खतरा वास्तविक नायक-नायिकाओं को अफवाहों और कुतर्कों की धुन्ध में धकेल दिए जाने और इनकी जगह नकली नायक-नायिकाओं को स्थापित किए जाने का भी है। ऐेस कठिन दौर में ‘कौन मैं भारत माता?’ अपने इतिहास, संस्कृति का विरासत को जानने-समझने और सहेजने का एक गम्भीर प्रयास है। गौरतलब है कि यह पुस्तक महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बौद्धिक विरासत को अत्यन्त प्रासंगिक सन्दर्भ में प्रस्तुत करती है! इसमें नहरू की क्लासिक पुस्तकों: आत्मकथा, विश्व इतिहास की झलकें और भारत की खोज से चयनित अंश दिए गए हैं! उनके कई महत्त्वपूर्ण निबन्ध, भाशण, पत्र और साक्षात्कार भी इसमें शामिल हैं। पुस्तक के दूसरे हिस्से में महात्मा गांधी, भगत सिंह, सरदार पटेल, मौलाना आजाद समेत देश-विदेष की अनेक दिग्गज हस्तियों के नेहरू के बारे में आलेख शामिल हैं। इसमें सम्पादक ने एक शानदार प्रस्तावना लिखी है जिसमें नेहरू एक ऐसे महत्त्वपूर्ण कर्मशील व विचारशील व्यक्ति के रूप में उभरते हैं जिसमें भारत की सभ्यतामूलक आत्मा की एक सहज समझदारी थी, साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति स्पष्ठ प्रतिबद्धता भी। एक राजनेता के रूप में तमाम समस्याओं के बावजूद लोकतंत्र के प्रति उनकी निष्ठा उल्लेखनीय है। आयोजन के आखिर में श्रोताओं ने प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल और जावेद अख़्तर से सवाल पूछे और उन्होंने उन सवालों के जवाब दिए।
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