दरभंगा : सामाजिक विज्ञान में शोध पद्धतिशास्त्र पर कार्यशाला - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

दरभंगा : सामाजिक विज्ञान में शोध पद्धतिशास्त्र पर कार्यशाला

seminar-in-lnmu-sociology
दरभंगा (आर्यावर्त संवाददाता) आज दिनांक 19 फरवरी, 2020 को विश्वविद्यालय समाजशास्त्र विभाग में द्विदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 'सामाजिक विज्ञान में शोध पद्धतिशास्त्र' विषय पर आयोजित किया गया । इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि कार्यशाला और संगोष्ठी किसी भी विश्वविद्यालय में शोध के प्रति जागरूकता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक विज्ञान में शोध के नवीन विषय निरंतर नए द्वार खोल रहे हैं|  इसके लिए शोध पद्धति शास्त्र की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा शोध को वैज्ञानिक तरीकों से निष्कर्ष तक पहुंचाया जाता है। जबकि विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉक्टर मुस्ताक अहमद ने कहा कि शोध पद्धतिशास्त्र का सामाजिक विज्ञान में उतना ही महत्व है जितना कि विज्ञान में। यह एक नवीन दृष्टि प्रदान करता है । वरिष्ठ सिंडिकेट सदस्य सह विश्वविद्यालय समाजशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि शोध वह है जिससे बोध हो । शोध को निरंतर खोज करने एवं सत्यापित करने का प्रयास होता है। सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं का आकलन एवं परिणाम का वैज्ञानिक तरीकों से भविष्यवाणी के लिए शोध पद्धति शास्त्र का होना आवश्यक है। इस कार्यशाला का विषय प्रवेश करते हुए समाजशास्त्र विभाग के वरीय शिक्षिका डॉ मंजू झा ने सामाजिक विज्ञान में शोध पद्धति शास्त्र पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए  कहा कि सामाजिक विज्ञान अनुसंधान खोज का विस्तार करने के क्रम में विश्लेषण और अवधारणा मानव जीवन का एक व्यवस्थित तरीका है । कार्यक्रम के प्रथम तकनीकी सत्र के विषय विशेषज्ञ पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर वी के लाल ने 'उपकल्पना निर्माण' पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उपकल्पना किसी घटना को व्यवस्था करने वाला कोई सुझाव या अलग-अलग प्रतीत होने वाली बहुत सी घटनाओं के आपसी संबंध की व्यवस्था करने वाला कोई सुझाव है।  उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वैज्ञानिक विधि के अनुसार आवश्यक है कि कोई भी उपकल्पना परीक्षण योग्य होना चाहिए।  परिकल्पना के स्त्रोत के अंतर्गत समस्या से संबंधित साहित्य का अध्ययन, विज्ञान के नियम सिद्धांत ,संस्कृति, व्यक्तिगत अनुभव , रचनात्मक चिंतन, अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा और पूर्व में अनुसंधान आदि हैं। दूसरे विषय विशेषज्ञ मिजोरम केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर के मोहंती ने 'साहित्य की समीक्षा' विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि शोध करने से पूर्व उपकल्पना और पूर्व साहित्य समीक्षा  अनिवार्य है । साहित्य समीक्षा करते समय शोध के उद्देश्य एवं समस्या का ध्यान रखना आवश्यक है । साहित्य समीक्षा में गणणात्मक साहित्य की अपेक्षा गुणात्मक साहित्य महत्वपूर्ण होता है। शोध प्रबंध के निर्माण में द्वितीय अध्याय साहित्य समीक्षा जरूरी है। कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई तथा अतिथियों का स्वागत भाषण समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष सह सामाजिक विज्ञान संकाय के संकाय अध्यक्ष प्रोफ़ेसर गोपी रमण प्रसाद सिंह ने किया। जबकि कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी डॉक्टर सारिका पांडे ने दिया मंच संचालन सुश्री लक्ष्मी कुमारी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ शंकर कुमार लाल ने किया। इस अवसर पर दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रोफेसर अशोक मेहता , परीक्षा नियंत्रक सत्येंद्र नारायण राय, डॉ सरोज चौधरी, डॉक्टर बी एन मिश्रा ,डॉ मनु राज शर्मा डॉ गौरव सिक्का डॉक्टर सरिता कुमारी, डॉ रजनी सिंह, डॉक्टर विकास कुमार सहित शोध छात्राएं उपस्थित थे।

कोई टिप्पणी नहीं: