- तीन सवाल पूछता है बिहार
दरअसल विधान सभा सचिवालय विधायक और विधान पार्षदों की उपस्थिति को लेकर सशंकित था। वक्ताओं में भाजपा नेताओं की बहुलता के कारण विपक्ष का स्वर मुखर था। विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार की आशंका थी। इसको देखते हुए विधान सभा सचिवालय ने आनन-फानन में विधान सभा की समितियों की बैठक समारोह के दिन ही रविवार 7 फरवरी को बुला लिया। बैठक होने की वजह से समितियों के सभापति और सदस्यों की उपस्थिति लगभग अनिवार्य हो गयी। विधान सभा समितियों की बैठक दस दिन में एक बार और महीने में तीन बार होना अनिवार्य है। सात फरवरी को बैठक होने से एक कोरम पूरा हो गया। दो बैठक में सदस्य उपस्थित नहीं हुए तो उनका भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। विधायकों का दैनिक भत्ता समितियों की बैठक के एवज में ही मिलता है। रविवार को बैठक बुलाने से समिति सदस्यों के लिए भत्ता के साथ भोजन का भी इंतजाम हो गया और समारोह के लिए भीड़ भी इकट्ठा हो गयी। इसे कहते हैं - भीड़ के लिए भत्ता और भोज की राजनीति। रविवार को विधान सभा समितियों की बैठक बुलाये जाने को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विधान सभा के निर्णय में पारदर्शिता के लिए सभा सचिवालय को इन सवालों का जवाब देना चाहिए।
सवाल 1: किन आतापस्थितियों में विधान सभा समितियों की बैठक रविवार 7 फरवरी को बुलाने का निर्णय लिया गया।
सवाल 2 : शताब्दी समारोह के कवरेज के लिए किस आधार पर पत्रकारों के लिए कार्ड निर्गत किये गये थे और उन पत्रकारों में कितने भूमिहार थे।
सवाल 3 : प्रेस सलाहकार समिति में कितने सदस्य गैरभूमिहार हैं।
ये तीन सवाल बिहार पूछता है। विधान सभा सचिवालय से इन सवालों का जवाब की अपेक्षा करते हैं। हम भरोसा दिलाते हैं कि इन सवालों के औचित्यपूर्ण उत्तर को यथावत प्रकाशित करेंगे।
---- वीरेंद्र यादव, स्वतंत्र पत्रकार ----
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