बिहार : शताब्‍दी समारोह में भीड़ के लिए ‘भत्‍ता और भोज’ की राजनीति - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 5 मार्च 2021

बिहार : शताब्‍दी समारोह में भीड़ के लिए ‘भत्‍ता और भोज’ की राजनीति

  • तीन सवाल पूछता है बिहार

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पिछले सात फरवरी को बिहार विधान सभा सचिवालय की ओर से विधान सभा भवन शताब्‍दी समारोह सह प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसका उद्घाटन मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था, जबकि प्रबोधन कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और सांसद सुशील मोदी विषय विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित थे। दिनभर के इस कार्यक्रम में भाषण के साथ भोजन का पुख्‍ता इंतजाम था। इसमें विधायक और विधान पार्षदों के अलावा स्‍पीकर के मनपसंद और भूमिहार पत्रकार आमंत्रित थे। स्‍वाभाविक है कि कुछ पत्रकार न भूमिहार हैं और न मनपसंद। इसलिए स्‍पीकर ने विधान सभा सचिवालय को निर्देश दे रखा था कि ऐसे पत्रकारों को आमंत्रण कार्ड नहीं देना है। प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में ऐसे पत्रकारों के लिए ‘गलत पत्रकार’ शब्‍द इस्‍तेमाल किया गया था। सात फरवरी। रविवार का दिन था। छुट्टी का दिन। शताब्‍दी समारोह एक बड़ा आयोजन था। उसका संबंध तिथि से था। लेकिन यहीं हो गयी राजनीति। विधान सभा सचिवालय ने विधान सभा की लगभग सभी समितियों की बैठक 7 फरवरी को बुला ली। कई समितियों की बैठक के लिए सात फरवरी के बाद की तिथि निर्धारित थी, उसे भी रिशिड्यूल किया गया और सात फरवरी को तिथि तय की गयी। विधान सभा समितियों की बैठक बुलाना सभा सचिवालय का विशेषाधिकार है। आपातस्थिति में कभी भी बैठक बुलायी जा सकती है। लेकिन रविवार सात फरवरी को कोई आपात स्थिति नहीं थी। सात फरवरी संपूर्ण बिहार के लिए गौरव का दिन था। 7 फरवरी, 1921 को बिहार विधान सभा के भवन में राज्‍यपाल की नवगठित लेजिस्‍लेटिव कांउसिल की पहली बैठक हुई थी। इसके पहले बिहार में उपराज्‍यपाल का शासन था। इसी पहली बैठक के शताब्‍दी वर्ष के पावन मौके पर बिहार विधान सभा भवन शताब्‍दी समारोह सह प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस आयोजन से हर बिहारवासी गौरवान्वित था। 


दरअसल विधान सभा सचिवालय विधायक और विधान पार्षदों की उपस्थिति को लेकर सशंकित था। वक्‍ताओं में भाजपा नेताओं की बहुलता के कारण विपक्ष का स्‍वर मुखर था। विपक्षी दलों द्वारा बहिष्‍कार की आशंका थी। इसको देखते हुए विधान सभा सचिवालय ने आनन-फानन में विधान सभा की समितियों की बैठक समारोह के दिन ही रविवार 7 फरवरी को बुला लिया। बैठक होने की वजह से समितियों के सभापति और सदस्‍यों की उपस्थिति लगभग अनिवार्य हो गयी। विधान सभा समितियों की बैठक दस दिन में एक बार और महीने में तीन बार होना अनिवार्य है। सात फरवरी को बैठक होने से एक कोरम पूरा हो गया। दो बैठक में सदस्‍य उपस्थि‍त नहीं हुए तो उनका भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। विधायकों का दैनिक भत्‍ता समितियों की बैठक के एवज में ही मिलता है। रविवार को बैठक बुलाने से समिति सदस्‍यों के लिए भत्‍ता के साथ भोजन का भी इंतजाम हो गया और समारोह के लिए भीड़ भी इकट्ठा हो गयी। इसे कहते हैं - भीड़ के लिए भत्‍ता और भोज की राजनीति। रविवार को विधान सभा समितियों की बैठक बुलाये जाने को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विधान सभा के निर्णय में पारदर्शिता के लिए सभा सचिवालय को इन सवालों का जवाब देना चाहिए।

सवाल 1: किन आतापस्थितियों में विधान सभा समितियों की बैठक रविवार 7 फरवरी को  बुलाने का निर्णय लिया गया।

सवाल 2 : शताब्‍दी समारोह के कवरेज के लिए किस आधार पर पत्रकारों के लिए कार्ड निर्गत किये गये थे और उन पत्रकारों में कितने भूमिहार थे।

सवाल 3 : प्रेस सलाहकार समिति में कितने सदस्‍य गैरभूमिहार हैं।

ये तीन सवाल बिहार पूछता है। विधान सभा सचिवालय से इन सवालों का जवाब की अपेक्षा करते हैं। हम भरोसा दिलाते हैं कि इन सवालों के औचित्‍यपूर्ण उत्‍तर को यथावत प्रकाशित करेंगे। 



---- वीरेंद्र यादव, स्‍वतंत्र पत्रकार ----

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